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जयंती पर नमन: कला के हस्ताक्षर हबीब के नाम से तनवीर कैसे जुड़ा - आगरा बाजार हबीब तनवीर

आज छत्तीसगढ़ में जन्मे लिजेंड रंगकर्मी हबीब तनवीर की जयंती है. हबीब तनवीर ने अपनी कला से पूरी दुनिया में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया और रंगमंच को एक नई पहचान दी. 'आगरा बाजार' और 'चरणदास चोर' जैसी रचनाओं ने उन्हें अमर कर दिया.

हबीब तनवीर

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Published : Sep 1, 2019, 1:56 PM IST

Updated : Sep 4, 2019, 7:19 PM IST

रायपुर : कला और उससे जुड़े लोगों की अपनी अलग ही पहचान होती है. दुनिया में कई कलाकार आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन बेहद कम ही होते हैं जो लोगों के दिलों में अपनी कला और अपने काम की छाप छोड़ जाते हैं. ऐसे ही कलाकारों में से एक हैं छत्तीसगढ़ में जन्मे लिजेंड रंगकर्मी, प्रख्यात नाटककार, निर्देशक, पटकथा-लेखक, गीतकार और शायर हबीब तनवीर. आज 1 सितंबर को उनकी जयंती है. छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति को पूरी दुनिया में स्थापित करने वाला कलादूत कहा जाए तो गलत नहीं होगा.

हबीब तनवीर की जयंती
  • 1 सितंबर 1923 को रायपुर में जन्मे हबीब साहब का पूरा नाम हबीब अहमद खान था.
  • छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हुआ था हबीब तनवीर का जन्म.
  • उन्होंने एक पत्रकार के तौर पर ऑल इंडिया रेडियो से अपना करियर शुरू किया.
  • इसके बाद कई फिल्मों की पटकथा लिखी जबकि कुछ फिल्मों में उन्होंने काम भी किया.
  • अभिनय की दुनिया में पहला कदम उन्होंने 11-12 साल की उम्र में शेक्सपीयर के लिखे नाटक किंग जॉन प्ले के जरिये रखा था.
  • एक रंगकर्मी के रूप में उनकी यात्रा 1948 में मुंबई इप्टा से सक्रिय जुड़ाव के साथ शुरू हुई.
  • हबीब तनवीर नाट्य निर्देशक, शायर, कवि और अभिनेता भी थे.
  • इसके बाद कुछ समय उन्होंने दिल्ली में बिताया और वहां के स्थानीय ड्रामा कंपनियों में काम किया.
  • उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार (1954) चरणदास चोर (1975) शामिल हैं.
  • 1955 में हबीब लंदन चले गए और ब्रिटेन के रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामाटिक आर्ट में दो सालों तक थिएटर सीखा.
  • इसके बाद वे भारत लौटे और भोपाल में नया थियेटर की स्थापना की इस काम में उनके साथ उनकी पत्नी और अभिनेत्री मोनिका मिश्रा का भी अहम योगदान था.
  • 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित किया था.
  • 8 जून 2009 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में उनका निधन हो गया.

100 से अधिक नाटकों का किया मंचन और सृजन
50 वर्षों की लंबी रंग यात्रा में हबीब तनवीर ने 100 से अधिक नाटकों का मंचन और सृजन किया. वे जितने अच्छे अभिनेता, निर्देशक व नाट्य लेखक थे उतने ही श्रेष्ठ गीतकार, कवि, गायक व संगीतकार भी थे. उनके काम की बारीकियों देखने वाले मानते हैं कि सही मायनों में वे रंगमंच के संपूर्ण कलाकार थे. थिएटर के हर पहलु चाहे वो अभिनय हो, पटकथा या संगीत या अन्य तकनीकी पक्ष हो वे हर विधा की नब्ज जानते थे.

हबीब तनवीर की जयंती में उन्हें याद करते रंगकर्मी

हबीब अहमद खान कैसे बने हबीब तनवीर
हबीब अहमद खान बचपन से कविता लिखने के शौकिन थे वे तनवीर उपनाम से कविता लिखते थे. बाद में ये उपनाम इतना लोकप्रिय हुआ की उन्होंने इसे अपने असल नाम के साथ जोड़ लिया. इस तरह वे हबीब तनवीर के नाम से प्रसिद्ध हो गए.

छत्तीसगढ़ के रंगमंच के कलाकारों के दिलों में जिंदा हैं

हबीब तनवीर के प्रमुख नाटक
हबीब तनवीर अपने बहुचर्चित और बहुप्रशंसित नाटकों ‘चरणदास चोर’ और ‘आगरा बाज़ार’ के लिए हमेशा याद किए जाते हैं. चरणदास चोर 1982 में एडिनबरा इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टिवल में सम्मानित होने वाला पहला भारतीय नाटक था. इसके अलावा पोंगा पंडित, बहादुर कलारिन, शतरंज के मोहरे, मिट्टी की गाड़ी, गांव मेरी ससुराल नांव मोर दमाद, जिन लाहौर नहीं वेख्या को दर्शक आज भी याद करते हैं.
खास बात ये है कि उनके इन नाटकों में छत्तीसगढ़ के कलाकार काम करते थे इनमें से कई गलियों नुक्कड़ों में करते थे तो कई खेती-बाड़ी से जुड़े लोग थे. इस तरह इन ग्रामीणों को लेकर वे विश्व मंच पर गए और सही मायनों में भारतीय रंगमंच को स्थापित किया.

पुरस्कार और सम्मान
⦁ हबीब तनवीर को संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड (1969)
⦁ पद्मश्री अवार्ड (1983)
⦁ संगीत नाटक एकादमी फेलोशीप (1996)
⦁ पद्म विभूषण(2002)
⦁ फ्रांस सरकार ने अपने प्रतिष्ठित सम्मान ‘ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स’ से सम्मानित किया था.
⦁ इसके अलावा कला क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें कालिदास राष्ट्रीय सम्मान, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, नेशनल रिसर्च प्रोफेसरशिप से नवाजा गया.
⦁ वे 1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी रहे.

राज्य में जब मिल जाएगी विशेष पहचान
साल 2009 में हबीब साहब ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन कला जगत में उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा. अगर छत्तीसगढ़ में उनकी याद में कला के क्षेत्र में कोई पहल होती है तो यहां के उभरते कलाकारों को प्रेरणा मिल सकती है. उम्मीद है कि ये माटी पुत्र जल्द ही पूरी दुनिया की तरह अपने घर में भी याद किए जाएंगे और सम्मानित भी किए जाएंगे. सही मायनों में तभी हम छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति का सम्मान कर पाएंगे.

Last Updated : Sep 4, 2019, 7:19 PM IST

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