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बड़ा सवाल... ना अच्छे फैकल्टी न ही लैबोरेटरी, कैसे भरे छत्तीसगढ़ के प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों की सीटें ?

छत्तीसगढ़ प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों का बुरा हाल (Bad condition of Chhattisgarh private engineering colleges) है. छत्तीसगढ़ में कई इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जहां सीटें खाली पड़ी हैं. एक्सपर्ट बताते हैं कि प्राइवेट कॉलेज में ज्यादातर कॉलेजों में अच्छे फैकल्टी और लैबोरेटरी नहीं हैं. इस कारण छात्रों का रुझान सरकारी कॉलेजों की तरफ ही ज्यादा है. नतीजा प्राइवेट कॉलेजों में सीटें खाली हैं और सरकारी में भर चुकी हैं...

privet engineering colleges
इंजीनियरिंग कॉलेजों का बुरा हाल

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Published : Dec 11, 2021, 8:08 PM IST

Updated : Dec 11, 2021, 8:47 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति चिंताजनक है. साल-दर-साल इंजीनियरिंग के प्रति छात्रों का रुझान कम (low interest of students towards engineering) होता जा रहा है. नए सत्र 2021-22 में इंजीनियरिंग की 6,448 सीटें नहीं भर पाई हैं. आलम यह है कि प्रदेश के तीन निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की एक भी सीटों पर प्रवेश नहीं हो सका है. इतना ही नहीं गिने-चुने छात्रों ने ही बीई में प्रवेश लिया है. एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में अबतक मात्र 4 सीटों पर ही दाखिला हुआ है.

कैसे भरे छत्तीसगढ़ के प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों की सीटें ?

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बीई कोर्स में मात्र 42.80 फीसदी दाखिला

छत्तीसगढ़ में एक दौर ऐसा भी था कि इंजीनियरिंग के लिए सीटें नहीं मिल पाती थीं. इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश के लिए लंबी लाइनें लगा करती थीं, लेकिन धीरे-धीरे इंजीनियरिंग का क्रेज खत्म होता जा रहा है. यह बात हम नहीं बल्कि नए सत्र में प्रवेश के आंकड़े बता रहे हैं. इस सत्र में बीई के लिए मात्र 42.80 फीसदी सीटों पर दाखिला हो सका है. हालांकि कुछ कॉलेज ऐसे भी हैं, जहां की सीटें 100 फीसदी भर चुकी हैं. इसमें राज्य की तीनों जीईसी शामिल हैं.

डिप्लोमा इंजीनियरिंग का भी बुरा हाल

डीटीई से मिले आंकड़ों के मुताबिक, इस सत्र में डिप्लोमा इंजीनियरिंग का भी बुरा हाल है. नए सत्र 21-22 में डिप्लोमा की 36 फीसदी सीटों पर प्रवेश हुआ है. डी फार्मेसी की बात करें तो 99 फीसदी और बी फार्मेसी की 92 फीसदी सीटें भरी है. नए सत्र में प्रदेश के 33 इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश हुआ है. इसके लिए 11,291 जारी हुई थी. इनमें से 4,833 सीटों पर दाखिला हो सका है.

बी फार्मेसी की 91.95, डिप्लोमा इंजीनियरिंग की 36.9, डीसीडीसीएम की 33.70, डीआईडी की 30, होटल मैनेजमेंट की 16 फीसदी सीटें ही भर पाई है. इसी तरह एमबीए की 68.92, एमसीए की 65.36, एमटेक की 27.21, एम फार्मेसी की 70.70, बीटेक लेटरल की 21.70 और बी फार्मेसी लेटरल की 42.62 की सीटों पर प्रवेश हो पाया है.

इन कॉलेजों में प्रवेश संख्या शून्य

संचनालय तकनीकी शिक्षा द्वारा मिले डाटा के अनुसार, दुर्ग जिले के धनोरा स्थित छत्तीसगढ़ इंजीनियरिंग कॉलेज बोरसी, राजनांदगांव के छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और दुर्ग के शंकराचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी की इंजीनियरिंग की एक भी सीटों पर दाखिला नहीं हुआ. इन कॉलेजों में क्रमशः 165, 300, 150 सीटें खाली हैं.

12 कॉलेजों में 20 फीसदी से कम

नए सत्र 21-22 के लिए 33 इंजीनियरिंग संस्थानों में से 12 में 20 फीसदी विद्यार्थियों ने प्रवेश किया है. यह सभी इंजीनियरिंग कॉलेज में 6 संस्थानों में ही 60 फीसदी से अधिक प्रवेश हो सका है. इसमें पांच संस्थान सरकारी हैं. 3 जीईसी और दो तकनीकी विश्वविद्यालय से जुड़े संस्थान हैं.

इस कॉलेज की मात्र 4 सीटें भर पाई

रायपुर के प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में 240 सीटें हैं. इनमें से सिर्फ 4 सीटों पर ही दाखिला हुआ है. यहां प्रवेश का अवसर 1.67 फीसदी रहा है. राजधानी में ही ऐसा हाल है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बाकी जिलों में इंजीनियरिंग कॉलेजों की क्या स्थिति होगी.

गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेजों की सभी सीटें फुल

छत्तीसगढ़ में 3 गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज है. इन तीनों कॉलेजों में 100 फीसदी सीटों पर प्रवेश हुआ है. डीटीई के अधिकारियों के अनुसार बिलासपुर की 273 में से 273, जगदलपुर की 285 में से 285 और रायपुर की 294 में से 294 सीटों पर प्रवेश हुआ है.

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एक्सपर्ट बोले-सीटें नहीं भर पाने के हैं तीन महत्वपूर्ण कारण...

शिक्षा विशेषज्ञ शशांक शर्मा कहते हैं कि इंजीनियरिंग की सीटें भर नहीं पाने के तीन कारण हैं. पहला कुकुरमुत्ता की तरह इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए हैं, लेकिन उन प्राइवेट कॉलेज में ज्यादातर कॉलेज अच्छी फैकल्टी और लैबोरेटरी नहीं होने की वजह से छात्र प्रैक्टिकल नहीं कर पाते है. एक अच्छा अनुभव और ज्ञान लेकर जिन बच्चों को कॉलेज से निकलना था वह केवल डिग्री का कागज का टुकड़ा लेकर निकले. जिसके चलते उन्हें नौकरियां नहीं मिली. दूसरा कारण मंदी रहा है. 2017 के दौर से मंदी तेजी से बढ़ी है. उस दौरान नौकरियां भी नहीं थी. जिसके चलते भी छात्रों का रुझान कम हुआ.

तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई बहुत महंगी हो गई है. एक बच्चे को पढ़ाने के लिए 6-8 लाख और वह अपने घर से बाहर जाकर पढ़ते हैं तो 10-12 लाख खर्च हो जाते हैं. पिछले 2 सालों में कोरोना काल की वजह से मां बाप अपने बच्चे का खर्चा नहीं उठा पा रहे हैं. बच्चा पढ़ना भी चाह रहा है तो महंगी शिक्षा के लिए वह लोग असहाय हैं. ऐसे कई कारण हैं जिनके कारण इंजीनियरिंग की सीटें भर नहीं पाती है और बच्चों का रुझान इंजीनियरिंग को छोड़कर कॉमर्स की तरफ ज्यादा हो गए.

Last Updated : Dec 11, 2021, 8:47 PM IST

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