रायगढ़:राज्यपाल, मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के हाथो अवॉर्ड से सम्मानित एकताल गांव के शिल्पकार आज दाने-दाने के लिए मोहताज हैं. ढोकरा आर्ट ने इस गांव को सम्मान दिलाया, रोजी-रोटी और जीने के लिए सहारा दिया, लेकिन कोरोना का साया इन शिल्पकारों पर ऐसा पड़ा कि कभी दौलत-शोहरत हासिल करने वाले लोग आज खेतों में दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के लिए मेहनत कर रहे हैं. हालात ये हैं कि जो अवॉर्ड कभी घरों की शान बढ़ा रहे थे, आज साहूकारों की तिजोरियों में गिरवी पड़े हैं.
रायगढ़ के जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर एकताल गांव की, जहां ढोकरा आर्ट और बस्तर आर्ट खासा प्रचलित है. इसे देखने और खरीदने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं, लेकिन आज इनकी मदद के लिए न शासन आगे आ रहा न कलाप्रेमी. जिसके कारण, इस गांव में रहने वाले विशेष झारा समुदाय के शिल्पकार दो वक्त की रोटी के लिए मदद की गुहार लगा रहे हैं.
सैकड़ो परिवार ढोकरा आर्ट पर निर्भर
रायगढ़ के जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर एकताल गांव में सैकड़ों परिवार ढोकरा आर्ट बनाते हैं और उसी शिल्पकारी के सहारे वे अपना परिवार चलाते हैं, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इनके परिवार के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है. कच्चे पीतल को बिना किसी मशीन के उपयोग के मूर्त रूप देने में अधिक मेहनत लगता है. ये झारा कलाकार पीतल की मूर्तियां और कई तरह की अनोखी कला कृतियां बनाते हैं. इनके हाथों में मानो जादू सा है जो मूर्तियों में भी जान फूंकने के समान बारीकियां उकेर देती है. हाथ लगते ही पीतल की मूर्तियां सजीव लगने लगती है. प्रदर्शनी और राज्य शासन और हस्तशिल्पकार संघ के द्वारा इनके लिए शासकीय तथा गैर शासकीय प्रदर्शनी लगाई जाती है, जहां पर ये अपनी मूर्तियों को बेचकर अच्छी खासी रकम कमा लेते हैं, लेकिन बीते 5 महीने से लॉकडाउन की वजह से ये घर से बाहर नहीं निकल पाए हैं और न प्रदर्शनी लगी है.
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