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SPECIAL: रहस्यमयी गुफा, एक बार जो जाता है अंदर लौटकर नहीं आता वापस !

सिंघनपुर के पहाड़ियों में आदिकाल के बने शैलाश्रय गुफा में रहस्यमयी शैलचित्र है. इन शैलचित्रों का इतिहास लगभग 30 हजार साल पुराना माना जाता है. शैलाश्रय गुफा के अंदर 11 गुफाएं हैं, जो अपने आप में रहस्य से भरे हुए हैं. यहां 2 गुफाओं के अलावा जो भी अंदर गया कभी वापस नहीं आया.

रहस्यमयी गुफा

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Published : Nov 9, 2019, 12:05 AM IST

Updated : Nov 21, 2019, 8:39 PM IST

रायगढ़:छत्तीसगढ़ में प्राचीन काल के कई ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं, जो अपने आप में बहुत खुबसूरत हैं. भारतीय इतिहास इतना समृद्ध है कि देश के हर हिस्से में एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक स्थल, प्राचीन किले और भव्य महल दिख जाएंगे. जो कि देखने में बेहद ही अद्भुत और खूबसूरत लगते हैं. रायगढ़ के सिंघनपुर गांव में मौजूद शिला चित्र लोगों का मन मोह लेते हैं.

रहस्यमयी गुफा

जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर सिंघनपुर गांव में शैलाश्रय और शैल मौजूद है. यहां के इतिहासकार बताते है कि यह शैलाश्रय और शैल लगभग 30 हजार ई.वी पहले की है. यहां पर 23 शिला चित्र अंकित थे, लेकिन बारिश और वातावरण के प्रभाव से अब कुछ शिलाचित्र ही बचे हैं. इन शैलचित्रों में आदिवासियों की नर्तक टोली, मानव आकृति, शिकार के दृश्य, सीढ़ीनुमा मानव आकृति, विविध पशु आकृति तथा अन्य चित्र मौजूद है. शासन इस जगह को धरोहर का रूप मानती है. वहीं संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग ने इसकी सुरक्षा के लिए इसे राज्य संरक्षित स्थल घोषित किया है.

शैलचित्रों का इतिहास लगभग 30 हजार साल पुराना है
सिंघनपुर मुख्य मार्ग पर स्थित पहाड़ियों में आदिकाल के बने शैलाश्रय और शैलचित्र है. इन शैलचित्रों का इतिहास लगभग 30 हजार साल पुराना माना जाता है और इन पहाड़ियों का अपने आप में एक रोचक इतिहास माना जाता है. सिंगापुर की पहाड़ियों में कुल 11 गुफाएं हैं, जिसमें से 2 गुफाओं में से जाना संभव होता है, लेकिन अन्य 9 गुफाओं में अभी तक कोई नहीं जा पाया है. इन गुफाओं के मुख्य द्वार पर मधुमक्खियों का छत्ता बना हुआ है, जिसके कारण उस गुफा में जाना बेहद ही खतरनाक है.

एक गुफा में भरे हुए हैं चमगादड़
ऐसा माना जाता है कि जो भी इन गुफाओं में जाने की कोशिश करता है. वो कभी वापस लौटकर नहीं आता. वहीं अन्य 2 गुफाओं में से एक गुफा में चमगादड़ भरे हुए हैं इसके साथ ही एक गुफा में शैलचित्र बने हुए हैं, जो कि बारिश और मौसम के कारण 23 में से कुछ ही बच पाए हैं. शैलचित्र गेरुआ चटकदार रंग के बने हुए हैं जो दीवारों पर स्पष्ट दिखाई देते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस शैलचित्रों की खोज 1910 के आसपास माना जाता है.

पत्थरों पर बनी कलाकृति कभी भी मिट सकती है
जिला संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की मानें तो रायगढ़ शहर औद्योगिकरण की वजह से पत्थरों पर बनी यह अधिकार की कलाकृति अब मिटने की कगार पर आ गई है. पहले जितने शैलचित्र दिखाई देते थे अब वे धुंधले हो गए हैं. इनको संरक्षित करने के लिए इस जगह को राज्य संरक्षित स्थल घोषित किया गया है.

Last Updated : Nov 21, 2019, 8:39 PM IST

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