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Saraipali Assembly Seat Profile : गाड़ा समाज के हाथों में है जीत और हार की तार, जानिए सरायपाली विधानसभा का समीकरण ? - Kismat lal nand

Saraipali Assembly Seat Profile : महासमुंद की सरायपाली विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है.इस विधानसभा में अब तक चार बार विधानसभा चुनाव हुए हैं.जिसमें कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला बराबरी का रहा है.यानी दो बार इस विधानसभा में बीजेपी और दो बार कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया है.इस बार इस विधानसभा सीट पर बीजेपी ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है.वहीं कांग्रेस ने चातुरी नंद पर दाव खेला है.

Saraipali Assembly Seat Profile
गाड़ा समाज के हाथों में है जीत और हार की ता

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Sep 2, 2023, 9:56 PM IST

Updated : Nov 9, 2023, 3:30 PM IST

महासमुंद :सरायपाली विधानसभा पड़ोसी राज्य ओडिशा की सीमा को छूती है. इसलिए यहां का ज्यादातर व्यवसाय ओडिशा मार्ग से ही होता है.कभी ये इलाका नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता था.लेकिन नक्सल विरोधी अभियान के बाद ये इलाका अब नक्सलियों के आतंक से मुक्त हो चुका है.इस विधानसभा सीट से बीजेपी ने अपने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है. मौजूदा समय में यहां से बीजेपी की सरला कोसरिया बीजेपी उम्मीदवार हैं.वहीं कांग्रेस ने इस विधानसभा से चातुरीनंद को टिकट दिया है.

कौन हैं सरला कोसरिया ? :बीजेपी ने इस बार सरायपाली से सरला कोसरिया को टिकट दिया है. सरला कोसरिया पूर्व राज्यसभा सांसद रेशमलाल जांगड़े की छोटी बेटी हैं.सरला कोसरिया वर्ष 2016 से भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर हैं. इनका गायत्री परिवार से भी खासा जुड़ाव है. सरला कोसरिया साल 2010 से 2015 तक महासमुंद जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. सरला कोसरिया पार्टी के प्रति निष्ठावान और प्रखर वक्ता के रूप में जानी जाती हैं. सरला के पति बीबी कोसरिया पेशे से डॉक्टर हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में भी सरला टिकट की दावेदार थीं.लेकिन टिकट नहीं मिलने पर वो नाराज चल रही थी.लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने सरला को आश्वासन दिया.जिसके बाद वो लगातार पांच साल कर बीजेपी के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रहीं थी.

कौन हैं चातुरी नंद ? :चातुरी नंद वर्तमान में भूकेल हाईस्कूल में शिक्षिका है . प्रदेश चौहान सेना की प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. इसके साथ ही पिछले कई सालों से समाजसेवा से जुड़े कई काम कर रहीं हैं.आपको बता दें कि सर्वे से पहले ही कांग्रेस संगठन में सरायपाली कांग्रेस विधायक किस्मत लाल नंद का विरोध हो रहा था.जिसे देखते हुए आलाकमान ने किस्मत की पेटी बंद कर चातुरी को मौका दिया है.

मतदाताओं की स्थिति :मतदाताओं की संख्या देखी जाए तो 205033 मतदाता मौजूद हैं. जिसमें पुरुष मतदाता की संख्या 102364 हैं. वहीं 102669 महिला मतदाता यहां मतदान करके अपना नेता चुनते हैं.

साल 2018 के चुनाव परिणाम :महासमुंद जिले मे डीएसपी के पद से सेवानिवृत्त होकर साल 2018 में किस्मत लाल नंद ने विधायक के लिए चुनाव लड़ा. पहले ही चुनाव में किस्मत लाल नंद ने बीजेपी के प्रत्याशी श्याम तांडी को रिकॉर्ड मतों से हराया. 2018 चुनाव में किस्मत लाल नन्द को 1 लाख 302 मत मिले थे. जबकि बीजेपी के श्याम तांडी को 48 हजार 14 मतों से ही संतोष करते हुए हार स्वीकारनी पड़ी थी.

