रायगढ़: सारंगढ़ विधानसभा क्षेत्र के बरमकेला विकासखंड अंतर्गत 127 एकड़ का गोलाबंद तालाब है. ये तालाब बड़े नवापारा से जुड़ा हुआ है और छत्तीसगढ़-ओडिशा बॉर्डर पर है. इसका निर्माण 1957 में ओडिशा के सराईपाली गांव के पास हुआ था. इसे बनाने का मकसद किसानों को सिंचाई सुविधा प्रदान करना था. चूंकि ये तालाब दोनों राज्यों की सीमा पर बना है, इसलिए इसका नाम गोलाबंद तालाब है. ओडिशा के किसान इस तालाब के पानी का उपयोग रबी फसल की सिंचाई में करते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के किसान अल्प वर्षा की स्थिति में खरीफ सीजन में फसलों को बचाने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे. हालांकि लंबे समय से छत्तीसगढ़ सीमा में बनी नहर की मरम्मत नहीं हुई है. इस तरफ के हिस्से की साफ-सफाई और गहरीकरण नहीं होने से तालाब का पानी वर्तमान में किसानों के खेत तक पानी नही पहुंच पा रहा है. आसपास के किसानों ने कई बार शासन-प्रशासन से नहर की मरम्मत की मांग की, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिससे किसानों में नाराजगी है.
तालाब का 40 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़ मेंतालाब का 60 फीसदी भाग ओडिशा और 40 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़ में है. ओवरफ्लो होकर बहने वाला पानी भी छत्तीसगढ़ की जमीन पर नाले के रूप में प्रवाहित हो रहा है. बिना किसी अनुबंध के ओडिशा सरकार ने कई एनीकट बनवा लिए हैं, हालांकि इन एनीकट का लाभ दोनों क्षेत्र के लोग उठाते हैं. यदि छत्तीसगढ़ सरकार इस तालाब के अपने हिस्से की भाग की सफाई के साथ गहरीकरण और नहरों की मरम्मत कर लेती है, तो बरमकेला अंचल को इसका सीधा लाभ मिलेगा.
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1900 एकड़ फसल की होती थी सिंचाई
गोलाबंद तालाब से छत्तीसगढ़ के बड़े नावापारा, खैरगड़ी कोतरा, अमलीपाली, केनाभांठा, पंडरीपानी, विक्रमपाली के 1 हजार से अधिक किसानों के 1900 एकड़ खेत की सिंचाई होती है. नहर के माध्यम से खरीफ फसलों की सिंचाई की जाती है. लेकिन जल संसाधन विभाग की लापरवाही के कारण छत्तीसगढ़ सीमा वाले भाग गाद से पट गए हैं और भारी मात्रा में बेशरम के पौधे उग आए हैं, जिससे सिंचाई व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है.
व्यर्थ बह रहा गोलाबंद तालाब का पानीओडिशा के सराईपाली के किसानों को खरीफ सीजन में पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है. इन्हें कुम्भो डैम से पर्याप्त पानी मिल जाता है, जबकि रबी फसल में अधिकांश किसान इसके पानी का उपयोग करते हैं. जब से छत्तीसगढ़ सीमा में बने नहर और एनीकट टूटे हैं, तब से पानी व्यर्थ ही बह जा रहा है. अगर इसमें बने एनीकट और नहर की मरम्मत कर दी जाए, तो बेकार बहने वाला पानी सीधे किसानों के खेत में पहुंच जाता. ये खरीफ फसल के लिए किसी वरदान से कम नहीं होता और किसानों को बरसाती फसल को बचाने के लिए जद्दोजहद नहीं करना पड़ता.
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एक बार मरम्मत कर सुध लेना भूला जिला प्रशासन
जब मध्यप्रदेश से अलग होकर सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो किसानों में उम्मीद जगी कि गोलाबंद तालाब का गहरीकरण होगा, साथ ही सफाई के साथ नहर निर्माण भी होगा. इसकी मांग किसान लगातार इतने सालों में करते रहे हैं. 2005 में तत्कालीन कलेक्टर ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए 45 लाख रुपए की स्वीकृति देकर निर्माण का जिम्मा जलसंसाधन विभाग को सौंपकर 2 किलोमीटर नहर का निर्माण पूरा कराया, लेकिन उसके बाद से आज तक न तो जलसंसाधन विभाग ने देखरेख की और न जिला प्रशासन ने सुध ली.