रायपुर: राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुके राजाराम त्रिपाठी छत्तीसगढ़ के पहले किसान हैं जिन्हें आयुष मंत्रालय के मेडिसिनल प्लांट बोर्ड में बतौर सदस्य स्थान मिला है. राजाराम त्रिपाठी पिछले 25 वर्षों से जैविक और औषधीय खेती के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं. इनसे प्रेरित होकर प्रदेश के सैकड़ों किसानों ने इनकी खेती के मॉडल को अपनाया है. ईटीवी भारत ने बस्तर क्षेत्र के कोंडागांव के किसान राजाराम त्रिपाठी से किसानी और किसानों से जुड़े विषयों को लेकर खास बातचीत की है.
सवाल : कोरोना काल के 2 वर्षों ने समाज के सभी वर्गों के काम को प्रभावित किया , इस दौरान किसानों को कितना नुकसान हुआ है .
जवाब : कोरोना ने पूरी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है. इससे छोटे व्यापारी ज्यादा दुखी रहे , बड़े व्यापारियों की आय में वृद्धि ही हुई. देश का किसान इस दौर में सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, विशेषकर साग-सब्जी उगाने वाले किसान . जिन्हें लॉकडाउन के समय ना तो बाजार मिल पाया और ना ही अपनी फसल के उचित दाम मिल पाए . साथ ही साथ इस दौर में खेती की इनपुट कास्ट में भारी वृद्धि हुई. खाद बीज और दवाइयों के रेट काफी बढ़ गए डीजल के दाम काफी बढ़े. जिससे किसानों की कमर टूट गई. खेती तो पहले से ही घाटे का सौदा था. लेकिन अब भारत की खेती आईसीयू में पड़ी हुई है .
सवाल : आपको क्यों लगता है कि , प्रदेश में परंपरागत धान की खेती करने वाले किसानों को जैविक और औषधीय खेती करनी चाहिए.
जवाब : छत्तीसगढ़ जंगलों से आच्छादित प्रदेश है . यहां लगभग 44% वन है . जलवायु अच्छी है , लोग मेहनती हैं . मिट्टी उपजाऊ है. बावजूद इसके यहां धान की ही खेती की जाती है . एक पुरानी कहावत है कि धान और गरीबी का चोली दामन का साथ है. ऐसे में जरूरत इस बात की है , कि हम उन खेती को अपनाएं जो छत्तीसगढ़ में हो सकती हैं. छत्तीसगढ़ में इतनी संभावना है , कि यह विश्व भर के लिए हर्बल बास्केट बन सकता है. किसानों को धान के साथ इस तरह की खेती की ओर बढ़ना ही पड़ेगा तभी उनमें समृद्धि आएगी .
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सवाल : एक ओर आप छत्तीसगढ़ को हर्बल बास्केट बनने की प्रबल प्रबल संभावना वाला राज्य बता रहे हैं , लेकिन दूसरी तरफ यहां लगातार जंगलों की कटाई भी हो रही है. क्या यह भी एक वजह है कि औषधीय खेती की जाए
जवाब : सही बिंदु को उठाया है आपने , देश में 25 हजार से ज्यादा आयुर्वेदिक कंपनियां हैं. जिनको कच्चे माल के लिए जड़ी बूटियों की जरूरत होती है. जंगल तेजी से कट रहे हैं.वन भूमि पट्टा कानून की वजह से भी वनों की बेदर्दी से कटाई हुई है. आगे चलकर हम परंपरागत जंगल ,जड़ी-बूटियों की आपूर्ति नहीं कर पाएंगे. ऐसे में जरूरत आ गई है कि उन जड़ी-बूटियों को खेतों में उगाया जाए. हालांकि सच्चाई यह भी है कि राज्य बनने के बाद , हमारे प्रदेश को हर्बल स्टेट घोषित किया गया था लेकिन यह अभी तक नारा ही बनकर रह गया है.
सवाल : आप शक्कर और चावल के सब्स्टीट्यूड की खेती भी कर रहे हैं . यह डायबिटीज के पेशेंट के लिए कितना फायदेमंद है .
जवाब : स्टीविया एक ऐसा पौधा है जिसे हम मीठी तुलसी भी कहते हैं . इसकी पत्तियां शक्कर से 25 गुना ज्यादा मीठी होती हैं. जीरो कैलोरी भी होता है और यह शरीर में शुगर की मात्रा को भी नियंत्रित करता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए यह दवाई का काम करता है. इसमें अच्छी बात यह भी है कि गन्ने की तुलना में इसकी खेती में सिर्फ 10% ही पानी लगता है. इसे 21वीं सदी का फसल भी माना जाता है. आज पूरे देश भर में सबसे बड़े पैमाने पर इसकी खेती बस्तर में ही हो रही है. बस्तर के आदिवासियों के साथ मिलकर यह खेती की जा रही है. डायबिटीज रोगियों के लिए स्टीविया वरदान की तरह है. हम काले चावल की भी खेती कर रहे हैं जिसमें कई पौष्टिक गुण होते हैं. यह भी किसानों के लिए ज्यादा फायदे वाली फसल साबित होगी.
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सवाल : क्या बस्तर की तस्वीर बदल रही है. क्योंकि बस्तर का जिक्र करते ही लोगों के मन में यहां की हिंसा की छवि दिखाई देती है. क्या अब यहां के लोगों का रुझान भी जैविक और औषधीय खेती की ओर बढ़ रहा है .