Bal Thackeray Death anniversary 17 नवंबर को शिवसेना प्रमुख स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे का महापरिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है. उन्होंने मराठी मानुष का मुद्दा उठाकर राजनीति की शुरुआत की थी और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर सत्ता का स्वाद भी चखा.आज भले ही वह इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके द्वारा बनाई गई पार्टी सफल हुई है. (shiv sena founder death anniversary)
हर साल हजारों लोग आते हैं स्मृति स्थल : बालासाहेब ठाकरे की मृत्यु के बाद हर साल 17 नवंबर को शिवसेना प्रमुख के स्मृति स्थल पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए हमेशा लोगों का हुजूम देखा जाता है. ना सिर्फ आम समर्थक बल्कि कई राजनीतिक दलों के नेता भी शिवतीर्थ पर नजर आते हैं. साल 2020 में जब कोरोना अपने चरम पर था. तब शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे ने तमाम शिवसैनिकों से उनके-उनके इलाके में शिवसेना शाखा में पुष्पांजलि अर्पित करने की अपील की थी. ताकि ज्यादा लोग ना इकट्ठा होने पाएं.(Shiv Sena Balasaheb Thackeray death)
कौन थे बाला साहब ठाकरे :बाला साहेब ठाकरे का पूरा नाम बाल केशव ठाकरे था.बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था. 9 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. मीनाताई ठाकरे से शादी के बाद उन्हें तीन बेटे भी हुए बिंदुमाधव ठाकरे, जयदेव ठाकरे और उद्धव ठाकरे. कट्टर हिन्दू नेता की छवि पा चुके बाल ठाकरे साहब ने अपनी पार्टी शिवसेना का गठन किया. (who is Bal Thackeray)
कार्टूनिस्ट से राजनीति तक का सफर : वे शुरुआत में एक कार्टूनिस्ट थे और बाद में अपना खुद का अखबार सामना निकला. इनके उपनामों में हिंदू हृदय सम्राट कहा जाता है.1960 में वह पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए. अपने भाई के साथ मार्मिक नाम से साप्ताहिक अखबार निकाला. 1966 में 'मराठी माणुस' को हक दिलाने के लिए शिवसेना बनाई.
किंग मेकर की भूमिका में रहते थे बाला साहब : बाला साहब ने खुद कभी चुनाव नहीं लड़ा और किंग मेकर की भूमिका ही (bal thackeray political career ) निभाई. बेबाकी तो जैसे उनमें कूट-कूटकर भरी थी. जब अयोध्या में बाबरी ढांचा गिराया गया और कोई जिम्मेदारी नहीं ले रहा था, तब बाल ठाकरे ही थे जो खुलकर कह गए कि शिवसैनिकों ने गिराई है मस्जिद. इमरजेंसी के दौरान विपक्ष में रहते हुए भी इंदिरा गांधी को समर्थन दिया था. फिर, प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति बनाने की बात हो या प्रणब मुखर्जी को, उन्होंने गठबंधन से बाहर जाकर अपनी बेबाकी दिखाई.