नारायणपुर: छत्तीसगढ़ के वनांचल विभिन्न लघु वनोपज के अकूत भंडार से परिपूर्ण हैं. सालों से दूरस्थ अंचलों में वनोपज संग्रहण और विक्रय ग्रामीणों की आय का प्रमुख स्रोत रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देशों के मुताबिक, राज्य लघु वनोपज संघ लगातार इनका उचित मूल्य संग्राहकों को दिलवाने के लिए प्रयासरत है. संघ के इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि नारायणपुर जैसे दूरस्थ अंचलों के ग्रामीण आज लघु वनोपज का न केवल उचित मूल्य प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि महिला स्वसहायता समूहों के माध्यम से संग्रहित और प्रसंस्कृत वन उत्पादों की पहुंच और धमक आज देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंच गई है.
नारायणपुर के आदिवासी ग्रामीण परंपरागत रूप से फूलझाड़ू का निर्माण करते रहे हैं, लेकिन किसी भी तरह की शासकीय सहायता और मार्गदर्शन के अभाव के कारण इन वन उत्पादों का उचित मूल्य उन्हें प्राप्त नहीं हो रहा था. पिछले साल राज्य लघु वनोपज संघ के निर्देश पर जिला यूनियन नारायणपुर ने ओरछा, अबूझमाड़ के अंतर्गत आने वाले ग्राम की तीन महिला स्वसहायता समूहों का चयन कच्चा माल (फूलझाड़ू घास) क्रय करने के लिया किया और उन्हें 5.25 लाख रुपए की चक्रीय राशि दी गई. समूह ने कच्चा माल खरीदकर नारायणपुर स्थित मां जगदम्बा स्वसहायता समूह को बेचकर 3.15 लाख रुपए की आय प्राप्त की.
झाड़ू विक्रय से स्वसहायता समूह को मिल रहा लाभ