रायपुर: सारकेगुड़ा मुठभेड़ की रिपोर्ट एक दिसंबर को सबके सामने आ गई. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोग ने इसे फर्जी बताया है. सियासत तेज हो गई है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि 17 लोगों की जान जाने से बड़ा अपराध क्या है. रिपोर्ट के आधार पर जो दोषी पाए जाएंगे, उन पर कार्रवाई की जाएगी.
एक मुठभेड़...7 साल...17 मौतें और कई सवाल साल 2012 में रमन सिंह की सरकार थी लिहाजा सवाल उठे तो उंगली उनकी तरफ भी उठी है. पूर्व सीएम ने कहा है कि, 'सदन से पहले रिपोर्ट का अखबार में छपना विधानसभा और विधायकों का अपमान है. जो रिपोर्ट होगी, उसके आधार पर कार्रवाई करना सरकार का दायित्व है'.
सोमवार यानी 2 दिसंबर को विधानसभा में रिपोर्ट को लेकर जमकर हंगामा भी हुआ. विपक्ष ने सारकेगुड़ा न्यायिक जांच रिपोर्ट लीक होने के मामले पर जमकर हंगामा किया. वहीं सरकार ने भाजपा पर आदिवासियों को जबरन मारने का आरोप लगा दिया. कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि बस्तर में पिछली सरकार में आदिवासियों को मारा गया है. ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिसमें निर्दोष आदिवासियों को जबरिया मार दिया गया.
कांग्रेस नेताओं ने राज्यपाल से मुलाकात कर सारकेगुड़ा मामले के दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने तत्कालीन भाजपा सरकार और पूर्व सीएम रमन सिंह पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
कब-कब क्या हुआ-
- 28 और 29 जून की रात साल 2012 में सारकेगुडा, कोट्टागुडा और राजपुरा के जंगलों में बैठक कर रहे ग्रामीणों पर सुरक्षाबलों और पुलिसकर्मियों ने फायरिंग की.
- फायरिंग में 7 नाबालिग सहित 17 ग्रामीणों की मौत हुई थी. साथ ही 10 ग्रामीण घायल हो गए थे. 6 जवान भी घायल हुए थे.
- गांववालों ने सुरक्षाबलों पर एकतरफा फायरिंग का आरोप लगाया था और जांच की मांग की थी.
- राज्य सरकार की ओर से 7 बिंदुओं पर जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था.
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोग ने इस महीने की शुरुआत में राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.