रायपुर: हिंदी साहित्य को पहली कहानी देने वाले पं. माधवराव सप्रे की 19 जून को 150वीं जयंती है. (Pandit Madhavrao Sapre birth anniversary) छत्तीसगढ़ के लाल वर्षों पहले जब देश में गिनी चुनी पत्रिकाएं निकलती थी, उस दौर में यानी 19वीं शताब्दी की शुरुआत में बिलासपुर के एक छोटे से गांव पेंड्रा से 'छत्तीसगढ़ मित्र' पत्रिका निकालकर देशभर में क्रांति की अलख जगाई थी. (Chhattisgarh Mitra Patrika ) देश के हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में पंडित माधवराव सप्रे एक बड़ा नाम हैं. आज भले ही डिजिटल और टेलीविजन के पत्रकारिता के दौर में कई तरह की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन आज से करीब 120 साल पहले छत्तीसगढ़ के दुरंचल में माधवराव सप्रे ने 'छत्तीसगढ़ मित्र' की शुरुआत की थी. उन्होंने नैतिक मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता का आधार स्तंभ बनाते हुए पत्रकारिता और हिंदी साहित्य की लौ जलाई थी.
दुनिया को बताया पूजनीय हैं नारी
देश के हिंदी साहित्य को पहली कहानी देने वाले पंडित माधवराव सप्रे का नाम उन महापुरुषों में शामिल किया जाता है जो आधुनिक भारतीय समाज के निर्माण में नींव का पत्थर साबित हुए. आज से 120 साल पहले जब देश में गिने चुने प्रिंटिंग प्रेस हुआ करते थे, तब उन्होंने बिलासपुर जिले के पेंड्रा से ना सिर्फ नैतिक पत्रकारिता बल्कि सामाजिक मूल्यों को लेकर भी एक अलख जगाई. (first story in hindi ) पंडित माधवराव सप्रे का भारतीय नारी के उत्थान में अतुलनीय योगदान रहा है. एक संपादक और पत्रकार के रूप में सप्रे ने भारतीय महिला की दशा और दिशा पर कई पत्रिकाएं प्रकाशित की. विशेषकर स्त्री को शिक्षा का अधिकार और कर्तव्य के साथ उपलब्धियां और उनकी शौर्य गाथाओं का प्रकाशन कर उन्होंने दुनिया को यह बतलाने का सार्थक प्रयास किया कि नारी पूजनीय है. रायपुर में भी पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की स्थापना का श्रेय पंडित माधव राव सप्रे को ही जाता है. रायपुर में बूढ़ा तालाब के पास आज भी सालों से पंडित माधवराव सप्रे स्कूल का संचालन किया जा रहा है. उनके नाम से एक ऐतिहासिक मैदान भी है, जहां देश के तमाम दिग्गज नेता भी आ चुके हैं.
समाज को दिशा देना था मुख्य उद्देश्य
वरिष्ठ साहित्यकार और 'छत्तीसगढ़ मित्र' के वर्तमान में संपादक डॉ सुशील त्रिवेदी (Editor Dr Sushil Trivedi ) कहते हैं, 'पंडित माधव राव सप्रे जी ने आज से 121 साल पहले ही पत्रकारिता की मजबूत शुरुआत की थी. उस समय देशभर में गिनी चुनी पत्रिका निकला करती थी. इलाहाबाद से सरस्वती 1900 में प्रकाशित हुई थी. 1900 में ही पेंड्रा जो कि बिलासपुर का छोटा सा गांव था, हालांकि आज जिला बन गया है, यहां से एक पत्रिका का प्रकाशन किया गया. शुरुआत में पत्रिका का प्रकाशन कुछ दिनों तक रायपुर और बाद में नागपुर से किया गया. सप्रे जी लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak ) के अनुयाई थे, लोकमान्य तिलक ने जो राजनीति में मानदंड निर्धारित किए थे उस आधार पर वे काम कर रहे थे. स्वदेशी की भावना और शिक्षक का काम के साथ ही समाज सुधार और पत्रकारिता का उनका मूल रूप से उद्देश्य लोगों को जागृत करने का था. उन्होंने जब पत्रिका शुरू की तब लिखा कि पत्रकारिता का काम नैतिक मानदंड को निर्धारित करना, समाज को दिशा देना ही उनका उद्देश्य था. यहीं कारण था कि 3 साल तक उनकी पत्रिका निकली उसमें लगातार अच्छे और महान लोगों की जीवनी, शिक्षा, भाषा और इतिहास की समग्र बातें थी. उस जमाने में यह सारी चीजें हिंदी में उपलब्ध नहीं थी. सप्रे जी अंग्रेजी से, बंगाली से, गुजराती से, मराठी से ट्रांसलेट कर इसे प्रकाशित करते थे.'
पत्रकारिता में नैतिक मूल्यों का पतन