रायपुर: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद के मानसून सत्र में 3 अध्यादेशों के जरिए कृषि क्षेत्र में अरसे से लागू नियम और कानूनों में बड़े बदलाव किए हैं. बिल देश के दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा से भारी विरोध और हंगामें के बीच पास हो गए हैं. बिल के विरोध में देश के कई किसान संगठन और राजनितिक पार्टियां सड़कों पर उतर आई हैं. किसानों के विरोध के सुर छत्तीसगढ़ में भी उठने लगे हैं. सरकार इसे विपक्षी पार्टियों की राजनीतिक साजिश बता रही है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद किसानों को एमएसपी यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस और सरकारी खरीदी की व्यवस्था बने रहने का भरोसा दिलाया है. लेकिन कृषि सुधार बिल के खिलाफ छत्तीसगढ़ के बीस से ज्यादा किसान संगठनों ने 25 सितंबर को छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान किया है. ETV भारत ने किसानों से बात की है. अब आपको आसान भाषा में समझाते हैं कि आखिर किस तरह का संशोधन हुआ है. किसानों को किस प्रकार की चिंता सता रही है.
केंद्र सरकार के कृषि संशोधनों पर किसान चिंतित सबसे पहले कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश को जानिए
कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर टैक्स लगाने से रोकता है. किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देता है. सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी. किसानों को अच्छा व्यापारिक माहौल मिलेगा. साथ ही बाजार में फसल का सही दाम मिल सकेगा.
किसानों की चिंता
किसान नेताओं ने कहा है कि किसान अपनी उपज को अपने मनमाफिक दाम पर कहीं भी दे सकता है. यह सुनने में अच्छा लगता है लेकिन वास्तविकता कुछ और है. किसानों को अपने उपज को कहीं पर बेचने से पहले कहीं भी रोक नहीं थी. सरकार के आंकड़ों के हिसाब से ही 6 प्रतिशत किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य कीमत पर सरकार को अपनी उपज बेचते हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि आज भी 94 प्रतिशत किसान बाजार पर निजी व्यापारियों के ऊपर निर्भर हैं. किसान क्यों अभी तक आर्थिक बदहाली में जी रहे हैं. इसका जवाब किसान जानना चाहते हैं. कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 में किसानों के हित में ऐसे प्रावधान है इसका इमानदारी से पालन किया जाए तो नए अध्यादेशों की आवश्यकता ही नहीं होगी.
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मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश
सरकार ने बेहद अहम फैसला बताया है. इसके जरिए फसल की बुवाई से पहले किसान को अपनी फसल का तय मानकों और तय कीमत पर बेचने के लिए अनुबंध सुविधा दी जा रही है. अध्यादेश में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात कही गई है. केंद्र सरकार का कहना है कि इससे किसानों का जोखिम कम होगा. दूसरे, खरीदार ढूंढने के लिए उन्हें कहीं भी नहीं जाना पड़ेगा. सरकार का यह भी मानना है कि अध्यादेश किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर बड़े खुदरा कारोबारियों, व्यापारियों और निर्यातकों के साथ सीधे जुड़ने में सक्षम बनाएगा.
किसानों की चिंता
छत्तीसगढ़ संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारियों ने जहां इस बिल को लेकर आपत्ति जताई है. वहीं राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति के संयोजक सदस्य पारसनाथ साहू ने कहा है कि इस बिल में कई तरह की खामियां है. कानूनी रूप से समर्थन मूल्य में खरीदने की गारंटी नहीं है. इसके बिना तीनों अध्यादेश अधूरा है. इस कानून का लाभ जमाखोर व्यापारी उठाएंगे, वहीं आम किसानों में भी इस तरह के बिल को लेकर जमकर नाराजगी है. किसानों का कहना है कि इस तरह के बिल आने से किसानों पर कॉर्पोरेट कंपनी भी हावी हो जाएगी. छोटे-छोटे किसान दूसरे राज्य में जाकर अपना सामान बेच नहीं सकते हैं. ऐसे में कार्पोरेट कंपनियां दबाव बनाकर किसानों का अनाज औने पौने दाम पर खरीद लेंगी.
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आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन
पहले व्यापारी फसलों को किसानों से कम दाम पर खरीदकर उसका भंडारण किया करते थे. इसी को रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 बनाया गया था. जिसके तहत व्यापारियों को कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गई थी. अब नए विधेयक आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020 के तहत आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने के लिए लाया गया है. इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा काल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा कभी भी स्टॉक की सीमा निर्धारित नहीं की जा सकेगी. इस पर भी किसानों आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि जब किसी वस्तू के भंड़ारण में प्रवधान नहीं होगा, निर्धारण नहीं होगा, तो सप्लाई और डिमांड के वक्त व्यापारी इसकी आपूर्ति रोक देंगे. ऐसे में किसानों के साथ आम लोगों को भी परेशानी होगी.
किसानों के साथ ही राज्य सरकारों ने भी केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. CM भूपेश बघेल ने कानून को केंद्र और राज्य के संबंधों पर हमला बताया था. साथ ही कानून का पूरजोर विरोध करने की बात कही है. वहीं प्रदेश के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इसे विपक्ष की राजनीति बताया है. लगातार किसानों का विरोध बढ़ रहा है. छत्तीसगढ़ समेत कई राज्य सरकारें भी विरोध कर रहीं हैं. ऐसे में देखना ये होगा कि केंद्र सरकार इससे कैसे निपटती है. क्या किसानों को खुश कर पाने में कामयाब होती है.