रायपुरः छठ (Chath) पर्व नहीं बल्कि महापर्व (Mahaparw) है. भगवान सूर्य (Lord sun) जो कि साक्षात देवता है उनकी पूजा का विशेष पर्व है छठ (Chath). इस पर्व में व्रती कठिन व्रत करती हैं, जो कि किसी तपस्या से कम नहीं. कार्तिक मास (Kartik month) की चौथ से ही इस पर्व की शुरुआत हो जाती है. पहला दिन नहाय खाय (Nahaay khaay) का होता है. फिर खरना (Kahrna)और संध्या अर्घ्य (Sandhya Arghya) के बाद सप्तमी को उषा अर्घ्य (Usha Arghya) के साथ व्रत की समाप्ति होती है. कहते हैं कि माता सीता (Mata Sita) ने छठ व्रत (Chhath Vrat) की शुरूआत की थी. वहीं कई जगहों में वर्णित है कि द्रौपदी (Draupadi) और कर्ण (Karn) ने भी इस व्रत को किया था. यानी कि रामायण (Ramayan) और महाभारत (Mahabharat) काल में भी इस व्रत को किया गया था.
Chath puja special: इसलिए छठ पूजा के समय ही गाया जाता है छठ गीत
पहले दिन नहाय खाय
नहाय खाय का दिन शुद्ध होना का दिन होता है. इस दिन व्रती गंगाजी में स्नान करके फिर कद्दू की सब्जी चने की दाल और चावल बनाकर व्रत की शुरुआत करती है. इस दिन के भोजन में सेंधा नमक का इस्तेमाल होता है. इस दिन खाने में किसी विशेष प्रकार के मसाले का उपयोग नहीं किया जाता. कई लोग इस दिन को लौका भात भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन लौकी की सब्जी और चावल खाने के साथ व्रती व्रत की शुरुआत करती हैं.
दूसरा दिन खरना
दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रख कर शाम को प्रसाद में खीर और रोटी मिट्टी के चूल्हे पर पकाती हैं. फिर खीर और रोटी के साथ फलों को छठ मैया को भोग लगाया जाता है, उसके बाद व्रती खरना करती हैं. व्रती के प्रसाद ग्रहन करने के बाद घर के और सदस्य उस प्रसाद को ग्रहण करते हैं.
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य
तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है. खरना के दिन से शुरु हुई व्रत इस दिन भी जारी रहता है. व्रती निर्जल व्रत में रहकर पूरे दिन छठ का खास प्रसाद ठेकुआ, पुआ, पुड़ी वगैरह पकाती हैं. उसके बाद गंगा घाट जाकर व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैया को सूप में प्रसाद अर्पित करती हैं. प्रसाद में मौसमी फलों के साथ केले का घउद, नारियल और गन्ना के साथ मौसमी फलों का विशेष महत्व होता है.
चौथा और अंतिम दिन उषा अर्घ्य
शाम का अर्घ्य देकर व्रती घर लौट आती है फिर दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व घाट पहुंचकर कमर तक पानी में डूबकर भगवान सूर्य के उदय होने का इंतजार करती हैं. कहते हैं कि उषा अर्घ्य के दिन सूर्य देवता जरा देरी से उगते हैं. व्रती घाट पर जल का लोटा लेकर भगवान सूर्य की आराधना करती है. फिर सूर्योंदय के समय उषा अर्घ्य के साथ व्रत को पूरा करती हैं.
ये है छठ व्रत कथा (Chhath fasting story)
कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों की कोई संतान नहीं थी.इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे.उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं. नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ. इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ.
संतान शोक में उन्होंने आत्महत्या का मन बना लिया, लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की, उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं. देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं. मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं. यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी. देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया.
राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा की. इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा.