रायपुर: प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने 6 महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. दूसरा विधानसभा सत्र जारी है लेकिन अब तक विधानसभा के लिए उपाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की जा सकी है. उम्मीद थी कि इस सत्र में विधानसभा उपाध्यक्ष की नियुक्ति की जा सकती है लेकिन फिलहाल ऐसा संभव नहीं दिख रहा है.
7 महीने बीत गए, कौन बनेगा विधानसभा का उपाध्यक्ष अब तक विधानसभा उपाध्यक्ष की नियुक्ति न किए जाने को लेकर विपक्ष ने कांग्रेस सरकार को घेरने की कोशिश की है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव का आरोप है कि कांग्रेस और उनकी सरकार में निर्णय लेने की क्षमता नहीं है.
बीजेपी ने कांग्रेस पर लगाए आरोप
संजय श्रीवास्तव ने कहा कि यही वजह है कि उनके द्वारा चाहे पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति हो, सरकार के 13 मंत्री बनाने की बात हो या फिर विधानसभा उपाध्यक्ष चयन की प्रक्रिया इन सभी में लेटलतीफी की जा रही है. संजय श्रीवास्तव का यह भी कहना है कि सरकार बनने के बाद से ही यह लगातार विवादों में रही है.
कांग्रेस ने बीजेपी के आरोपों को किया खारिज
वहीं कांग्रेस ने भाजपा की ओर से लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किया है. कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि पार्टी ने पहले ही यह निर्णय लिया था कि लोकसभा चुनाव भूपेश बघेल के नेतृत्व में लड़ा जाएगा और चुनाव समाप्त होते ही मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. साथ ही 13वें मंत्री के रूप में जाति समीकरण को ध्यान में रखते हुए अब अमरजीत भगत को मंत्री बनाया गया है. इसी तरह जल्द ही विधानसभा उपाध्यक्ष की नियुक्ति भी की जाएगी.
इनके नाम पर हो रही है चर्चा
विधानसभा उपाध्यक्ष की दौड़ में सत्ता पक्ष के कई विधायक शामिल हैं, जिसमें मंत्री न बन सके कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा, धनेंद्र साहू और अमितेश शुक्ला का नाम सबसे ऊपर है. इसके अलावा रामपुकार सिंह, अरुण वोरा, खेलसाय सिंह सहित कई अन्य नाम विधानसभा उपाध्यक्ष की दौड़ में चर्चा में हैं.
- जानकारों की माने तो विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिए प्रत्याशी चयन के दौरान जातिगत समीकरण की अहम भूमिका होने की संभावना है प्रदेश में सबसे बड़ी आबादी वाले आदिवासी समुदाय के नेताओं को सत्ता एवं कांग्रेस संगठन में महत्वपूर्ण स्थान दिया जा चुका है.
- अनुसूचित जाति वर्ग तथा पिछड़े वर्ग का भी प्रतिनिधित्व है. ऐसे में यह पद सामान्य वर्ग के किसी नेता को दिए जाने पर विचार किया जा सकता है. यदि ऐसा होता है तो सामान्य वर्ग से ब्राह्मण समाज का उपाध्यक्ष हो सकता है. खास बात यह भी है कि विधानसभा उपाध्यक्ष की दौड़ में जिनके नाम सबसे ऊपर चल रहे हैं उनमें ज्यादातर विधायक ब्राह्मण समाज से आते हैं.
- विधानसभा उपाध्यक्ष की दौड़ में भाजपा की ओर से अब तक पहल नहीं की गई है. बता दें कि पूर्व में उपाध्यक्ष पद विपक्ष को दिया जाता था लेकिन जोगी सरकार के आने के बाद यह परंपरा समाप्त हो गई और अब सत्ता पक्ष अपना उपाध्यक्ष नियुक्त करता है. इसी परंपरा को पिछली भाजपा सरकार ने भी तीन बार कायम रखते हुए अपने विधायक को विधानसभा उपाध्यक्ष नियुक्त किया था. फिलहाल भाजपा की ओर से उपाध्यक्ष को लेकर कोई पहल नहीं की गई है.
अब भी छत्तीसगढ़ विधानसभा के उपाध्यक्ष को लेकर सस्पेंस बरकरार है. यहां तक कि अब भी सत्ता पक्ष के द्वारा उपाध्यक्ष को लेकर चर्चा भी नहीं की जा रही है क्योंकि अगर इसकी सुगबुगाहट होती तो विधानसभा में इस मानसून सत्र के दौरान उपाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर प्रक्रिया शुरू हो जाती लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है.