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अलविदा 2019: छत्तीसगढ़ की वो 12 खबरें, जो राष्ट्रीय सुर्खियां बनीं - छत्तीसगढ़ का साल 2019

साल 2019 ने छत्तीसगढ़ को खट्टी-मीठी यादें दी हैं. एक तरफ जहां धान पर हुई सियासत ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा तो वहीं दूसरी तरफ पूनम तिवारी सबको रुला गईं. गार्बेज कैफे ने देश में छत्तीसगढ़ की एक अलग पहचान बनाई तो राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आयोजन से सबकी जुबां पर प्रदेश का नाम आया. ऐसी ही कुछ सुर्खियां आपके लिए.

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छत्तीसगढ़ की वो 12 खबरें, जो राष्ट्रीय सुर्खियां बनीं

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Published : Dec 30, 2019, 12:05 AM IST

Updated : Dec 31, 2019, 11:08 PM IST

रायपुर: साल 2019 गुजर रहा है. इस साल कई ऐसी घटनाएं घटित हुई, जिन्होंने देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा. इन घटनाओं ने न सिर्फ अपनी जगह स्थानीय मीडिया में बनाई बल्कि देशभर के अखबारों और न्यूज चैनल्स की हेडलाइन बनीं. ETV भारत इनसे जुड़ी आपके यादें फिर ताजा कर रहा है.

अलविदा 2019

सबसे पहले एक मार्मिक घटना का जिक्र, जिसने हम सभी को झकझोर दिया, उसके विषय में बताते हैं. पूनम तिवारी रंगमंच की दुनिया का जाना-माना नाम हैं, हबीब तनवीर के साथ थिएटर करने वाली पूनम के बेटे सूरज तिवारी ने छोटी सी उम्र में दुनिया छोड़ दी. पूनम ने जब अपने बेटे का पसंदीदा गाना 'चोला माटी के राम' उसकी पार्थिव देह के पास और अंतिम सफर पर गाया तो जिसने देखा वो रो पड़ा.

सबको रुला गईं पूनम तिवारी...
मां पूनम की तरह सूरज तिवारी बहुत ही जीवट कलाकार थे. पूनम ने कहा कि एक मां होने के बाद भी उन्होंने अपने दर्द को एक किनारे रख कर एक कलाकार होने के नाते अपने पुत्र को अंतिम विदाई दी. उनका कहना है कि, 'सूरज तिवारी टीम का लीडर रहा है. वह काफी मजे लेकर गाता और बजाता था. जब हम मां और बेटे एक साथ गाते और बजाते थे, तो अलग ही दुनिया में खो जाते थे. कभी महसूस नहीं होता कि एक मां और एक बेटे की भूमिका में हैं इसलिए सूरज को अंतिम विदाई शब्द या आंसू से नहीं बल्कि संगीत से दी जा सकती थी. मैंने अपने मां होने के दर्द को दिल में समेटकर सूरज को संगीत से अंतिम विदाई दी है ताकि उसे भी यह महसूस न हो कि मुझे अंतिम विदाई संगीत से नहीं दी गई'. इस दृश्य ने मानवीय संवेदनाएं रखने वाले हर शख्स के ह्दय को आंसुओं से भिगो दिया था.

सूरज तिवारी

आदिवासियों का आंदोलन-
जल, जंगल और जमीन के लिए आंदोलन को मजबूर हुए आदिवासियों ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा. जून महीने में बैलाडीला में नंदराज पर्वत को बचाने के लिए आदिवासियों ने आंदोलन किया. इस दौरान एनएमडीसी के बाहर जमे मांदर की थाप पर नाचते और बारिश में बीमार होने के बाद भी डटे आदिवासियों की तस्वीरों ने जहां सरकार को बैकफुट पर आने और सफाई देने को मजबूर किया. वहीं कई सवाल आज भी जवाब के इंतजार में हैं.

आदिवासियों का आंदोलन

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने वन मंत्री मोहम्मद अकबर पर सीधे-सीधे आरोप लगाया था कि 12 फरवरी को मोहम्मद अकबर के नेतृत्व में पर्यावरण मंडल की बैठक हुई थी, जिसमें नंद राज पर्वत उसे डिपॉजिट 13 में बदलकर अडानी ग्रुप को लौह अयस्क की खुदाई के लिए दिया गया था, जिसके दस्तावेज मौजूद हैं. हालांकि सरकार ने इससे साफ इनकार कर दिया था.

आदिवासियों ने बैलाडीला डिपॉडिट-13 खदान का एमओयू रद्द किए जाने और पेड़ कटाई के साथ फर्जी ग्राम सभा की जांच होने की मांग की थी.

फेक एनकाउंटर-
साल के अंतिम महीने दिसंबर के शुरू होते ही सारकेगुड़ा मुठभेड़ पर आई रिपोर्ट ने जहां पूरे प्रदेश को हिला कर रखा दिया, वहीं सियासत का पारा भी हाई हुआ. एक सदस्यीय न्यायिक आयोग ने साल 2012 में 28 और 29 जून को हुई सारकेगुड़ा मुठभेड़ का फर्जी करार दिया. न्यायिक आयोग ने सारकेगुड़ा गांव में सात नाबालिगों सहित 17 लोगों की हत्या के लिए सुरक्षाबलों को दोषी ठहराया है.

फेक एनकाउंटर

बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में हुई कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ को एक सदस्यीय न्यायिक आयोग ने फर्जी बताया था. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोग ने राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. तीन गांवों के ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि ये मौतें और चोटें सुरक्षाबलों की ओर से अकारण, अत्यधिक और एकतरफा गोलीबारी के कारण हुईं. ग्रामीणों ने इस घटना की एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की थी. इसे लेकर बहुत सियासत हुई. भाजपा ने कांग्रेस पर रिपोर्ट लीक कर राजनीतिक फायदा लेने का आरोप लगाया है. वहीं कांग्रेस ने तत्कालीन भाजपा सरकार पर निर्दोष आदिवासियों और ग्रामीणों की हत्या करने का आरोप लगाया है.

भीमा मंडावी-
लोकसभा चुनाव होने वाले थे, प्रचार में सभी व्यवस्त थे इसी बीच हुई एक नक्सली घटना ने फिर छत्तीसगढ़ की माटी को खून से रंग दिया था. 9 अप्रैल को नकुलनार के पास नक्सलियों ने तत्कालीन भाजपा विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर हमला किया, जिसमें उनकी जान चली गई. इस हमले में 5 PSO की भी जान गई.

भीमा मंडावी

पति की मौत के कुछ दिन बाद जब मतदान हुए तब भीमा मंडावी की पत्नी परिवार के साथ वोट डालने पहुंची थी. उनकी इस तस्वीर ने लोकतंत्र पर और भरोसा कायम तिया था. दंतेवाड़ा में हुए उपचुनाव में भाजपा ने उनकी पत्नी ओजस्वी मंडावी को प्रत्याशी बनाया था और कांग्रेस ने देवती कर्मा को. जीत देवती कर्मा की हुई थी.

धान पर घमासान-
धान के कटोरे ने धान की वजह से भी इस साल बड़ी सुर्खियां बटोरी और इसकी वजह थी केंद्र और राज्य सरकार के बीच समर्थन मूल्य और बोनस को लेकर तनातनी. सड़क से लेकर सदन तक धान पर घमासान मचा रहा, इसकी वजह से खरीदी में भी देरी हुई लेकिन नुकसान और परेशानी अन्नदाता के हिस्से आई.

धान पर घमासन

धान पर ऐसी सियासत प्रदेश में कभी नहीं हुई. कांग्रेस ने वादा किया कि किसानों से धान 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जाएगा. अन्नादाता खुश था लेकिन केंद्र सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई. केंद्र सरकार ने शर्त रख दी है कि उसकी ओर से तय किए गए मूल्य से अधिक में धान की खरीदी की गई, तो बोनस की राशि नहीं दी जाएगी. बस यहीं से शुरू हुई खींचतान. दूसरी ओर प्रदेश में लेट से मानसून आने और कई जिलों में सूखे को देखते हुए सरकार को धान खरीदी की तारीख 15 नवंबर से बढ़ाकर 1 दिसंबर करनी पड़ी. सरकार ने एक समिति बनाई है, जो किसानों को बाकी की राशि कैसे दे, इस पर फैसला लेगी. प्रशासन की कार्रवाई भी इस बार सुर्खियों में रही.

