रायपुर: छत्तीसगढ़ के नक्सलगढ़ में एक दशक से मां भारती की रक्षा करने वाले वीर सपूत लक्ष्मण केवट के नाम से लाल आतंक थर-थर कांपता है. इनके निशाने से नक्सलियों को हमेशा मुंह की खानी पड़ती है. गोरिल्ला वॉर में दक्ष और लाल आतंक को भेदने में माहिर इस इंस्पेक्टर (naxal encounter specialist lakshman kewat ) ने अब तक 42 नक्सलियों को ढेर किया है. यही वजह है कि इन्हें छत्तीसगढ़ का एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा जाता है.
अपने सेवाकाल का ज्यादातर वक्त लक्ष्मण ने नक्सल मोर्चे पर बिताया है. हमेशा अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया है . उन्होंने कई नक्सली मुठभेड़ों में ना सिर्फ नक्सलियों को भारी शिकस्त दी है बल्कि खास बात यह भी है कि उन्होंने अपनी टीम में शामिल जवानों को मुड़भेड़ के बाद सकुशल नक्सलियों की मांद से बाहर भी निकाला है. लक्ष्मण केवट छत्तीसगढ़ के ऐसे पुलिस ऑफिसर हैं, जिन्हें अब तक पांच बार राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार से नवाजा गया है. ईटीवी भारत ने मोहला मानपुर थाने के निरीक्षक और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट लक्ष्मण केवट से खास बातचीत की है
सवाल: आप पुलिस सेवा से कैसे जुड़े और किस तरह नक्सल प्रभावित इलाकों में आपने अपनी ड्यूटी निभाई है?
जवाब:सबसे पहले मैं छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में साल 2007 में कॉन्स्टेबल के तौर पर तैनात हुआ. उसके बाद वन टाइम प्रमोशन नीति के तहत 2012 में उप निरीक्षक बना. मेरी पहली पोस्टिंग सबसे संवेदनशील जिला माने जाने वाले बीजापुर में हुई. शुरुआती दौर में मुझे भी शहरी क्षेत्रों की तरह लगता था कि नक्सली बहुत खतरनाक होते हैं. लेकिन वहां जाने के बाद नक्सलियों की स्थिति देखा कि ये छिपकर युद्ध करते हैं. गोरिल्ला वॉर करते हैं. उसके बाद सरेंडर किए हुए नक्सली, जो उस दौरान सहायक आरक्षक थे. उनके माध्यम से मैंने गोरिल्ला वॉर सीखा. मैंने गोरिल्ला वॉर का उपयोग नक्सलियों के खिलाफ किया. उसकी बदौलत मुझे 5वीं बार राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार से नवाजा गया.
सवाल: छत्तीसगढ़ में कई नक्सली पुलिस मुठभेड़ में आप शामिल रहे हैं, आपने अब तक आपने कितने नक्सलियों को मार गिराया?
जवाब: हर क्षेत्र की अपनी स्थिति होती है. जैसे सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर अबूझमाड़ सभी जगहों पर ऑपरेशन किया है. हर जगह की भौगौलिक परिस्थितियां अलग होती है. वहां के नक्सलियों की सक्रियता भी अलग होती है. कहीं प्लाटून होता है. कहीं एलजीएस होता है तो कहीं एलएस होता है. कहीं कंपनी या बटालियन से लड़ना पड़ता है. हर क्षेत्र में हर प्रकार की अलग-अलग रणनीति रही है. अभी राजनांदगांव में हैं तो राजनांदगांव के लिए भी अलग रणनीति रही है, लेकिन अभी तक 26 सफल एनकाउंटर को मैंने अंजाम दिया है. जिसमें 42 नक्सलियों का काम तमाम हुआ है. उनकी डेड बॉडी रिकवर कर ली गई है. इसमें पूरी टीम का सहयोग है. हमारे वरिष्ठ अधिकारियों का जैसा दिशा-निर्देशन रहता है, उसके हिसाब से काम किया. अबतक 42 नक्सलियों की डेड बॉडी रिकवर की जा चुकी है.
सवाल: कुछ ऐसे भी पुलिस अधिकारी और जवान रहते हैं, जो नक्सल प्रभावित इलाकों में जाने से कतराते हैं. इसके लिए हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन आपने ज्यादातर समय उन इलाकों में गुजारा है. यह आपकी देशभक्ति और देश प्रेम के जुनून को दर्शाता है.
जवाब: शुरू-शुरू में नक्सल प्रभावित क्षेत्र के नाम से मुझे भी नक्सलियों का खौफ था. जिस प्रकार से टीवी में न्यूज में बताया जाता है, लेकिन वहां जाने के बाद गोरिल्ला वॉर की रणनीति को समझें और फिर यदि किसी आदमी को देश के लिए कुछ करना होता है तो यह नहीं दिखता की मौत क्या होती है, क्या नहीं होती. हमको देश के लिए कुछ करना है तो लड़ना पड़ेगा और लड़ने के लिए यह नहीं देखना पड़ेगा कि जान बचेगी या शहीद हो जाएंगे या क्या होगा. लड़ना है तो लड़ना है. दुश्मन को खत्म करना है. देश को सुरक्षित करना है. जनता को सुरक्षित करना है तो इसके लिए आदमी कुछ भी कर जाएगा और वह मैं कर रहा हूं.
सवाल: आपने नक्सलियों के खिलाफ कई बड़े ऑपरेशन किए हैं. उन इलाकों में लंबा समय गुजारा है. ऐसे में इस समस्या की जड़ कहां है और इसका हल क्या है?
जवाब: पिछले 10 साल से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहा हूं. वहां के ग्रामीण नक्सलियों और पुलिस के बीच में पिस रहे हैं. उनको यह समझ में नहीं आ रहा है कि हम जाएं तो जाएं कहां. लेकिन इतना समझ में आया कि जो नक्सली सरेंडर करते हैं. जो नक्सल प्रभावित गांव के लोग होते हैं. जो समर्थक होते हैं, वो कहीं न कहीं इस चीज को बताते हैं कि केवल बंदूक के दम पर यदि हम नक्सलवाद को समाप्त करना चाहेंगे तो यह संभव नहीं है. जैसे कहीं रोड नहीं है, बिजली नहीं है, स्वास्थ सुविधाएं नहीं हैं. चिकित्सा नहीं है, शिक्षा नहीं है. उसके लिए शासन-प्रशासन लगातार प्रयास कर रहा है. लेकिन जो नक्सल प्रभावित एरिया हैं, प्रतिबंधित संगठन के लोग जो हैं, वह लगातार रोड को क्षतिग्रस्त कर देते हैं. बिजली के खंभे को गिरा देते हैं. इसके लिए उन इलाकों में सुरक्षा ज्यादा जरूरी है. इसके लिए विकास कार्य जरूरी है. केवल बंदूक के दम पर नक्सलवाद को समाप्त करने के बारे में सोचा जाए तो यह मुमकिन नहीं है. विकास के जरिए ही नक्सलवाद को समाप्त किया जा सकता है. हमारी राज्य सरकार विकास और नई-नई योजनाओं को ऐसे क्षेत्रों में पहुंचाने का कार्य कर रही है.
सवाल:आपने कहा कि आप जिन इलाकों में रहते हैं, वहां की भौगोलिक परिस्थितियों काफी विषम रहती है. ऐसे में किसी भी ऑपरेशन में निकलने से पहले क्या खास तैयारियां करनी पड़ती है?
जवाब: क्षेत्र के हिसाब पर डिपेंड करता है. जैसे अगर हम लोगों को बटालियन के क्षेत्र में जाना है. जहां हिड़मा है. ऐसे क्षेत्र में जा रहे हैं, जहां कंपनियां हैं, प्लाटून है. उस क्षेत्र में हम पहले से पूरी परिस्थितियों को समझ लेते हैं . यदि मान लो एनकाउंटर होता है तो क्या होगा. ऐसी स्थिति का हम आकलन करते हैं. क्योंकि घने जंगल में 30-40 किलोमीटर जाना फिर लौटना. ये सब रणनीति हमें पहले बनानी होती है. हम ये भी देखते हैं कि हम वहां पर कहां हेलीकॉप्टर लैंड करा सकते हैं. उसके साथ-साथ मेडिकल सुविधा के लिए फोर्स कहां से आएगी. उस जगह पर पानी है या नहीं, जब ज्यादा संख्या में फोर्स को निकालते हैं तो पानी का बहुत प्रॉब्लम होता है. जंगली जानवरों से खतरा रहता है. रात में सोते वक्त यदि कोई सांप-बिच्छू काट ले तो उस समय क्या करेंगे. इस तरह सारे पहलुओं पर विचार कर हम ऑपरेशन के लिए निकलते हैं. फिर हम उस तरह के ऑपरेशन को अंजाम देते हैं