रायपुर:पति की लंबी उम्र के लिए महिलाएं आज वट सावित्री का व्रत कर रही हैं. राजधानी की महिलाएं भी आज सुबह से वट वृक्षों के पास पूजा करने के लिए पहुंच रही हैं. वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का बहुत महत्व है. हिंदू पंचांग के मुताबिक जेष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को ये व्रत किया जाता है. इसके अलावा आज ही के दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है.
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण बचाने के लिए इस व्रत को किया था. सावित्री से खुश होकर यमराज ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण सौपे थे. चने लेकर सावित्री सत्यवान के शव के पास आई और सत्यवान में प्राण फूंक दिए. इस तरह सत्यवान जीवित हो गए. इसलिए वट सावित्री की पूजन में चने का भी उपयोग किया जाता है.
वट वृक्ष में होता है त्रि-देवों का वास
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक बरगद के पेड़ पर त्रि-देव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास माना गया है. इस दिन शादीशुदा महिलाएं वट वृक्ष पर जल चढ़ाकर उसमें कुमकुम अक्षत लगाती हैं. पेड़ में मौली धागा बांधा जाता है. विधि विधान के साथ वट वृक्ष की पूजा की जाती है. वट सावित्री का व्रत त्रयोदशी तिथि से ही शुरू हो जाता है. हालांकि कुछ महिलाएं केवल अमावस्या के दिन ही व्रत रखती हैं. इस दिन वट वृक्ष की पूजा के साथ-साथ सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा को भी सुना जाता है.
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इसलिए पड़ा वट सावित्री नाम
कहा जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को जीवित किया था, इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा है. इस व्रत के लिए पूजन सामग्री थाली में प्रसाद, गुड़, भीगा चना, आटे से बनी मिठाई, कुमकुम, रोली, मौली धागा, फल, पान का पत्ता, धूप और घी का दीया के साथ वट वृक्ष की पूजा की जाती है. सुहागिन महिलाएं मौली धागा लेकर बरगद पेड़ की परिक्रमा लगाती हैं.