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छत्तीसगढ़ी संगीत के भीष्म पितामह खुमान साव की जयंती - Raipur latest news

Khuman Sao birth anniversary लोक संस्कृति को संगीत के माध्यम से पहचान देने वाले छत्तीसगढ़ी संगीत के भीष्म पितामह की उपाधि से नवाजे गए संगीतकार खुमान साव की आज जयंती है. खुमान साव ने अपनी कला से छत्तीसगढ़ के लोक संगीत को नई पहचान दी.उन्होंने संगीत के माध्यम से छत्तीसगढ़ी माटी की खुशबू को भारत समेत पूरे विश्व में फैलाया.

छत्तीसगढ़ी संगीत के भीष्म पितामह खुमान साव की जयंती
छत्तीसगढ़ी संगीत के भीष्म पितामह खुमान साव की जयंती

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Published : Sep 5, 2022, 1:23 PM IST

Updated : Sep 5, 2022, 1:44 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ी संगीत के भीष्मपितामह कहे जाने वाले खुमान साव की आज जयंती (Khuman Sao birth anniversary) है. खुमान साव ने छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक सांस्कृतिक परंपरा में रचे बसे गीतों और विलुप्त होती लोक धुन को संजोने का काम किया था. आधुनिक कवियों की छत्तीसगढ़ी रचनाओं को स्वरबद्ध कर उन्हें फिल्मी गीतों की तरह जन जन तक पहुंचाने वाले खुमान साव ही (Bhishma Pitamah of Chhattisgarhi Music Khuman Sao) थे.

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया : खुमान साव ने अपनी जिंदगी में लोक कला को हर परिस्थिति में जीवित रखने के लिए संघर्ष किया. इस कारण छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को बचाने वालों की सूची में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है. संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लोक संगीतकार खुमान लाल साव सही अर्थों में छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक दूत हैं. उन्होंने अपनी विलक्षण संगीत साधना और मंच पर पांच हजार प्रस्तुतियों के जरिए छत्तीसगढ़ महतारी का यश चारों ओर फैलाया है. साव का जन्म 5 सिंतबर 1929 को डोंगरगांव के पास खुर्सीटिकुल गांव में एक संपन्न मालगुजार परिवार में हुआ.

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया
कैसे बचाई छत्तीसगढ़ी लोककला :बचपन से संगीत के प्रति रूचि रखने वाले साव ने गुरूओं के संरक्षण में संगीत की बारीकियों को समझा. 14 साल की उम्र में उन्होंने नाचा के युग पुरुष मंदराजी दाऊ की रवेली नाचा पार्टी में शामिल होकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया. नाचा पार्टियों में अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए साव ने बाद में राजनांदगांव में आर्केस्ट्रा की शुरूआत की. खुमान एंड पार्टी, सरस्वती संगीत समिति, शारदा संगीत समिति और सरस संगीत समिति का संचालन करते हुए उन्होंने आखिर में राज भारती संगीत समिति तक का सफर तय किया. लेकिन आर्केस्ट्रा पार्टियों में फिल्मी गीत संगीत से वे कतई संतुष्ट नहीं थे. उनके भीतर का संगीतकार उन्हें बार बार मौलिक संगीत रचना के लिए प्रेरित कर रहा था.

कैसे बने संगीतकार :साल 1970 में उनकी मुलाकात लोक कला मर्मज्ञ बघेरा दाऊ रामचंद देखमुख से हुई, जो छत्तीसगढ़ की प्रथम लोक सांस्कृतिक संस्था ‘चंदैनी गोंदा’ के निर्माण की योजना बनाकर योग्य कलाकारों की तलाश में घूम रहे थे. उन्हें एक ऐसे संगीत निर्देशक की तलाश थी, जो छत्तीसगढ़ी आंचलिक गीतों में नया प्राण फूंक सके. साव खुद अपनी मौलिक संगीत रचना की प्रस्तुति के लिए बेचैन थे. दाऊ देशमुख के आग्रह को स्वीकार कर साव ‘चंदैनी गोंदा’ में संगीत निर्देशक के रूप में शामिल हुए. संगीतकार खुमान साव और गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया ने दिन रात मेहनत कर ‘चंदैनी गोंदा’ के रूप में देशमुख के सपने को साकार किया.

कब हुआ निधन :9 जून 2019 को 90 वर्ष की आयु में छत्तीसगढ़ी संगीत के भीष्मपितामह खुमान साव ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके निधन की खबर सुनते ही अंतिम दर्शन के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. उन्हें श्रद्धांजलि देने जन प्रतिनिधियों के साथ ही बड़ी संख्या में लोग जमा हुए. राजनांदगांव जिला स्थित उनके गृहग्राम ठेकवा में अंतिम संस्कार किया गया. आज खुमान साव हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ी संगीत में दिए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. उनकी जयंती के मौके पर ईटीवी भारत शत शत नमन करता (Raipur latest news) है.

Last Updated : Sep 5, 2022, 1:44 PM IST

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