लोकसभा और नगरीय निकाय चुनाव-
आम चुनाव और नगरीय निकाय चुनावों ने भी प्रदेश की फिजा में इस साल सियासत घोले रखी. लोकसभा चुनाव में जहां इस बार फिर भाजपा, कांग्रेस पर भारी रही तो नगरीय निकाय चुनाव पंजे के नाम रहा. प्रदेश के 10 में से 9 नगर निगम में कांग्रेस काबिज होती दिख रही है, तो भाजपा के हाथ कुछ खास नहीं आया.

लोकसभा और नगरीय निकाय चुनाव

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 11 में 9 सीटें हासिल की, जबकि इस चुनाव में बीजेपी ने पुराने चेहरों की छुट्टी कर नए पर दांव खेला था. नगरीय निकाय चुनाव में फिर पलड़ा कांग्रेस का भारी पड़ा और नगर की चाबी कांग्रेस को मिली. स्थानीय तौर पर फिर लोगों ने पंजे पर भरोसा जताया.

अजीत जोगी का जाति विवाद, अमित जोगी का जेल जाना-
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का जाति विवाद भी बहुत विवादों में रहा. हाई-पावर कमेटी की रिपोर्ट ने अजीत जोगी को आदिवासी नहीं माना था. इसके बाद फर्जी जाति प्रमाणपत्र मामले में छत्‍तीसगढ़ अमित जोगी को बिलासपुर (Bilaspur) से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. अमित जोगी पर अपनी नागरिकता को लेकर गलत जानकारी देने का आरोप लगा. इस दौरान प्रदेश में हाईवोल्टेज सियासी ड्रामा देखने को मिला.

इस दौरान अमित जोगी बीमार पड़े. जेल से हॉस्पिटल शिफ्ट हुए तो इलाज के बाद फिर जेल लाए गए. मां रेणु जोगी ने सीएम से मुलाकात कर कहा भी कि हेल्थ कारणों से उन्हें जमानत मिले. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने इस कार्रवाई को लेकर सरकार पर कई आरोप भी लगाए. लेकिन अमित जोगी को जमानत अपने वक्त पर ही मिली.

मंतूराम पवार-
इस साल सुर्खियां मंतूराम पवार ने खूब बटोरी. अंतागढ़ टेपकांड में वॉयस सैंपल देने के बाद मंतूराम ने पूर्व सीएम रमन सिंह और अजीत जोगी पर बम फोड़ा. एक तरफ जहां उन्होंने टेप में अपनी आवाज की बात मानी वहीं रमन और जोगी से जान का खतरा बताया.

मंतूराम पवार

ETV भारत से खास बातचीत में मंतूराम ने कहा भी था कि उनपर अंतागढ़ चुनाव के दौरान नाम वापसी के लिए काफी दबाव था. यहां तक कि जान को खतरा भी था. मंतूराम के साथ 6 और लोगों ने भी नाम वापस लिया था. इन बाकी लोगों के बारे में पूछने पर मंतूराम ने कहा था कि, 'इन लोगों को भी बीजेपी की ओर से एक करोड़ रुपए नाम वापसी के एवज में देने की बात कही गई थी, लेकिन बाद में 40-50 और 60 हजार रुपए देकर इन्हें चलता कर दिया गया'.

सुपेबेड़ा में मौत और मरहम
सुपेबेड़ा, ये गांव पहचान का मोहताज नहीं है. किडनी की बीमारी से लगातार हो रही मौतों ने इस साल भी इस गांव के हिस्से में जख्म लिखे. गरियाबंद जिले के इस गांव में किडनी की बीमारी से 70 से ज्यादा जान जा चुकी हैं. इस बार मरहम बस इतना लगा कि न सिर्फ स्वास्थ्य मंत्री ने इस मामले में संवेदनशीलता दिखाई बल्कि राज्यपाल ने खुद पीड़ितों का हाल जाना. हालांकि राज्यपाल और सरकार के बीच ठनती भी दिखी.

