रायपुर :अधिकतर मां बाप का सपना होता है कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर बड़े होकर डॉक्टर बनें या फिर किसी बड़े पद पर बैठें. लेकिन अब छत्तीसगढ़ में इन गरीब और मध्यमवर्गीय मां-बाप का सपना टूटता नजर आ रहा है. जो मां-बाप अपने बच्चे को डॉक्टर बनाना चाहते हैं, उनके लिए सरकार का नया बॉन्ड परेशानी का सबब बन गई है. पहले ही छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों की कमी है, जिस वजह से स्वास्थ्य सुविधाएं प्रभावित हो रही हैं. हालांकि हाल ही में स्वास्थ्य विभाग द्वारा 1431 पदों पर चिकित्सक समेत स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती के लिए प्रक्रिया शुरू की गई है. इस भर्ती के बाद भी प्रदेश में डॉक्टरों की कमी देखने को मिलेगी. खासकर ग्रामीण अंचल में तो डॉक्टरों की संख्या नाम मात्र की है.
छत्तीसगढ़ में गरीब मिडिल क्लास छात्रों की डॉक्टरी पर बॉन्ड की बाधा 25 लाख का बांड छात्रों के लिए बना मुसीबत
छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग (Chhattisgarh Health Department) ने एक ऐसा फरमान जारी किया है, जो डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे या कर चुके छात्रों के लिए गले की हड्डी बन गया है. यह फरमान है, उन छात्रों से 25 लाख रुपये का बॉन्ड भराया जाना. छात्र 25 लाख रुपये नगद जमा करें और यदि उसके पास यह राशि नहीं है तो वह घर की संपत्ति, जमीन-जायजाद या मकान गिरवी रखकर यह बॉन्ड भरें. इस तरह का प्रावधान किया गया है. सरकार की इस पॉलिसी की वजह से अब गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे आने वाले समय में डॉक्टर बनना तो दूर डॉक्टर बनने की सोच भी नहीं सकते हैं. इस बात को लेकर ईटीवी भारत ने डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे कुछ छात्रों से बात की तो उन्होंने अपनी पीड़ा कुछ इस तरह बताई.
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पहले एनओसी की दिक्कत फिर पीजी के बाद सामने आ गई बॉन्ड की समस्या
इस पूरे मामले पर पंडित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर (Pandit Jawaharlal Nehru Medical College Raipur) के एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट के पीजी छात्र डॉ हीरा सिंह लोधी ने बताया कि उन्होंने साल 2013 में डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू की थी. साल 2018 में मेडिकल कॉलेज से पास आउट होने के बाद उन्होंने 2 साल का बॉन्ड भरा. इसके 1 साल बाद उनका पीजी में सिलेक्शन हो गया, लेकिन इस दौरान उन्हें एनओसी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी. वह एनओसी के लिए लगातार चक्कर काटते रहे. बाद में उन्हें एनओसी मिली, लेकिन पीजी के बाद एक बार फिर उनके सामने बॉन्ड की समस्या उत्पन्न हो गई. क्योंकि नए नियम के तहत अब उन्हें 25 लाख रुपये का बांड भरना है. इसके लिए 25 लाख रुपये जमा करने होंगे या फिर उतने की जमीन या मकान राज्य सरकार के अधीन करनी होगी.
अपने आप को परिवार के लिए अभिशापित महसूस कर रहा
हीरा ने आगे बताया कि इस बॉन्ड का मतलब यह है कि मैंने या तो पैसे गिरवी रखे या अपनी जमीन गिरवी रखकर पढ़ाई करने जा रहा हूं. एक तरीके से मैं अपने आप को अपने परिवार के लिए अभिशापित महसूस कर रहा हूं. मान लीजिये मेरे परिवार में किसी को पैसे की जरूरत हो या किसी के इलाज के लिए पैसे की जरूरत पड़ जाए और मुझे जमीन बेचनी पड़े तो मैं अपनी जमीन नहीं बेच सकता, क्योंकि वह जमीन राज्य सरकार के अधीन है.
