रायपुर:एक वक्त हुआ करता था, जब लोग सड़कों पर निगाहें टिकाये बैठे रहते थे... कब डाकिया (Post men) आयेगा और अपनों का संदेशा हमें देगा. हालांकि वक्त के साथ ये सब बदल गया. पहले लोग दूर बैठे अपनों से बातें करने के लिए चिट्ठी का प्रयोग किया करते थे. हालांकि मौजूदा समय डिजिटल (Digital)हो गया है. आज के डिजिटल युग ने लोगों को चिट्ठी लिखने की जरूरत ही खत्म कर दी है. जिससे डाक के लिए समस्या पैदा हो गई है.
पहले जहां लोग डाकिये के इंतजार में रहते थे, वहीं अब लोग डाक घर जाने से भी कतराते हैं. हर चीज सुलभ हो गई है.चाहे किसी को पैसा भेजना हो या फिर किसी को कोई संदेश देना... ये सारी चीजें डिजिटल दुनिया (Digital world) के अंदर काफी सुलभ हो चुकी है. अब लोग पलक झपकते एक जगह से दूसरे जगह पैसा भेज सकते हैं. अपनों से न सिर्फ फोन पर बात कर सकते हैं बल्कि उन्हें दूर से फोन पर वीडियो कॉल (Video call) के जरिए देख भी सकते हैं.
आधुनिकीकरण ने की डाकियों की भूमिका खत्म
बीते कुछ दशकों से जिस तरह से आधुनिकीकरण का विकास होता जा रहा है, वैसे-वैसे डाकियों की भूमिका समाप्त होती जा रही है. आज इस डिजिटाइजेशन (Digitization) के दौर में वो चिट्ठियां कोसों दूर छूट गईं हैं. तो वहीं, डाक के अस्तित्व को बचाने को लेकर हर वर्ष विश्व डाक दिवस (World Post Day 2021) मनाया जाता है. हर वर्ष 9 अक्तूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है, जिसका मकसद डाक के प्रति लोगों को जागरूक करना और अपनी विभिन्न सेवाओं को बताना है.बताया जा रहा है कि भारत में लार्ड डलहौजी (Lord Dalhousie) ने 165 साल पहले 1 अक्टूबर, 1854 को भारतीय डाक विभाग (Indian Postal Department) की स्थापना की थी.
ये था डाक का महत्व
कहा जाता है कि डाक के महत्व की वजह से 9 अक्टूबर, 1874 को स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में 22 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे और यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का गठन हुआ था. इसके बाद साल 1969 में टोक्यो, जापान में आयोजित सम्मेलन में विश्व डाक दिवस के रूप में 9 अक्टूबर के दिन का चयन किया गया था. यही वजह है कि हर साल 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है.भारत एक जुलाई 1876 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था. भारत एशिया का पहला ऐसा देश है, जो सबसे पहले यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना.