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एम्बुलेंस है, लेकिन गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं, खाट के सहारे अस्पताल पहुंच रहे मरीज - खाट के सहारे गर्भवती महिला

नारायणपुर जिला मुख्यालय से महज 50 किलोमीटर दूर बमनी गांव में सड़क नहीं होने के कारण गर्भवती महिला को खाट से एम्बुलेंस तक पहुंचाया गया.

Lack of road in Narayanpur
खाट के सहारे पहुंचा एम्बुलेंस तक

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Published : Aug 30, 2020, 9:45 PM IST

नारायणपुर:छत्तीसगढ़ को राज्य बने 20 साल पूरे होने वाले हैं. सरकारें राज्य में भरपूर विकास करने का दावा करती है. प्रदेश के सभी जिलों में शासन की योजनाओं को पहुंचाने की बात की जाती है, लेकिन आदिवासी क्षेत्रों की कई तस्वीरें इन दावों को खोखला साबित कर देती है.

ऐसी ही एक तस्वीर नारायणपुर जिले के ग्राम बमनी से आई है. गांव में सड़क नहीं होने की वजह से एक महिला का घर पर ही प्रसव करना पड़ा है. बमनी की महिला रूखमणी ने प्रसव पीड़ा के चलते महतारी एक्सप्रेस को कॉल किया, जहां तत्परता दिखाते ईएमटी दिव्या यादव और कैप्टन जागेश्वर नेताम की टीम गांव के नजदीक तक पहुंची, लेकिन खराब सड़क के चलते प्रसूता तक नहीं पहुंच सकी. जिसके चलते महिला का घर पर ही प्रसव करना पड़ा.

खाट के सहारे पहुंचाया गया एम्बुलेंस तक

महिला ने सुबह करीब 9:30 बजे एक बच्ची को जन्म दिया. इसके बाद कुपोषण और कमजोरी के चलते महिला को चक्कर आने लगा, जिसके बाद महिला बेहोश हो गई. महिला को होश में लाने का प्रयास किया गया, लेकिन महिला के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो सका और सड़क के अभाव में महिला को खाट के सहारे एम्बुलेंस तक पहुंचाया गया.

जिला मुख्यालय से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर गांव

बमनी गांव हाई-वे से मात्र 35 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है. इसके अलावा ये गांव नारायणपुर जिला मुख्यालय से महज 50 किलोमीटर और कोंडागांव जिला मुख्यालय से सिर्फ 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बावजूद जिम्मेदारों की अनदेखी का नतीजा देखने को मिल रहा है और हमेशा की तरह इसकी सजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है.

मूलभूत सुविधाओं की आस में आज भी बस्तर

इस तरह की समस्या सिर्फ बमनी के लोगों की नहीं है. मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसती हुई बस्तर संभाग की तस्वीरें कई गांवों से देखने को मिलती है. बारिश के समय में गांव टापुओं में तब्दील हो जाते हैं, तो गर्मी के दिनों में बूंद-बूंद पीने के पानी के लिए तरसना पड़ता है. सड़क नहीं होने से खाट ही उनका सहारा बनता है, तो कभी कुपोषण से जंग हार कर जान गंवानी पड़ती है.

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