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कांग्रेस का नहीं चला ओबीसी फैक्टर, साहू समाज ने भी नहीं दिया साथ - छत्तीसगढ़ में ओबीसी वोट

chhattisgarh Congress OBC factor छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस ने ओबीसी का दांव खेला लेकिन खुद ही ओबीसी प्रत्याशियों को टिकट देने और ओबीसी वोट पाने में पीछे रह गई. जिसका बड़ा असर चुनाव पर पड़ा. CG Vidhan Sabha Chunav Result

chhattisgarh Congress OBC factor
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 7, 2023, 1:49 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बनने जा रही है. भाजपा ने 90 में से 54 सीटों पर जीत हासिल की है. जबकि कांग्रेस को सिर्फ 35 सीटों पर संतोष करना पड़ा है. इसके अलावा एक सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को मिली है. पिछले विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो उसमें कांग्रेस को 90 में से 68 सीट मिली थी जबकि भाजपा महज सीटे ही हासिल कर सकी थी. कहा जाता है कि उस चुनाव में ओबीसी फैक्टर की वजह से कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई थी, लेकिन वह फैक्टर इस चुनाव में काम नहीं आया. साथ ही इस बार साहू समाज ने भी कांग्रेस का साथ नहीं दिया.

41 फीसदी है ओबीसी आबादी:छत्तीसगढ़ में ओबीसी वर्ग के अंतर्गत कुल 95 जातियां आती हैं. क्वॉन्टिफिएबल डाटा के मुताबिक राज्य की करीब 41 फीसदी आबादी ओबीसी वर्ग से आती है. इन जातियों में सबसे ज्यादा 12 फीसदी जनसंख्या साहू समाज की है. जिस वजह से राज्य की एक चौथाई सीट पर इनका साफ साफ दबदबा होता है.

ओबीसी से 35 उम्मीदवार ने हासिल की जीत: इस विधानसभा चुनाव में 35 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) प्रत्याशियों ने जीत हासिल की. भाजपा की बात की जाए तो 19 पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस के 16 उम्मीदवार ही इस चुनाव में जीत सके.

साहू समाज को मिली 12 सीटें, 6 कांग्रेस और 6 भाजपा ने जीती:इस बार के चुनाव में ओबीसी वर्ग के अंतर्गत आने साहू समाज का भी वर्चस्व देखने को मिला.साहू समाज को 12 सीटें मिली हैं. जिसमें से कांग्रेस और भाजपा दोनों को 6-6 सीटों पर जीत हासिल हुई है. हालांकि कयास लगाए जा रहे थे कि साहू समाज की ज्यादातर सीटे कांग्रेस को जाएगी, लेकिन कांग्रेस को महज 6 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. इस तरह से साहू समाज ने भी चुनाव में कांग्रेस का साथ नहीं दिया.

इस बार सबसे ज्यादा 35 ओबीसी उम्मीदवारों ने हासिल की जीत:छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद हुए विधानसभा चुनाव की बात की जाए, तो साल 2003 में ओबीसी वर्ग से कुल 19 विधायक बने. जबकि साल 2008 में विधानसभा चुनाव के दौरान 24 ओबीसी वर्ग से उम्मीदवार ने जीत हासिल की. 2013 में हुए चुनाव में भी 24 विधायक ओबीसी वर्ग से बने हालांकि साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान महज 20 विधायक ही ओबीसी वर्ग से चुने गए. जबकि विधानसभा चुनाव 2023 में ओबीसी वर्ग से 35 विधायक चुने गए जो अब तक सबसे ज्यादा ओबीसी सीट रही है.

न सिर्फ ओबीसी वर्ग बल्कि सभी वर्ग से कांग्रेस ने उतारे थे उम्मीदवार:वही ओबीसी फैक्टर को लेकर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है "हमने चुनाव के दौरान न सिर्फ ओबीसी वर्ग बल्कि सभी वर्गों का ख्याल रखा और हर वर्ग से उम्मीदवार बनाया. 5 साल किसान, युवा, महिला कर्मचारी सभी के लिए काम किया. बावजूद इसके पार्टी क्यों हारी इसकी समीक्षा की जाएगी.

