रायपुर : छत्तीसगढ़ में पौष महीने की पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन बच्चे और बड़े घर-घर जाकर भिक्षा मांगते हैं. वैसे तो आमतौर पर भीख मांगना समाज में अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन साल में इस खास दिन भिक्षा मांगने की परंपरा रही है. इस लोकपर्व के माध्यम से आप छत्तीसगढ़ की परंपराओं की गहराई का अंदाजा लगा सकते हैं.
धान मांगने की परंपरा
जानकार मानते हैं कि 'हमारे पूर्वजों ने खुद के अहंकार को मारने के लिए इस लोकपर्व की शुरुआत की थी'. माना जाता है कि देने वाला मांगने वाले से बड़ा होता है तभी तो इस दिन अपने आसपास के गली मोहल्लों में धान मांगकर हम अपने अहंकार को मार सकते हैं.
ग्रामीण इलाकों में छेरछेरा से मिले अनाज और राशि से गांव में छोटे मोटे सार्वजनिक काम किए जाते है या सार्वजनिक उत्सव ही मना लिया जाता है. पौष पूर्णिमा की सुबह आप ग्रामीण इलाकों में बाल टोलियों को ये कहते हुए सुन सकते हैं.
'छेर छेरा.. माई कोठी के धान ल हेर हेरा…'
कई गांवों में मान्यता है कि छेरछेरा पुन्नी के मौके पर धान दान देना शुभ होता है. दान देने वाले किसान की कोठी हमेशा भरी रहती है.