रायपुर: राजधानी रायपुर के भाजपा जिला कार्यालय एकात्म परिसर में भारतीय जनता पार्टी ने प्रेसवार्ता की. शैक्षणिक संस्थाओं में जनजातियों के आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट के निर्णय पर भाजपा वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय , रामविचार नेताम , विष्णु देव साय , विकास उसेंडी ने कांग्रेस को घेरा. नंदकुमार साय ने कहा "जो आरक्षण कम हुआ, उसकी जिम्मेदार सरकार है. सरकार ने ध्यान नहीं दिया. अच्छे वकील नहीं लगाए.''
सरकार की लापरवाही निंदनीय है: भाजपा वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय ने बताया " शैक्षणिक संस्थाओं में 32% आरक्षण को हाईकोर्ट ने नहीं माना और 12% कम कर दिया. जनता व्यथित है. आरक्षण पर हाईकोर्ट के निर्णय की पूरी जिम्मेदार कांग्रेस सरकार की है. प्रदेश में जनजाति का महत्व है, इसलिए छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ है. सरकार की लापरवाही निंदनीय है. बड़े बड़े भ्रष्टाचारी को बचाने के लिए 50-50 लाख में वकील किए गए थे, लेकिन जनजाति को बचाने के लिए कांग्रेस ने एक वकील भी अच्छा नहीं रखा. सरकार को इस पर पुर्नविचार करना चाहिए.''
कांग्रेस सरकार बताए आरक्षण को बचाने के लिए सरकार ने क्या किया? :भाजपा वरिष्ठ नेता रामविचार नेताम ने बताया " क्षेत्रीय आधार पर पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह ने आरक्षण दिया था. भाजपा सरकार होने पर कोई दिक्कत नहीं हुई. कांग्रेस सरकार के आते ही जनजातियों पर खतरा मंडराने लगा है. पदोन्नति का भी निर्णय बनाने में सरकार को बरसों लगते हैं.
मोहन मरकाम ने बीजेपी पर किया पलटवार :मोहन मरकाम ने कहा कि ''रमन सरकार ने आरक्षण में संशोधन के पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती फैसले को ध्यान में नहीं रखा.बाद में दोबारा संशोधित जवाब पेश करते हुए कुछ डेटा प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया. लेकिन वो भी प्रयाप्त नहीं थे. आरक्षण को बढ़ाने के लिये तत्कालीन सरकार ने तत्कालीन गृहमंत्री ननकी राम कंवर की अध्यक्षता में 2010 में मंत्रिमंडलीय समिति का भी गठन किया था. रमन सरकार ने उसकी अनुशंसा को भी अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया. जिसका परिणाम है कि अदालत ने 58 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को रद्द कर दिया.
मरकाम ने कहा की कांग्रेस कि ''सरकार बनने के बाद अंतिम बहस में तर्क प्रस्तुत किया गया. मंत्रिमंडलीय समिति के बारे में जानकारी दी गयी. लेकिन पुराने हलफनामे उल्लेख नहीं होने के कारण अदालत ने स्वीकार नहीं किया. इस प्रकरण में जब राज्य सरकार की अंतिम बहस हुई. तो खुद महाधिवक्ता मौजूद रहे थे. उन्होंने मंत्रीमंडलीय समिति की हजारों पन्नों की रिपोर्ट को कोर्ट में प्रस्तुत किया था. लेकिन कोर्ट ने ये कहते हुए उसे खारिज कर दिया कि राज्य शासन ने कभी भी उक्त दस्तावेजों को शपथ पत्र का हिस्सा ही नहीं बनाया. लिहाजा, कोर्ट ने उसे सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं किया.
क्या था हाईकोर्ट का फैसला : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में प्रदेश के इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में 58% आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था. चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पीपी साहू की बेंच ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि किसी भी स्थिति में आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं होना चाहिए. हाईकोर्ट में राज्य शासन के साल 2012 में बनाए गए आरक्षण नियम को चुनौती देते हुए अलग-अलग 21 याचिकाएं दायर की गई थी, जिस पर कोर्ट ने करीब दो माह पहले फैसला सुरक्षित रखा था, लेकिन सोमवार को निर्णय आया है.
राज्य शासन ने वर्ष 2012 में आरक्षण नियमों में संशोधन करते हुए अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण प्रतिशत चार प्रतिशत घटाते हुए 16 से 12 प्रतिशत कर दिया था. वहीं, अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 20 से बढ़ाते हुए 32 प्रतिशत कर दिया.इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 14 प्रतिशत यथावत रखा गया. अजजा वर्ग के आरक्षण प्रतिशत में 12 फीसदी की बढ़ोतरी और अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण में चार प्रतिशत की कटौती को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी.