नारायणपुर:अबूझमाड़ क्षेत्र में लोग आज भी अपनी आदिम सभ्यता और विशेष संस्कृति को संजोये हैं. ऐसी ही एक पुरानी परंपरा का इन दिनों निर्वहन किया जा रहा है. जिसमें आदिवासी अपने प्रमुख देव पाटराजाल पेन का पुनर्जन्म की रस्म अदा कर रहे हैं. परंपरा के मुकताबिक यह रस्म 12 पीढ़ियों के बाद निभाई जाती है. कहते हैं वे लोग बेहद ही सौभाग्शाली होते हैं जो इस रस्म के साक्षी बनते हैं.
यह रस्म अदायगी अबूझमाड़ के एक गांव किया जा रहा है. इस रस्म को पूरा करने के लिए कुम्हार समुदाय के लोग नया हांडी, अनुसूचित जाति के समुदाय के लोगधागा और लोहार समुदाय के लोग नया लोहा लाकर टंगिया, चैनी बनाते हैं. यह सभी समुदाय मिलकर अपने देवता को नया रूप देकर प्राणप्रतिष्ठा करते हैं.
बारह पीढ़ियों बाद रस्म अदायगी
आदिवासी समाज में रीति-रिवाज के अनुसार कुल और गोत्र में एक पेन (देव) और आंगा ( प्रतीकात्मक चिन्ह) रूप में अपने पूर्वजों को देवता के रूप में स्थापित करते हैं. आदिवासी समाज में रावोड़ एक पवित्र स्थान होता है. जहां पर गोत्र देवता का स्थान होता है. परंपरा के अनुसार उस देवता का प्रतीकात्मक चिन्ह को 12 पीढ़ियों में लगभग 1200 वर्ष बाद नया बनाया जाता है. जिसे स्थानीय बोली में 'पेन पुठिना' कहा जाता है. जिसका मतलब देवता का जन्म होना होता है. पारंपरिक ज्ञान के अनुसार गोत्र के देवताओं का प्रमुख पाटराजा देवता हैं. पाटराजा देवता का प्रतीकात्मक चिन्ह बनाकर बारह पीढ़ी यानी 1200 वर्ष पूरा हो गया है. इसलिए पाटराजा देवता का पेन पुठिना का कार्यक्रम पोचावाड़ा (ओरछा) ग्राम पंचायत के रायनार विरान गांव में किया जा रहा है. ये रस्म यहां करीब 3 महीने तक चलेगा. इस रस्म में सैकड़ों लोग शामिल होंगे.