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Culture of Chhattisgarh युवाओं को आकर्षित कर रहे छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषण

शृंगार में आभूषणों को ज्यादा महत्व देकर नारी के रूप में निखार लाने का प्रयास किया जाता रहा है. Chhattisgarh Traditional jewelery छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषण और पहनावों की गिनती भी इन्हीं में होती है, जो इन दिनों युवाओं को आकर्षित करते फैशन का ट्रेंड बन गए हैं. culture of chhattisgarh शादी ब्याह का मौका हो या कोई खास आयोजन, इनके बिना अधूरे हैं.Culture of Chhattisgarh

Chhattisgarh Traditional jewelery and costumes
छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषण और पहनावे

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Published : Jan 7, 2023, 9:46 AM IST

छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषण और पहनावे

रायपुर: छत्तीसगढ़ Chhattisgarh की संस्कृति में नारी के शृंगार का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है. यहां की प्राचीन मूर्तिशिल्प में नायक नायिका का शृंगार आमतौर पर देखने को मिलता है. Traditional jewelery पारंपरिक आभूषण पुराने जमाने ही नहीं, नई पीढ़ी को भी लुभा रहे हैं. attracting the youth युवाओं को आकर्षित कर रहे इन पारंपरिक आभूषण और पहनावों के बिना शादी ब्याह जैसे आयोजन फीके पड़ जाते हैं.

गोदना से शुरू हुई थी शृंगार की परंपरा:इतिहासकार और पुरातत्वविद हेमू यदु (Historian and archaeologist Hemu Yadu) ने बताया कि "देवी के शृंगार की तरह ही नारी अपना श्रृंगार करती हैं. नारियों में शृंगार की प्रथा छत्तीसगढ़ में गोदना (टैटू) से शुरू हुई थी. वही उस जमाने में नारियों का शृंगार हुआ करता था. लेकिन बाद में मोरपंख, कौड़ी, पत्थर, मूंगा जैसी चीजों से नारियां शृंगार करने लगीं. वर्तमान में शृंगार की पहचान बदल गई और यह आभूषण में तब्दील हो गई. वर्तमान में सोना, चांदी, गिलेट और तांबा जैसी चीजें आभूषण के रूप में प्रचलित हुईं, जो सिर के आभूषण से लेकर पैर के आभूषण तक बनने लगे."

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पारंपरिक आभूषण और पोशाक ही छत्तीसगढ़ की पहचान:हेमू यदु बताते हैं कि "कलचुरी काल, शरभपूरी काल, सोमवंशी काल की मूर्ति कला में भी नारी शृंगार देखने को मिलता है. नारियों का यह श्रृंगार धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर है. छत्तीसगढ़ में पारंपरिक रूप से आभूषण और पोशाक ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलते हैं. पारंपरिक आभूषण और पोशाक ही छत्तीसगढ़ी संस्कृति की पहचान हैं."

छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषण
केस श्रृंगार: गोलाकार खोपा (जूड़ा) फुंदरा, गोलाकार केशबंध (खोपा- कंधे की ओर), एक चोटी (वेणी) की केश कला, दो चोटी (वेणी) केशकला, फीता, जनजातियों के प्राकृतिक शृंगार (वनस्पतियों, फूलों और पंखों का शृंगार).
गोलाकार खोपा


सिर के जेवर:ककई फूल और पंख का श्रृंगार, कौड़ियों के शृंगार, शृंगार का ककई (लकड़ी का कंघी), मूड खोचनी शृंगार, टिकली और सिंदूर.


कान के जेवर:खिनवा, झुमका, धार तितरी, ढरकी लुरकी, फूलसकरी, अयरिंग लवंगफूल, कान के खूंटी, कान के कुंडल, करणफूल कान की बाली.


नाक के जेवर:नाक की फुल्ली, नाक के नथ, नाक की खूंटी, बुलाक.


गले के जेवर:अवरी दाना के सुर्रा, सुतिया, सुता पुतरी, रुपिया सोन के पुतरी, कंठी की माला, गेंहू दाना की माला, गेंदा फूल की माला, गेंहू पत्ती की माला, मोतिया माला, तुलसी की माला, सीप की माला, रुद्राक्ष की माला.

बांह के जेवर:बहुंठा, नागमोरी.

कलाई के जेवर


कलाई के जेवर:चूड़ी, हाथ का कड़ा, चांदी के पटा, घुंघरू वाला कड़ा, अंगूठी.

कमर के जेवर:करधन, चैन, फांस, सांटी, लच्छा, सांटी, पैजन, पैरपट्टी, पैरी.

करधन
महिलाओं का पोशाक: लुगरा (साड़ी), अंडी के लुगरा, कोसा के लुगरा, दायें पल्ले वाला लुगरा, बाएं पल्ले वाला लुगरा, मुड़ ढंकनी लुगरा, कछोरा लुगरा, लहंगा, साया, बांह वाली पोलखा, फुग्गा बांह वाली पोलखा.पुरुषों का पोशाक:सिर में पागा, कुरता, धोती, सलूखा, बंडी, अंगरखा, जाकिट, पटका, गमछा, लंगोट.

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