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SPECIAL: गोबर गैस संयंत्र ने कर दी जिंदगी आसान, महिलाओं के जीवन में आई खुशियां

स्वच्छ भारत मिशन के तहत रायगढ़ के खोखरा ग्राम पंचायत में 8 लाख 44 हजार रुपये की लागत से गोबर गैस संयत्र लगाया गया है. गोबर से मीथेन गैस निकलने के बाद जो भी अवशेष बचता है, उसे खाद के तौर पर खेतों में उपयोग किया जाता है.

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Published : Sep 18, 2020, 2:02 PM IST

Gobar gas plant of Raigarh
गोबर गैस ने बदली जिंदगी

रायगढ़: स्वच्छ भारत मिशन (SBM) के तहत खुले में शौच मुक्त गांव होने का दर्जा प्राप्त ग्राम पंचायत खोखरा में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर जिले का पहला गोबर गैस प्लांट लगाया गया. साल भर पहले 8 लाख 44 हजार की लागत से बने गोबर गैस प्लांट से आज दर्जनभर परिवार प्रदूषण मुक्त इंधन का उपयोग कर रहे हैं. इससे निकलने वाले मीथेन गैस से यहां के कई परिवार अपना चूल्हा जलाकर खाना बना रहे हैं. इससे गैस सिलेंडर के आर्थिक बोझ से छुटकारा तो मिला ही है, साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाने से रोका जा रहा है.

गोबर गैस संयंत्र ने कर दी जिंदगी आसान

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ज्यादातर लोग पेड़-पौधे और सूखी लकड़ियों को जलाकर खाना बनाते हैं, लेकिन गोबर गैस प्लांट लगने से इन परिवार के लोगों को काफी मदद मिली है. गांव की महिलाएं मवेशियों के गोबर से गैस बना रही हैं और उसी से अपना चूल्हा जला रही हैं. गोबर से मीथेन गैस निकलने के बाद जो भी अवशेष बचता है, उसे जैविक खाद के तौर पर खेतों में उपयोग किया जाता है, जो जमीन के लिए काफी लाभदायक होता है. इससे मिट्टी की उर्वरा क्षमता कई गुना बढ़ जाती है. गांव की लाभान्वित महिलाओं का कहना है कि इस योजना से उन्हें काफी लाभ मिला है और वे अब खाना बनाने के लिए इसी का उपयोग कर रही हैं.

बायोगैस सयंत्र

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गांव में कई छोटे-छोटे निजी गोबर गैस प्लांट मौजूद

300 किलो गोबर से लगभग 6 से 7 परिवार दो वक्त का खाना बना सकते हैं. गांव की महिलाएं दो-दो के समूह में बंटकर रोजाना गोबर से गैस बनाने के लिए मेहनत करती हैं. लाभार्थी महिलाओं का कहना है कि इससे सिलेंडर का खर्च बचता है. महिलाएं बताती हैं कि चूल्हे पर खाना बनाने से धुएं और राख से आंखों में जलन होती थी, जो अब नहीं हो रही है. गांव के सरपंच ने बताया कि गोबर के इस प्लांट को लगाने के लिए शासन की ओर से आर्थिक मदद मिली थी. गुजरात की एक निजी कंपनी की मदद से प्लांट लगाया गया है. इस प्लांट से मिल रहे फायदे को देखते हुए गांव में छोटे-छोटे कई निजी गोबर गैस प्लांट लगाए गए हैं. गांव के लोग अब उसी से खाना बना रहे हैं.

गोबर ले जाती महिलाएं

10 से 12 घंटे में बनता है मीथेन गैस

सरपंच प्रतिनिधि मकरध्वज पटेल ने बताया कि गोबर गैस बनाने के लिए किसी विशेष योग्यता या प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है. गोबर गैस बनाने के लिए गांव की महिलाएं सबसे पहले घर के मवेशियों के गोबर इकट्ठा करती हैं और उसे लाकर गोबर गैस के बने मिक्सिंग चैंबर में पानी के साथ मिक्स कर देती हैं. 10 से 12 घंटे में मीथेन गैस बन जाता है, फिर उसे पाइप लाइन के सहारे रसोई तक पहुंचाया जाता है.

गोबर गैस बनाती महिलाएं
गोबर गैस बनाने की प्रकिया

मीथेन गैस के लिए अलग चूल्हे का किया जाता है प्रयोग

एलपीजी गैस या अन्य गैस सिलेंडर से यह कम ज्वलनशील है, लिहाजा विशेष चूल्हे से गोबर गैस के माध्यम से खाना बनाया जाता है. इसके इस्तेमाल से बने भोजन में किसी भी तरह की दुर्गंध या स्वाद में परिवर्तन नहीं होता है. जिला पंचायत और प्रशासन की इस कोशिश की जितनी तारीफ की जाए वो कम है. इस प्रयास से ग्रामीणों को महंगे गैस के मार से बचाने के लिए यह एक सफल प्रयास साबित हो रहा है.

गोबर गैस संयंत्र

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