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कितने साल का भरना है बॉन्ड, यह क्लियर नहीं
हीरा ने बताया कि इसके अलावा यह भी दिक्कत आ रही है कि किसी डॉक्यूमेंट में यह नहीं लिखा है कि आपको एमबीबीएस और पीजी करने के बाद 2 साल तक का बॉन्ड भरकर ग्रामीण क्षेत्र में काम करना है. या दोनों मिलाकर 4 साल का काम करना है, यह कहीं भी स्पष्ट नहीं है. जिस वजह से भी उन्हें काफी परेशानी हो रही है. हीरा ने बताया कि बांड की समस्या को लेकर उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री से भी मुलाकात की, लेकिन अब तक इस समस्या का समाधान नहीं हो सका है.
छात्रों का आरोप-सरकारी कॉलेज से पढ़कर निकलने वाले डॉक्टरों के लिए ही यह सारे नियम-कानून
वहीं बांडेड जूनियर डॉक्टर डॉक्टर योगेश्वर जयसवाल ने बताया कि यह सारे नियम-कानून सिर्फ सरकारी कॉलेजों के छात्रों के लिए हैं. अगर आप प्राइवेट कॉलेज में पढ़कर निकलते हैं तो आपको न तो बॉन्ड भरना पड़ेगा और न ही कोई अन्य औपचारिकताएं ही पूरी करनी पड़ती हैं. उन्होंने कहा कि यह बॉन्ड अपने आप में एक तरह से अभिशापित लग रहा है. सरकार का मूल उद्देश्य लोगों को डॉक्टरों की सेवा मुहैया कराना है, लेकिन इस बांड की वजह से डॉक्टरों को प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है.
जिसके पास 25 लाख या इतने की प्रॉपर्टी नहीं, वह नहीं बन पाएगा डॉक्टर
जायसवाल ने आक्रोश भरे लहजे में कहा कि सरकार में बैठे लोग पूंजीवादी परंपरा का पालन कर रहे हैं. नीचे वाले लोगों का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा. अभी जो 2 साल का बॉन्ड है और वह पीजी सिलेक्ट हो जाता है तो उसके एवज में उसे 25 लाख की संपत्ति गिरवी रखनी पड़ेगी. अगर उसके पास 25 लाख की प्रॉपर्टी नहीं है तो वह पीजी नहीं कर सकता. मतलब आपके पास 25 लाख की प्रॉपर्टी नहीं है तो आप अच्छे डॉक्टर नहीं बन सकते.
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छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों की कमी दूर करने ग्रामीण चिकित्सा बांड का था प्रावधान : राकेश
इस पूरे मसले पर छत्तीसगढ़ हॉस्पिटल बोर्ड (Chhattisgarh Hospital Board) के अध्यक्ष राकेश गुप्ता ने कहा कि प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए पहले ग्रामीण चिकित्सा बॉन्ड का प्रावधान किया गया था, जिसमें बहुत सारे प्रावधान थे. इस वर्ष जो बॉन्ड के साथ 25 लाख रुपये की एक अंडरटेकिंग ली जा रही है, जिन परिवारों के पास 25 लाख की संपत्ति या जमीन है, उनके डॉक्यूमेंट कलेक्टर से सर्टिफाइड कराने के बाद शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य विभाग बांड जमा करा रहे हैं. जिनके पास इतनी संपत्ति नहीं है, वह इससे चूक जा रहे हैं. उनको एक तरीके से मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है.
छत्तीसगढ़ में बांड भरने के 13 माह बाद भी नहीं मिली पोस्टिंग, इसका जिम्मेदार कौन : राकेश
राकेश ने आगे बताया कि पहले भी इस तरह की व्यवस्थाएं थीं. जो सरकारी मेडिकल कॉलेज से निकलते हैं, उन्हें ही बांड भरने के लिए कहा जाता है जो प्राइवेट कॉलेज से निकलते हैं, उनसे बॉन्ड नहीं भराया जाता है. यह कहा जा सकता है कि कुछ से बॉन्ड भराना और कुछ को जान-बूझकर छोड़ देना, यह मानसिक प्रताड़ना है. जबकि राकेश गुप्ता ने बताया कि मुंबई को छोड़कर दूसरे राज्यों में इस तरह की व्यवस्था नहीं है.