सरायपाली का जातिगत समीकरण :इस इलाके में गाड़ा समुदाय के लोग ज्यादा संख्या में रहते हैं.क्षेत्र में अघरिया और कोलता समुदाय की भी अधिकता है.यहां पर 24 फीसदी एसटी, 11 फीसदी एससी, 18 फीसदी अघरिया और 16 फीसदी वोटर कोलता समाज के हैं. इसके अलावा सामान्य और अल्पसंख्यक वोटर 2 फीसदी हैं.


सरला को टिकट मिलते ही गाड़ा समाज नाराज : आपको बता दें कि सतनामी समाज की सरला कोसरिया को टिकट मिलने पर दूसरे समाज के कार्यकर्ता काफी नाराज हो गए हैं.इस विधानसभा में गाड़ा समाज बड़ी संख्या में मौजूद है. गाड़ा समाज को उम्मीद थी कि उन्हें टिकट मिलेगा.लेकिन ऐसा नहीं हुआ.पिछली बार के बीजेपी प्रत्याशी श्याम तांडी ने टिकट घोषणा के बाद अपने समर्थकों समेत बीजेपी छोड़ी और कांग्रेस में प्रवेश किया है.ऐसे में आगामी विधानसभा में गाड़ा समाज की नाराजगी का असर भी चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है.

सरायपाली विधानसभा का इतिहास :सियासी समीकरण की बात की जाए तो इस सीट को लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता था.छत्तीसगढ़ गठन के बाद इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच बराबरी का मुकाबला रहा है. यहां कांग्रेस तो कभी बीजेपी के प्रत्याशी को जीत मिलती रही है. राज्य बनने के बाद 2003 के चुनाव में यहां बीजेपी के त्रिलोचन पटेल ने कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर को हरा कर कांग्रेस को झटका दिया था.इसके बाद एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की जीत का ट्रेंड चला. 2008 से पहले यह सीट सामान्य थी. जिस पर सरायपाली राजपरिवार सालों से इस इलाके की सियासी किस्मत लिखता रहा है. राजपरिवार के सदस्यों ने लंबे समय तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है.

राजपरिवार का दखल हुआ कम :लेकिन 2008 में परिसीमन के बाद जब से ये सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हुई है. तब से सरायपाली की सियासत पर इस महल का असर लगभग नहीं के बराबर हो गया है.बीजेपी ने दूसरी बार इस सीट पर महिला प्रत्याशी को मौका दिया है. इसके पहले 2008 में नीरा चौहान को उम्मीदवार बनाया था.जिन्हें कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. हर्षवर्धन भारद्वाज ने हराया था.कांग्रेस के टिकट पर यहां राजपरिवार से जुड़े महेंद्र बहादुर और देवेंद्र बहादुर जीतते रहे हैं.सरायपाली में कई नेता हैं जो अब इस सीट से अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.

सरायपाली की समस्याएं और मुद्दे :यहां समस्याओं और मुद्दों की बात करें तो सरायपाली को नवीन जिला बनाने की मांग 1984 से लगातार हो रही है. सरायपाली जिला मुख्यालय से 120 किमी दूर है. हर बड़े काम के लिए यहां के लोगों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. व्यापारिक दृष्टिकोण से यह इलाका काफी महत्वपूर्ण है. लंबे समय से यहां रेल लाइन की मांग हो रही है.रेल ना होने की वजह से लोगों को सफर करने में आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है.साथ ही साथ अधिक समय लगता है. रोजगार की तलाश में कई परिवार दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं.

बागबाहरा से बरगढ़ को रेल लाइन से जोड़ने की बात 5 दशकों से चल रही है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही इस मुद्दे को समय-समय पर उठाया है.2012 में सर्वे के लिए बजट में भी शामिल किया गया. लेकिन इसके बाद कुछ नहीं हुआ. ग्रामीण सड़कों की हालत इतनी खराब है कि बड़े बड़े गड्ढे साफ नजर आते हैं. बारिश में पुल नहीं होने से कई गांवों का संपर्क मुख्य सड़क से टूट जाता है. कई स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं. उच्च शिक्षा का भी बुरा हाल है. सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी किसानों को नहीं मिलता.

Last Updated : Nov 9, 2023, 3:30 PM IST

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