रायपुर: साल 2019 गुजर रहा है. इस साल कई ऐसी घटनाएं घटित हुई, जिन्होंने देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा. इन घटनाओं ने न सिर्फ अपनी जगह स्थानीय मीडिया में बनाई बल्कि देशभर के अखबारों और न्यूज चैनल्स की हेडलाइन बनीं. ETV भारत इनसे जुड़ी आपके यादें फिर ताजा कर रहा है.
सबसे पहले एक मार्मिक घटना का जिक्र, जिसने हम सभी को झकझोर दिया, उसके विषय में बताते हैं. पूनम तिवारी रंगमंच की दुनिया का जाना-माना नाम हैं, हबीब तनवीर के साथ थिएटर करने वाली पूनम के बेटे सूरज तिवारी ने छोटी सी उम्र में दुनिया छोड़ दी. पूनम ने जब अपने बेटे का पसंदीदा गाना 'चोला माटी के राम' उसकी पार्थिव देह के पास और अंतिम सफर पर गाया तो जिसने देखा वो रो पड़ा.
सबको रुला गईं पूनम तिवारी...
मां पूनम की तरह सूरज तिवारी बहुत ही जीवट कलाकार थे. पूनम ने कहा कि एक मां होने के बाद भी उन्होंने अपने दर्द को एक किनारे रख कर एक कलाकार होने के नाते अपने पुत्र को अंतिम विदाई दी. उनका कहना है कि, 'सूरज तिवारी टीम का लीडर रहा है. वह काफी मजे लेकर गाता और बजाता था. जब हम मां और बेटे एक साथ गाते और बजाते थे, तो अलग ही दुनिया में खो जाते थे. कभी महसूस नहीं होता कि एक मां और एक बेटे की भूमिका में हैं इसलिए सूरज को अंतिम विदाई शब्द या आंसू से नहीं बल्कि संगीत से दी जा सकती थी. मैंने अपने मां होने के दर्द को दिल में समेटकर सूरज को संगीत से अंतिम विदाई दी है ताकि उसे भी यह महसूस न हो कि मुझे अंतिम विदाई संगीत से नहीं दी गई'. इस दृश्य ने मानवीय संवेदनाएं रखने वाले हर शख्स के ह्दय को आंसुओं से भिगो दिया था.
आदिवासियों का आंदोलन-
जल, जंगल और जमीन के लिए आंदोलन को मजबूर हुए आदिवासियों ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा. जून महीने में बैलाडीला में नंदराज पर्वत को बचाने के लिए आदिवासियों ने आंदोलन किया. इस दौरान एनएमडीसी के बाहर जमे मांदर की थाप पर नाचते और बारिश में बीमार होने के बाद भी डटे आदिवासियों की तस्वीरों ने जहां सरकार को बैकफुट पर आने और सफाई देने को मजबूर किया. वहीं कई सवाल आज भी जवाब के इंतजार में हैं.
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने वन मंत्री मोहम्मद अकबर पर सीधे-सीधे आरोप लगाया था कि 12 फरवरी को मोहम्मद अकबर के नेतृत्व में पर्यावरण मंडल की बैठक हुई थी, जिसमें नंद राज पर्वत उसे डिपॉजिट 13 में बदलकर अडानी ग्रुप को लौह अयस्क की खुदाई के लिए दिया गया था, जिसके दस्तावेज मौजूद हैं. हालांकि सरकार ने इससे साफ इनकार कर दिया था.
आदिवासियों ने बैलाडीला डिपॉडिट-13 खदान का एमओयू रद्द किए जाने और पेड़ कटाई के साथ फर्जी ग्राम सभा की जांच होने की मांग की थी.
