रायपुर : कला और उससे जुड़े लोगों की अपनी अलग ही पहचान होती है. दुनिया में कई कलाकार आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन बेहद कम ही होते हैं जो लोगों के दिलों में अपनी कला और अपने काम की छाप छोड़ जाते हैं. ऐसे ही कलाकारों में से एक हैं छत्तीसगढ़ में जन्मे लिजेंड रंगकर्मी, प्रख्यात नाटककार, निर्देशक, पटकथा-लेखक, गीतकार और शायर हबीब तनवीर. आज 1 सितंबर को उनकी जयंती है. छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति को पूरी दुनिया में स्थापित करने वाला कलादूत कहा जाए तो गलत नहीं होगा.
- 1 सितंबर 1923 को रायपुर में जन्मे हबीब साहब का पूरा नाम हबीब अहमद खान था.
- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हुआ था हबीब तनवीर का जन्म.
- उन्होंने एक पत्रकार के तौर पर ऑल इंडिया रेडियो से अपना करियर शुरू किया.
- इसके बाद कई फिल्मों की पटकथा लिखी जबकि कुछ फिल्मों में उन्होंने काम भी किया.
- अभिनय की दुनिया में पहला कदम उन्होंने 11-12 साल की उम्र में शेक्सपीयर के लिखे नाटक किंग जॉन प्ले के जरिये रखा था.
- एक रंगकर्मी के रूप में उनकी यात्रा 1948 में मुंबई इप्टा से सक्रिय जुड़ाव के साथ शुरू हुई.
- हबीब तनवीर नाट्य निर्देशक, शायर, कवि और अभिनेता भी थे.
- इसके बाद कुछ समय उन्होंने दिल्ली में बिताया और वहां के स्थानीय ड्रामा कंपनियों में काम किया.
- उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार (1954) चरणदास चोर (1975) शामिल हैं.
- 1955 में हबीब लंदन चले गए और ब्रिटेन के रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामाटिक आर्ट में दो सालों तक थिएटर सीखा.
- इसके बाद वे भारत लौटे और भोपाल में नया थियेटर की स्थापना की इस काम में उनके साथ उनकी पत्नी और अभिनेत्री मोनिका मिश्रा का भी अहम योगदान था.
- 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित किया था.
- 8 जून 2009 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में उनका निधन हो गया.
100 से अधिक नाटकों का किया मंचन और सृजन
50 वर्षों की लंबी रंग यात्रा में हबीब तनवीर ने 100 से अधिक नाटकों का मंचन और सृजन किया. वे जितने अच्छे अभिनेता, निर्देशक व नाट्य लेखक थे उतने ही श्रेष्ठ गीतकार, कवि, गायक व संगीतकार भी थे. उनके काम की बारीकियों देखने वाले मानते हैं कि सही मायनों में वे रंगमंच के संपूर्ण कलाकार थे. थिएटर के हर पहलु चाहे वो अभिनय हो, पटकथा या संगीत या अन्य तकनीकी पक्ष हो वे हर विधा की नब्ज जानते थे.
हबीब अहमद खान कैसे बने हबीब तनवीर
हबीब अहमद खान बचपन से कविता लिखने के शौकिन थे वे तनवीर उपनाम से कविता लिखते थे. बाद में ये उपनाम इतना लोकप्रिय हुआ की उन्होंने इसे अपने असल नाम के साथ जोड़ लिया. इस तरह वे हबीब तनवीर के नाम से प्रसिद्ध हो गए.