सुपेबेड़ा में मौत और मरहम

सुपबेड़ा में जब मौत का आंकड़ा 70 पार हुआ तो एक बार फिर सवाल खड़े हुए. स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव खुद सुपेबेड़ा पहुंचे. उनके साथ एम्स के डॉक्टर भी थे. एक तरफ जहां स्वास्थ्य मंत्री ने बेहतर सेवा का वादा किया, वहीं दूसरी तरफ राज्यपाल ने भी पीड़ितों का हाल जाना. वहां के लोगों से मिलकर राज्यपाल ने स्वास्थ्य मंत्री की संवेदनशीलता की तारीफ भी की थी.

हाथियों का उत्पात-
हाथियों और भालुओं का उत्पात छत्तीसगढ़ की बड़ी समस्या है. सरगुजा संभाग खासतौर पर गजराज के गुस्से से परेशान है. इसके अलावा रायपुर और बिलासपुर संभाग भी हाथियों और भालुओं के हमले से परेशान हैं. हर साल जहां हाथियों की वजह से लोगों को फसल गंवानी पड़ती है, वहीं सिर पर से छत भी छिन जाती हैं...कई रातें गांव में रहने वाले लोग रतजगा करके गुजारते हैं. भालुओं के लिए बनी जामवंत योजना भी आंकड़ों के आगे फेल नजर आती है.

प्रदेश के ऐसे कई जिले हैं जहां लोग हाथियों और भालुओं के आंतक से परेशान हैं. हाथियों और भालुए के हमले से जहां लगभग हर दूसरे-तीसरे दिन किसी न किसी की मौत की खबर आती है तो फसलों का नुकसान भी बड़ा सिरदर्द है. कई बार ग्रामीण अपनी जान बचाने के लिए घर की छतों पर रतजगा करते हैं. सूबे को गठन हुए 20 साल होने को हैं लेकिन इस मर्ज की दवा अब तक नहीं मिली है.

गार्बेज कैफे-
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर नगर निगम ने इस बार सबका ध्यान एक खास पहल के लिए खींचा. 9 अक्टूबर को अंबिकापुर नगर निगम द्वारा देश का पहला गार्बेज कैफे शुरू किया गया. सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ ये एक खास पहल है. इस कैफे में आधा किलो पॉलीथिन लाने पर नाश्ता और एक किलो पॉलीथिन लाने पर खाना मिलता है.

गार्बेज कैफे

आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि ये गार्बेज कैफे इतना सक्सेस है कि यहां कुरियर से भी किसी ने प्लास्टिक भेजा है. आधा किलो पॉलीथिन लाने पर नाश्ता और एक किलो पॉलीथिन लाने पर खाना भले यहां मिलता लेकिन उससे ज्यादा मिलती है सिंगल यूज प्लास्टिक यूज न करने और शहर को स्वच्छ रखने की सीख.

आदिवासी नृत्य महोत्सव-
छत्तीसगढ़ के लिए साल का अंत बहुत रंग-बिरंगा रहा. प्रदेश के मंच पर देशभर के आदिवासी कलाकारों ने अपनी संस्कृति की छटा बिखेरी तो विदेशी कलाकारों ने मन मोह लिया. राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन कर छत्तीसगढ़ ने आदिवासियों के खूबसूरत रंगों से सबको रूबरू कराया.

एक तरफ जहां इस महोत्सव में देश के आदिवासी कलाकारों ने संस्कृति की छटा बिखेरी, वहीं विदेशी कलाकरों ने भी मन मोह लिया. आप ही सोचिए 25 राज्यों और 6 देशों के कलाकर जब मंच पर उतरे होंगे तो कैसा नजारा रहा होगा. ये उत्सव जाते-जाते छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश को थिरकने पर मजबूर करता गया.

Last Updated : Dec 31, 2019, 11:08 PM IST

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