रायपुर: राजधानी के बीचों-बीच मौजूद इस संग्रहालय का नाम तक वहां के लोग नहीं जानते. सन 1875 में राजा घासीदास ने यह संग्रहालय बनवाया था और उन्हीं के नाम पर इसका नाम रखा गया.
महंत घासीदास संग्रहालय है बदहाल
1953 में किया गया था शिफ्ट
सन 1953 में यह संग्रहालय को संस्कृति विभाग में शिफ्ट कर दिया गया और तब से यह भवन खाली पड़ा हुआ है. विभाग के लोग इसे नजूल की जमीन बताकर पल्ला झाड़ रहे हैं. दरअसल इस भवन को एक कंपनी को किराए में दिया गया है, जो यहां प्राइवेट इवेंट्स कराती है.
क्वीन विक्टोरिया के मुकुट की तरह है ढांचा
इमारत की खासियत यह है कि यह ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के मुकुट ( ताज ) के आकार का बना हुआ है. इस अष्टमुखी भवन के पीछे वाले हिस्से में बस्ती है. इमारत की दीवार अब बस्तीवालों के कपड़ा सुखाने और घर का सामान रखने की जगह बन गई है.
विभागों के अपने-अपने तर्क
संस्कृति विभाग के कमिश्नर अनिल साहू ने ETV भारत से बात करते हुए बताया कि 'यह भवन हमारे अंडर में नहीं है और इसे रिनोवेट करने का जिम्मा नगर निगम को दिया गया है, इसलिए वहीं बताएंगे'. नगर निगम इस विषय में बात करने को ही तैयार नहीं हो रहा है.
सरकार नहीं ले रही एक्शन
पुरातत्वविद अरुण शर्मा कहते हैं कि 'यह हमारी धरोहर है. इसे फोटो गैलेरी के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन कोई जिम्मेदार इस ओर काम क्यों नहीं कर रहा यह समझ में नहीं आ रहा है. नजूल की जमीन तो सरकार की ही है, तो सरकार इस पर क्यों एक्शन नहीं ले रही है'.
जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं
इतिहासकार रामेन्द्रनाथ मिश्र का कहना है कि 'कोई इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार ही नहीं है'. उन्होंने कहा कि 'हमने कई बार इस विषय में बात करने की कोशिश की लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही. देश में इस म्यूजियम का स्थान आठवां है और इसे ऐतिहासिक धरोहर बनाया जाना चाहिए'.