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SPECIAL: बीजेपी का "मिशन 2023 विजय छत्तीसगढ़", क्या 1000 दिन में पूरा होगा भाजपा का सत्ता वापसी मिशन

छत्तीसगढ़ बीजेपी की नई प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी और सह प्रभारी नितिन नवीन ने पहले ही दौरे में प्रदेश में सत्ता वापसी का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है. इस दौरान उन्होंने साफ किया है कि हम सबको मिलकर, सबको साथ लेकर चलना है. जनता का खोया हुआ विश्वास हासिल करना है. इसके लिए सिर्फ 1000 दिन बाकी हैं.

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बीजेपी का मिशन 2023 विजय छत्तीसगढ़

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Published : Dec 12, 2020, 11:06 PM IST

रायपुर:छत्तीसगढ़ में बीजेपी मिशन 2023 की तैयारी में जुट गई है. हाल ही में प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी और सह प्रभारी नितिन नवीन के दौरे के बाद प्रदेश में हलचल तेज हो गई है. अपने दौरे पहले दौरे पर पुरंदेश्वरी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए अभी से जुट जाने को कहा है. इसके लिए पार्टी ने 1000 दिन की रणनीति बनाई है.

बीजेपी का मिशन 2023 विजय छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में हताशा के दौर से गुजर रही बीजेपी को अब नए सिरे से ऊर्जा का संचार किया जा रहा है. 15 सालों की सत्ता जाने के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं में मायूसी का दौर चल रहा है. यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व ने नए प्रभारी और सह प्रभारी की नियुक्ति की. पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी और सह प्रभारी नितिन नवीन दो दिन के छत्तीसगढ़ दौरे पर पहुंचे. जहां उन्होंने मैराथन बैठकें ली. बैठक में उन्होंने बीजेपी का "मिशन 2023 विजय छत्तीसगढ़" तय कर दिया है.

शून्य से करें शुरुआत

नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने अपने दौरे के दौरान सांसद, विधायकों, पदाधिकारियों और पिछले चुनाव के प्रत्याशियों से चर्चा की. उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि शून्य से शुरुआत करें. बूथ लेवल पर जाएं, विपक्ष की भूमिका में आए. क्योंकि अब 1000 दिन ही बचे हैं. उन्होंने कहा कि हमें मिशन 2023 के साथ मिशन 2024 भारत विजय के लिए भी जुटने की बात कही है.

कांग्रेस ने बीजेपी के टारगेट पर साधा निशाना

बीजेपी के 1000 दिन के टारगेट को लेकर कांग्रेस ने निशाना साधा है. प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि बीजेपी को केवल सत्ता की लोलुपता है. सत्ता प्राप्ति के लिए बीजेपी किसी भी हद तक जा सकती है. अब जब छत्तीसगढ़ की जनता ने उन्हें ने बुरी तरह से नकार दिया है, ऐसे में चुनाव से 3 साल पहले से ही 1000 दिन के टारगेट लेकर काम करने की बात हो रही है. यह सब सत्ता की लालच में किए जाने वाला काम है. उन्होंने कहा कि किसानों के हित के लिए बीजेपी ने किसी तरह का कोई काम नहीं किया है और लोग इसका जवाब उन्हें दे चुके हैं और आगे आने वाले समय में भी जरूर देंगे

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1000 दिन में सत्ता प्राप्ति आसान नहीं

वरिष्ठ पत्रकार रवि भोई ने कहा है कि बीजेपी के लिए 1000 दिन में सत्ता प्राप्ति करना आसान नहीं होगा. नई प्रभारी ने 1000 दिन के लिए टारगेट जरूर दिया है, होना भी चाहिए, लेकिन इसके लिए विपक्ष भी मजबूत हो. उन्होंने कहा कि 1000 दिनों में बीजेपी को ना केवल सरकार से लड़ना है बल्कि अपने बीच के गुटीय राजनीति से भी लड़ना है. साथ ही कार्यकर्ताओं को भी उत्साह जगह के फील्ड में लाना बड़ी चुनौती होगी. केवल सत्ता प्राप्ति के लिए इस तरह के टारगेट देना पार्टी को नुकसान ना पहुंचा सकता है.

कांग्रेस सरकार की रीति नीति के खिलाफ सड़क पर उतरना होगा

अपने दौर पर बीजेपी की नई प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने साफ तौर पर कहा है कि कांग्रेस सरकार को हमने 2 साल का वक्त दिया है मगर यह सरकार फ्लॉप रही. उन्होंने कहा कि अब पूरा फोकस विपक्ष को मजबूत बनाने पर होगा, जिस तरह से विपक्ष की भूमिका को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं, इसे लेकर बीजेपी नए सिरे से तैयारी कर रही है. यही वजह है कि 1000 दिनों के टारगेट को लेकर पार्टी काम कर रही है, लेकिन 1000 दिन का टारगेट इतना आसान नहीं है.

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2018 के चुनाव में सबसे बुरी हार

छत्तीसगढ़ में राज्य बनने के बाद 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता मिली. 2003, 2008, 2013 लगातार 15 सालों तक प्रदेश की जनता ने बीजेपी को मौका दिया. लेकिन 2018 में पार्टी ने इतनी बुरी हार की कल्पना नहीं की थी. मिशन 65 का लक्ष्य रखने के बाद महज 15 सीटों पर बीजेपी सिमट गई. पिछले 15 सालों में विपक्ष में रहते हुए भी कांग्रेस इतनी कम सीटों में कभी नहीं रही है. जितनी आज बीजेपी की है. बीजेपी को 15 सीटों से 45 सीटों से पार पहुंचना बड़ी चुनौती होगी.

गुटबाजी समाप्त करना बड़ी चुनौती

विपक्ष में आने के बाद जिस तरह से बीजेपी में तमाम तरह के अलग-अलग गुट और समीकरण दिख रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में तमाम गुटों को साध कर एक साथ में लाना बड़ी चुनौती रहेगी. सत्ता सरकार में रहते हुए बीजेपी को अनुशासन वाली पार्टी के रूप में जाना जाता रहा है, वहीं विपक्ष में आने के बाद लगातार कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी खुल कर देखने को मिल रही है. ऐसे में ना केवल कार्यकर्ता, बड़े नेताओं के तमाम मतभेद को दूर करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है.

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