5 साल कांग्रेस ने नहीं किया कोई काम:भाजपा प्रदेश प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास का कहना है कि न सिर्फ ओबीसी वर्ग बल्कि प्रदेश के सभी वर्ग का विश्वास कांग्रेस से उठ गया. भ्रष्टाचार और घोटाले से लोग परेशान थे, प्रदेश में पिछले 5 साल में कोई विकास नहीं हुआ, साथ ऐसे कई मुद्दे थे जिस पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया. इसलिए कांग्रेस की हार हुई है.

छत्तीसगढ़ के इतिहास में चुनाव में नहीं रहा कभी जाति मुद्दा:ओबीसी फैक्टर को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अनिरुद्ध दुबे का कहना कि छत्तीसगढ़ में जाति का कभी मुद्दा ही नहीं रहा, यदि इतिहास उठाकर देखा जाए तो सिर्फ इस तरह की बातें होती रही, लेकिन कभी भी परिणाम इसके अनुरूप नहीं आया है.

ईश्वर साहू की वजह से भाजपा को मिले सिंपथी वोट:साहू समाज को लेकर अनिरुद्ध दुबे ने कहा कि भाजपा ने ईश्वर साहू को उम्मीदवार बनाया है उसका कहीं ना कहीं असर साजा विधानसभा ही नहीं बल्कि आसपास के विधानसभा क्षेत्र में भी साहू समाज के वोट बैंक पर पड़ा. क्योंकि ईश्वर साहू एक पीड़ित व्यक्ति था और उसे लेकर समाज की सहानुभूति थी, और कहीं ना कहीं इसका असर भी साहू समाज के वोट बैंक के रूप में भाजपा के पक्ष में देखने को मिला.

अंडर करंट का भाजपा को मिला लाभ, कांग्रेस की हुई है हार:इस दौरान अनिरुद्ध दुबे ने कहा कि कांग्रेस ने जो घोषणा की थी वह सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए की थी, महिला युवा, किसान और विभिन्न वर्गों को साधने की कोशिश थी लेकिन अंदरुनी फैक्टर या फिर अंडर करंट था जो इस चुनाव में दिखाई नहीं दिया. जो कांग्रेस के विरोध में और भाजपा के पक्ष में असर कर गया.

भाजपा के जीतने में कोई एक फैक्टर काम नहीं किया, बल्कि अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग मुद्दे भाजपा के पक्ष में माहौल बनाते रहे चाहे फिर वह जातिगत वोट का ध्रुवीकरण करने में भाजपा सफल रही। बस्तर में धमनान्तर एक बड़ा मुद्दा था। अलग अलग संभाग में मुद्दे अलग थे, पीएससी घोटाला, शराब बंदी ,महादेव सहित ऐसे कई मुद्दे थे जिसका असर चुनाव पर देखने को मिला.- अनिरुद्ध दुबे, वरिष्ठ पत्रकार

ओबीसी को टिकट देने में पिछड़ गई कांग्रेस:छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल ओबीसी वर्ग को साधने में जुटे रहे. कांग्रेस ने इसे भुनाने पूरी एड़ी चोटी का जोर लगाया. प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने और जातिगत जनगणना को लेकर कांग्रेस ने पूरे देश में माहौल बनाने की कोशिश की हालांकि ओबीसी से उम्मीदवार को टिकट देने के मामले में कांग्रेस थोड़ी पीछे रह गई, जहां एक और 90 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने महज 29 ओबीसी को प्रत्याशी बनाया वहीं दूसरी ओर भाजपा ने 31 ओबीसी को टिकट दिया. जिससे पूरे चुनाव की बिसात ही पलट गई.

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