फेक एनकाउंटर-
साल के अंतिम महीने दिसंबर के शुरू होते ही सारकेगुड़ा मुठभेड़ पर आई रिपोर्ट ने जहां पूरे प्रदेश को हिला कर रखा दिया, वहीं सियासत का पारा भी हाई हुआ. एक सदस्यीय न्यायिक आयोग ने साल 2012 में 28 और 29 जून को हुई सारकेगुड़ा मुठभेड़ का फर्जी करार दिया. न्यायिक आयोग ने सारकेगुड़ा गांव में सात नाबालिगों सहित 17 लोगों की हत्या के लिए सुरक्षाबलों को दोषी ठहराया है.
बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में हुई कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ को एक सदस्यीय न्यायिक आयोग ने फर्जी बताया था. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोग ने राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. तीन गांवों के ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि ये मौतें और चोटें सुरक्षाबलों की ओर से अकारण, अत्यधिक और एकतरफा गोलीबारी के कारण हुईं. ग्रामीणों ने इस घटना की एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की थी. इसे लेकर बहुत सियासत हुई. भाजपा ने कांग्रेस पर रिपोर्ट लीक कर राजनीतिक फायदा लेने का आरोप लगाया है. वहीं कांग्रेस ने तत्कालीन भाजपा सरकार पर निर्दोष आदिवासियों और ग्रामीणों की हत्या करने का आरोप लगाया है.
भीमा मंडावी-
लोकसभा चुनाव होने वाले थे, प्रचार में सभी व्यवस्त थे इसी बीच हुई एक नक्सली घटना ने फिर छत्तीसगढ़ की माटी को खून से रंग दिया था. 9 अप्रैल को नकुलनार के पास नक्सलियों ने तत्कालीन भाजपा विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर हमला किया, जिसमें उनकी जान चली गई. इस हमले में 5 PSO की भी जान गई.
पति की मौत के कुछ दिन बाद जब मतदान हुए तब भीमा मंडावी की पत्नी परिवार के साथ वोट डालने पहुंची थी. उनकी इस तस्वीर ने लोकतंत्र पर और भरोसा कायम तिया था. दंतेवाड़ा में हुए उपचुनाव में भाजपा ने उनकी पत्नी ओजस्वी मंडावी को प्रत्याशी बनाया था और कांग्रेस ने देवती कर्मा को. जीत देवती कर्मा की हुई थी.
धान पर घमासान-
धान के कटोरे ने धान की वजह से भी इस साल बड़ी सुर्खियां बटोरी और इसकी वजह थी केंद्र और राज्य सरकार के बीच समर्थन मूल्य और बोनस को लेकर तनातनी. सड़क से लेकर सदन तक धान पर घमासान मचा रहा, इसकी वजह से खरीदी में भी देरी हुई लेकिन नुकसान और परेशानी अन्नदाता के हिस्से आई.
धान पर ऐसी सियासत प्रदेश में कभी नहीं हुई. कांग्रेस ने वादा किया कि किसानों से धान 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जाएगा. अन्नादाता खुश था लेकिन केंद्र सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई. केंद्र सरकार ने शर्त रख दी है कि उसकी ओर से तय किए गए मूल्य से अधिक में धान की खरीदी की गई, तो बोनस की राशि नहीं दी जाएगी. बस यहीं से शुरू हुई खींचतान. दूसरी ओर प्रदेश में लेट से मानसून आने और कई जिलों में सूखे को देखते हुए सरकार को धान खरीदी की तारीख 15 नवंबर से बढ़ाकर 1 दिसंबर करनी पड़ी. सरकार ने एक समिति बनाई है, जो किसानों को बाकी की राशि कैसे दे, इस पर फैसला लेगी. प्रशासन की कार्रवाई भी इस बार सुर्खियों में रही.
लोकसभा और नगरीय निकाय चुनाव-
आम चुनाव और नगरीय निकाय चुनावों ने भी प्रदेश की फिजा में इस साल सियासत घोले रखी. लोकसभा चुनाव में जहां इस बार फिर भाजपा, कांग्रेस पर भारी रही तो नगरीय निकाय चुनाव पंजे के नाम रहा. प्रदेश के 10 में से 9 नगर निगम में कांग्रेस काबिज होती दिख रही है, तो भाजपा के हाथ कुछ खास नहीं आया.