रायपुर:9 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि का तृतीय और चतुर्थी पर्व एक साथ मनाया जाएगा. तिथि विलोप के कारण माता चंद्रघंटा स्वरूप और कुष्मांडा माता की पूजा एक ही दिन की जाएगी. यहां पहले हम चंद्रघंटा माता की स्वरूप रूप पूजा विधि का वर्णन करेंगे. चंद्रघंटा माता अपने मुकुट पर घंटे की आकृति से चंद्र को धारण की हुई है. इसलिए माता चंद्रघंटा देवी कहलाती है. ऐसे जातक जिनको चंद्रमा की कमजोरी हो या ऐसे बच्चे जो बोलने में विलंब हो या जिनकी बुद्धि थोड़ी धीमी हो. ऐसे जातकों को निश्चित ही माता चंद्रघंटा की उपासना साधना करनी चाहिए. चंद्रघंटा माता के 10 हाथ हैं. माता की साधना करने पर मणिपुर चक्र जागृत होता है. चंद्रघंटा देवी वीरता निर्भयता के साथ सौम्यता प्रदान करने वाली है.
चंद्रघंटा माता की कहानी
मान्यता है कि महिषासुर नामक राक्षस में जब इंद्र पर कब्जा कर लिया. वायु और चंद्रमा की शक्तियों को शून्य कर दिया तब चंद्रघंटा माता वीरता के फल स्वरुप आगे चलकर महिषासुर मारा गया. माता महिषासुर मर्दिनी भी कहलाती है. विशाखा नक्षत्र तृतीय योग शुभ योग गर और करण के सुयोग में माता चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी. ऐसे जातक जिनकी कुंडली में चंद्रमा और शनि की युति है. उन्हें विशेष रुप से ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान ध्यान योग से निवृत्त होकर चंद्रघंटा माता की साधना आराधना करनी चाहिए.