मुंबई में भी छात्रों को बॉन्ड भरने के बाद 15 दिन में पोस्टिंग दे दी जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में बॉन्ड भरने के सात-आठ महीने यहां तक कि 13 महीने बाद तक कुछ लोगों को पोस्टिंग नही दी गई है. इससे इनका बहुमूल्य समय खराब हुआ है, आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है.
सरकार में आए थे तो 90 प्रतिशत डॉक्टरों के पद थे खाली : सिंहदेव
वहीं स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने ईटीवी भारत से टेलिफोनिक चर्चा के दौरान बताया कि आज भी प्रदेश में डॉक्टरों के 80 प्रतिशत पद खाली हैं. जब हम सरकार में आए थे तो उस दौरान करीब 90 प्रतिशत डॉक्टरों के पद खाली थे. डॉक्टरों के पद खाली रहने की मुख्य वजह ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों का न जाना है. इसी वजह से इस बार कड़ाई बरती गई है, ताकि एमबीबीएस डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्र में अपनी सेवाएं सुनिश्चित करें. पहले भी इस तरह के बॉन्ड भराये जाते थे, लेकिन उसमें नरमी बरती जाती थी. यही वजह होती थी कि ज्यादातर डॉक्टर, जिनकी पोस्टिंग ग्रामीण क्षेत्र के पीएससी या सीएससी में होती थी वह अपनी सेवाएं वहां नहीं देते थे. उन पर कोई ठोस कार्रवाई का प्रावधान भी नहीं था.
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सरकारी खर्चे पर पढ़ने वाले डॉक्टरों की समाज के प्रति भी है कुछ जवाबदारी : मंत्री
बांड में दिये गए प्रावधान को लेकर जब हमने मंत्री सिंहदेव से पूछा कि जो राशि तय की गई है, काफी अधिक है तो ऐसे में मध्यमवर्गीय और गरीब घर के बच्चे कैसे बांड भरेंगे. सिंहदेव ने कहा कि आप गरीब किसे मानते हैं और जो लोग सरकारी खर्च में पढ़कर डॉक्टर बने हैं, उनकी समाज के प्रति और गरीबों के प्रति कुछ जवाबदारी भी तो होनी चाहिए. इसी वजह से इस बार बॉन्ड को सख्त किया गया है. हम किसी बच्चे को परेशान नहीं करना चाहते हैं, लेकिन हमारी भी कुछ सीमाएं हैं. हमें भी जनता के बीच जाना रहता है, वहां की भी हमारी जिम्मेदारी रहती है. उन्हीं के बीच से ही यह बच्चे भी होते हैं, जो डॉक्टर होते हैं.
हालांकि एमबीबीएस करने के बाद दो साल और पीजी करने के बाद दो साल यानी कि 4 साल ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के बॉउंडेशन के सवाल पर मंत्री सिंहदेव ने यह जरूर कहा कि वे इस पर विचार करेंगे.
बच्चों को कैसे बनाएंगे डॉक्टर, अब इस चिंता में गरीब-मिडिल क्लास परिवार
बहरहाल सरकार द्वारा 25 लाख का बॉन्ड अब डॉक्टर का सपना देख रहे बच्चों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है. ऐसे में एक गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार अपने बच्चों को कैसे डॉक्टर बनाएंगे, यह चिंता उन्हें सताने लगी है. अब देखने वाली बात होगी कि सरकार आने वाले समय में इस नियम को शिथिल करती है या फिर इस 25 लाख के बांड की वजह से प्रदेश के होनहार छात्र, जो टॉप करते हैं और जिन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज में मेरिट के आधार पर एडमिशन दिया जाता है, वह डॉक्टर बनने से वंचित रह जाते हैं.