महासमुंद: लॉक डाउन ने लोगों की महकती बगिया भी उजाड़ दी है. इन फूलों के साथ-साथ उनके सपने भी टूट गए, जिन्होंने दिन रात मेहनत कर अच्छे दिनों की उम्मीद की थी. कोविड 19 महामारी ने फूलों की खेती करने वाले किसानों को बेबस कर दिया है. जो कभी शादियों और समारोहों की शान हुआ करते थे, वो खेतों में फेंके जा रहे हैं.
आज से 4 साल पहले की बात करें तो महासमुंद ही नहीं पूरा छत्तीसगढ़ फूलों के लिए पुणे और कोलकाता पर डिपेंड था. लेकिन इन 4 सालों में महासमुंद के किसानों ने फूल की खेती में ऐसी सफलता हासिल की कि छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि बाकी राज्यों में भी यहां से फूलों की सप्लाई होने लगी थी. लेकिन अब उन किसानों की हालत खराब होने लगी है, जो कभी एक एकड़ में खेती करते 12 से 13 लाख का मुनाफा कमा लिया करते थे.
फूल तोड़ते तो हैं लेकिन फेंकने के लिए
पाली हाउस में गुलाब की खेती कर रहे अमर चंद्राकर का कहना है कि कोरोना के कारण हमारा पूरा काम बंद हो गया है. सोशल गैदरिंग बंद हो गई है, जिसकी वजह से फूलों की डिमांड बंद हो गई है. जिसके कारण रोज फूल तोड़ते तो हैं, लेकिन उसे बेचने के लिए नहीं कचड़े में फेंकने के लिए. उनका कहना है कि हमें इन पेड़ों को जिंदा रखने के लिए इनके फूल तोड़ना ही पड़ता है. जिसके लिए हमें रोज मजदूर की आवश्यकता होती है.
'जैसे-जैसे लॉक डाउन बढ़ेगा, वैसे-वैसे घाटा'