महासमुंद: लोगों की लापरवाही पर भारी पड़ रहे कोरोना संक्रमण के बीच महासमुंद जिले का मुढ़ेना गांव एक नई राह दिखा सकता है. इस गांव में भी वर्षों पहले एक महामारी ने दस्तक दी थी. जिसे रोकने के लिए यहां के लोगों ने गांव में भीड़ इकट्टा न करने का फैसला लिया था. नतीजा बेहतर आया. यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है.
कुंवारा गांव से सीखें कैसे महामारी से जीत सकते हैं जंग जिला मुख्यालय से 9 किमी की दूरी पर मुढ़ेना गांव बसा है. यहां की आबादी करीब 1 हजार 717 है. गांव में 333 परिवार रहता है. इस गांव में न तो होलिका दहन किया जाता है और न ही हाट बाजार लगता है. होलिका दहन नहीं करने के पीछे का कारण पता करने पर पता चला कि कई साल पहले गांव में महामारी फैल गई थी.
महामारी से बचने के लिए लिया फैसला
गांव में फैली महामारी के दौरान होली का त्योहार आया. जिसपर ग्रामीणों ने फैसला लिया की गांव में हाट बाजार और होलिका दहन नहीं किया जाएगा. इसके पीछे ग्रामीणों का तर्क था कि होलिका दहन और हाट बाजार में लोग बाहर से आएंगे तो महामारी और फैल जाएगी. इसलिए उस वर्ष न तो होलिका का दहन किया गया और न ही उस दिन से हाट बाजार लगाया गया. मतलब यहां भीड़-भाड़ जैसी कोई चीज नहीं है. गांव के लोगों का कहना है कि सादगी और एकाकीपन के कारण इस गांव को कुंवारा गांव भी कहते हैं. गांव में ये परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है.
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एक ओर जहां दुनिया में कोरोना लगातार फैल रही है, बवजूद इसके लोग दो-चार दिन भी घर में रहना नहीं पसंद कर रहे हैं. वहीं मुढ़ेना गांव में वर्षों पहले फैली महामारी से बचने के लिए आज भी एक परंपरी का निर्वहन किया जा रहा है. सच में यह गांव आज की दुनिया में आदर्श ग्रामाण की अवधारणा को पूरा करता है