महासमुंद: कोरोना महामारी के इस संकट काल में ETV भारत ने हर वर्ग, हर मुद्दे को लोगों के सामने रखा है. इसी कड़ी में हमारी टीम महासमुंद पहुंची और छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय कलाकार या छॉलीवुड कलाकार कहलाने वाले इन कलाकारों का हाल जाना.
कोरोना ने छत्तीसगढ़ी कलाकारों की छीनी खुशियां 'क्षेत्रीय कलाकारों पर कोरोना की दोहरी मार'
संस्कृति को बचाने की जद्दोजहद कोरोना महामारी का क्षेत्रीय कलाकारों की जीवन शैली पर काफी असर पड़ा है. इन कलाकारों का कहना है कि करोना का रोना तो आज का है. लेकिन सदियों से वे रो रहे हैं. क्योंकि उन्हें क्षेत्रीय कलाकार होने का श्राप मिला हुआ है, और इस श्राप से ये कलाकार आज तक मुक्त नहीं हो पाए हैं. इस ओर ना तो सरकार ने ध्यान दिया और ना ही उन्हें किसी योजना के माध्यम से लाभ पहुंचाया गया. उनका कहना है कि कोरोना महामारी तो 4 महीने पहले आई है, लेकिन इनकी स्थिति कई सालों से ऐसी ही है. हालांकि पहले धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में उन्हें मौका भी मिलता था लेकिन करोना के चलते वह भी पूरी तरह से खत्म हो गया. शादियों में आर्केस्ट्रा, सावन में भजन कीर्तन ,रामनवमी, हनुमान जयंती जैसे कार्यक्रम कर वह अपना पेट पालते थे या फिर इन मंचों के माध्यम से अपनी संस्कृति को जिंदा रखने की कोशिश में लगे हुए थे लेकिन कोरोना ने रही-सही कसर भी खत्म कर दी.
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जिले में करीब 7000 कलाकार
भजन मंडली, नाचा, गम्मत रामलीला, मोहरी वादक के कुछ गिने-चुने कलाकार ही बचे हुए है जो इसे जिंदा रखे है. मुश्किल समय में भी ये अपनी इस कला को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. पहले मार्च से लेकर जून तक शादियों में, आर्केस्ट्रा और सावन माह में कांवरियों के कार्यक्रम में सेवा गीत सुना कर अपनी कला को जीवित रखने के साथ ही इनकी कमाई भी हो जाती थी. लेकिन इस कोरोना महामारी के कारण शादी समारोह रुक गए, सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम बंद हो गए, जिससे इनका रोजगार भी छिन गया. इन कलाकारों की मानें तो इनकी स्थिति काफी खराब चल रही है, वहीं आने वाले समय में भी कुछ बदलाव होता नजर नहीं आ रहा है. कलाकारों का कहना है कि उन्होंने सरकार से कई बार क्षेत्रीय कला को बचाने और उन्हें बढ़ावा देने की गुहार लगाई है, ताकि उनकी संस्कृति को बचाया जा सके और इन्हें भी रोजगार मिले. पढ़ें:सैंड आर्टिस्ट ने उकेरी 'गोधन न्याय योजना' के प्रतीक चिन्ह की सुंदर तस्वीर
एक समय था जब इन कलाकारों की उपस्थिति से ही खुशी का माहौल बनता था. लेकिन अब इनके ही घरों से रौनक गायब है. इन कलाकारों ने सरकार से अनुदान, वाद्य यंत्र और भवन की सहायता करने की अपील की है. गौरतलब है छत्तीसगढ़ को अपने अस्तित्व में आए 20 साल हो चुके हैं, फिर भी यहां के क्षेत्रीय कलाकारों का अस्तित्व अभी भी कश्मकश में है.