रायपुर: छत्तीसगढ़ की सत्ता में 15 साल तक काबिज रही भारतीय जनता पार्टी सत्ता जाने के बाद अब तमाम तरह के गुटबाजी और राजनीति का शिकार हो रही है. सत्ता गंवाने के बाद अब पार्टी में संगठन चुनाव को लेकर भी लंबे समय से कवायद चल रही है. पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद अबतक सभी जिलों में अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हो पाई है. जिन जगहों पर नियुक्ति की भी जा रही है, वहां पर संगठन और पदाधिकारियों के बीच विवाद खुलकर सामने आ रहा है. इतना ही नहीं पार्टी के पूर्व विधायक और संगठन के बड़े नेताओं के बीच भी विवाद सोशल मीडिया देखा जा सकता है. ऐसे में पक्ष को भी पार्टी की अंदरूनी मामलों को लेकर बयानबाजी का मौका मिल गया है.
अनुशासन वाली पार्टी में अंतर्कलह भाजपा को अनुशासन और कैडर बेस्ड पार्टी माना जाता रहा है, लेकिन सत्ता गंवाने के बाद अब तमाम तरह की नाराजगी खुलकर दिखने लगी है. अबतक संगठन चुनाव पूरी तरह नहीं हो पाया है. पहले प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति इसके बाद जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पूरी तरह नहीं हो पाई है. बीजेपी के दो वरिष्ठ प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने और श्रीचंद सुंदरानी के बीच भी जुबानी जंग जमकर चल रही है.
सोशल मीडिया पर श्रीचंद सुंदरानी ने सच्चिदानंद उपासने को चुनौती दे दी है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लगाए गए तमाम आरोपों को सिद्ध करने की बात कही है. उन्होंने कहा कि, 'आरोप को सिद्ध करें मैं राजनीति से हमेशा के लिए अपने आपको अलग कर दूंगा, अन्यथा आप खेद व्यक्त करें'.
रेणुका सिंह ने किया फेसबुक पोस्ट
ताजा मामला जिला अध्यक्ष की नियुक्ति का है प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने एक-एक कर कुछ जिलों में जिला अध्यक्षों की घोषणा कर दी है. जशपुर और सरगुजा के जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद विवाद गहरा गया है. केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह ने इशारों-इशारों में नियुक्ति को लेकर सवाल खड़ा किया है. उन्होंने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि गलत तरीके अपनाकर सफल होने से बेहतर है सही तरीके से काम करके असफल होना. पार्टी के लोग इस तरह की पोस्ट को सरगुजा और सूरजपुर जिला अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद चल रही अंदरूनी खींचतान को जोड़कर देख रहे हैं.
सत्ता जाने के बाद बिखरी भाजपा
भाजपा के अंदरूनी कलह सामने आने के बाद सत्ता सरकार में बैठी कांग्रेस को एक बड़ा मौका मिल गया है. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग के चेयरमैन शैलेश नितिन त्रिवेदी ने आरोप लगाते हुए कहा है कि, 'सत्ता जाने के बाद भाजपा पूरी तरह बिखर गई है. नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने सत्ता जाने के तुरंत बाद ही कार्यकर्ताओं को हार के लिए जिम्मेदार ठहराया है. वहीं रायपुर में सच्चिदानंद उपासने और श्रीचंद सुंदरानी दोनों रायपुर उत्तर के लिए दावेदार थे. यह उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा के साथ भाजपा के भीतर आ रही निरंतरता और बिखराव का जीता जागता उदाहरण है. उपासने के परिवार ने तो भाजपा के लिए बड़ा त्याग किया है. उनकी मां रजनी ताई उपासने विधायक रही हैं. सत्ता के मद में सुंदरानी जैसे लोग उनपर टिप्पणी कर रहे हैं, तो यह भाजपा पर भी अंतर विचार होना चाहिए'.
