रायपुर:छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके अपने प्रखर प्रभावशाली व्यक्तित्व, शांत-सौम्य छवि और जनता के मुद्दों के प्रति उनकी संवेदनशीलता के लिए जानी जाती हैं. जहां राजभवन की परंपरा से हटकर उन्होंने आम लोगों के लिए राजभवन के दरवाजे खोल दिए, वहीं आदिवासी महिलाओं के हक के लिए भी उन्होंने आवाज उठाई. 29 जुलाई को उन्होंने छत्तीसगढ़ में अपने कार्यकाल के एक साल पूरे कर लिए.
राजभवन के दरवाजों को सबके लिए खोलने का प्रयास
अनुसुइया उइके को आदिवासी महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए आवाज उठाने के लिए जाना जाता है. उन्होंने परंपरागत अवधारणा के विपरीत आम लोगों, आदिवासियों और जरूरतमंदों के लिए राजभवन के दरवाजे खोल दिए. जिसके बाद छत्तीसगढ़ के अति पिछड़ा जनजाति वर्ग के लोग भी राजभवन पहुंचने लगे. उन्होंने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की समस्या को जानने के लिए सर्वआदिवासी समाज से चर्चा की. इसके बाद उन्होंने निर्देश दिया कि यदि कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति उनके दरवाजे पर पहुंचता है, तो उनकी समस्या सुने बिना उन्हें जाने न दिया जाए.
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जनता के बीच जाकर भी दिखाई सक्रियता
राज्यपाल अनुसुइया उइके ने फील्ड में जाकर भी अपनी सक्रियता दिखाई. उन्होंने सुपेबेड़ा का दौरा कर किडनी की बीमारियों से पीड़ित लोगों से बात की और अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए. उनकी पहल पर स्वास्थ्य विभाग ने 24 करोड़ की लागत से इसके लिए कार्ययोजना की घोषणा की जो 15 सालों से लंबित थी. राज्यपाल अनुसुइया उइके तमाम मुद्दों और मसलों को लेकर हमेशा से ही सुर्खियों में रही हैं. छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार की ओर से प्रदेश के तमाम विश्वविद्यालयों में नाम बदलने को लेकर उन्होंने आपत्ति जताई है.
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय शैक्षणिक संस्थान है और वहां से छात्रों के कई बैच भी निकल चुके हैं, ऐसे में विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तन करना उस जगह की आस्था के साथ खिलवाड़ होगा. अगर नया नाम रखना है तो नई संस्थाओं का रखा जाए. साथ ही उन्होंने यूजीसी की ओर से आने वाले ग्रांट और विश्वविद्यालय संबंधी फैसलों में बदलाव को लेकर भी राज्य सरकार की मांग पर नियमों का हवाला दे दिया.