पार्टी का अध्यक्ष परिवार का ही
कांग्रेस के आरोप को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने पलटवार किया है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि,'जो लोग अपने पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बना पा रहे हैं, कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी काम कर रही हैं, वह लोग भाजपा की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं तो हास्यास्पद लगता है. सत्ता सरकार आने के 18 महीने बाद भी निगम मंडलों की नियुक्ति पूरी तरह से नहीं कर पा रही है. कांग्रेस में आपसी अंतर्कलह साफ तौर पर दिख रहा है. भाजपा में संगठन चुनाव को लेकर पूरी एक प्रक्रिया होती है, भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी चुनाव हुए हैं. प्रदेश में कुछ जिलों में नियुक्तियां भी हो गई हैं, क्या कांग्रेस यह कह सकती है कि जिस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से भाजपा में चुनाव होते हैं, क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया उनके पार्टी में होगी'. यही नहीं वे आरोप लगाते हुए कहते हैं कि, 'उनकी पार्टी का यह कौन सा लोकतंत्र है जो देश का एक परिवार ही उनके राष्ट्रीय पार्टी का अध्यक्ष बनता है'.
भाजपा संगठन में समर्पण की कमी
भाजपा के तमाम तरह के विवाद को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुसदकर कहते हैं कि, भाजपा अनुशासित पार्टी रही है, लेकिन तबतक, जब वह वह सत्ता में थी. आज की स्थिति में हालात यह हो गए हैं कि सत्ता जाने के लंबे समय बाद भी राजधानी में जिलाध्यक्ष नहीं बना पाया है. ऐसे में आप लड़ाई कैसे लड़ेंगे, खुद की ही लड़ाई लड़ने में फुर्सत नहीं दिख रही है, तो वह सरकार से कैसे लड़ेंगे. जब यह सत्ता सरकार में रहे हैं तो सारी चीजों को लेकर सशक्त नेतृत्व था और कार्रवाई का डर था. यहीं वजह है कि उस समय अनुशासन दिखता रहा है. भाजपा के साथ एक चीज है लंबे समय से देखने को छत्तीसगढ़ में मिली है. जब-जब भाजपा छत्तीसगढ़ में विपक्ष में रही है तब वह टूटने वाली पार्टी दिखती है.
अजीत जोगी शासनकाल में टूटे थे विधायक
उन्होंने कहा कि विपक्ष में रहते हुए ही अजीत जोगी शासनकाल में भी इनके 12 विधायक टूट कर दूसरे पार्टी की ओर भी रुख कर चुके थे. अब पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से भटक गई है. इनके संगठन मंत्री कहां रहते हैं, उनकी कोई खबर नहीं दिखती है. वह कार्यकर्ताओं के घर नहीं जाते हैं, कार्यकर्ताओं को पहचानते भी नहीं हैं. 5 स्टार ही नहीं 7 स्टार कल्चर भाजपा में आ गया है. जिसके घर में जाएंगे वहां वे पहले से बता देते हैं कि किस होटल का खाना मंगाना है, तब वह खाएंगे. जबकि इन के पुराने संगठन मंत्री गोविंद सारंग और कुशाभाऊ ठाकरे पूरी तरह पार्टी को समर्पित रहे हैं, गोविंद सारंग तो सीधे कार्यकर्ताओं के मिलने बस में जाते थे. अब कार्यकर्ताओं से ही संगठन की दूरी ने पार्टी को इस हालात में लाकर खड़ा कर दिया है'.
समय से साथ बढ़ रही चुनौती
बता दें, हालहि में संघ प्रमुख मोहन भागवत के प्रवास के दौरान भी भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने पार्टी की हार के पीछे बड़े नेताओं की मनमानी और परिश्रम नहीं परिक्रमा को तवज्जो देने की बात कह दी थी. ऐसे में भाजपा के सामने विपक्ष की दमदार भूमिका को लेकर भी अब आने वाले समय में चुनौती और ज्यादा बढ़ती दिख रही है.