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SPECIAL: घर बैठते तो परिवार का पेट कैसे पालते, चर्मकारों की दुर्दशा देखने वाला कौन ?

कोरोना संकट के दौर में चर्मकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. कोरोना का खतरा जूतों और चप्पलों से ज्यादा है इसलिए लोग भी इनके पास आने में कतरा रहे हैं. लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए चर्मकार जान जोखिम में डालकर जूते-चप्पल सिल रहे हैं.

even after unlock in mahasamund, the condition of cobblers is bad
कोरोना ने शू मेकर का बिगाड़ा बजट

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Published : Jun 10, 2020, 11:10 PM IST

Updated : Jun 16, 2020, 9:42 AM IST

महासमुंद: कोविड- 19 महामारी के संक्रमण के दौरान ही सरकार ने अनलॉक घोषित किया है, जिससे लोगों की जिंदगी पटरी पर लौटे. घर पर बैठे लोग अपना काम शुरू कर सकें, जिससे उनकी जिंदगी चल सके. लेकिन जितना आसान कह देना है, उतना हो जाना नहीं. यकीन नहीं होता तो इन चर्मकारों को देख लीजिए. हमारे पैरों में कंकड़-पत्थर न लगे जाएं इसके लिए वे जूता-चप्पल सिलने का काम करते हैं लेकिन अपनी जिंदगी में पैबंद लगाने के लिए परेशान हैं.

चर्मकारों की दुर्दशा

एक तो चर्मकारों की कमाई नहीं हो रही, उसपर आने वाले लोगों के लिए सैनिटाइजर का भी इंतजाम करने की मजबूरी है. सामान्य दिनों में ही इनका खर्च चलना मुश्किल होता था, कोरोना ने न सिर्फ जेब का बजट गड़बड़ा दिया बल्कि कमाई भी कम कर दी. चर्मकार कहते हैं कुछ दिनों में बरसात हो जाएगी तो काम और कम हो जाएगा.

जूते-चप्पल सिलवाने नहीं आ रहे लोग

सामान्य दिनों में सुबह से शाम तक 200 से 250 रुपए कमाने वाले पिछले 3 महीने से बिना कमाई के ही जी रहे थे. लॉकडाउन हटा तो फिर से उन्होंने अपने काम की शुरुआत कर दी, लेकिन अब के हालात पहले जैसे नहीं रहे. कोरोना महामारी के कारण अब शू मेकर का काम नहीं चल पा रहा है. क्योंकि पहले की तरह लोग बिना रोकटोक कहीं भी आना-जाना नहीं कर रहे हैं. जो लोग बाहर जा भी रहे हैं तो उनमें हर कोई जूता, चप्पल सिलवाने या पॉलिश करवाने नहीं आ रहा है क्योंकि स्थिति अब बदल गई है.

जूतों-चप्पलों से कोरोना का ज्यादा खतरा

जूतों, चप्पलों से भी कोरोना के फैलने के खतरे के कारण अब लोग बाहर जूता या चप्पल सिलवाने नहीं जा रहा है. सिर्फ बहुत जरूरतमंद ही इन जूता बनाने वालों के पास पहुंच रहे हैं. इस हाल में ये शू मेकर भी सुरक्षित नहीं है लेकिन घर चलाने के लिए फिर भी उसे रोड के किनारे धूप में बैठकर लोगों का इंतजार करना पड़ रहा है.

सिर्फ 12 शू मेकर वापस काम पर लौटे

लॉकडाउन से पहले शहर के फुटपाथ पर 40 जूते बनाने वाले बैठकर काम किया करते थे लेकिन लॉकडाउन खत्म होने के बाद अब सिर्फ 12 लोग ही वापस अपना काम कर रहे हैं. बाकी के लोग दूसरा काम कर रोजी-रोटी कमाने की कोशिश कर रहे हैं. जो 12 लोग रोड किनारे काम कर भी रहे हैं उनकी स्थिति बहुत खराब है. दिन भर में सौ रुपए कमाना भी मुश्किल हो रहा है. जितने की कमाई नहीं हो रही है उससे ज्यादा उनको सैनिटाइजर में खर्च करना पड़ रहा है.

सैनिटाइजर से कर रहे अपनी सुरक्षा

ETV भारत से बातचीत में इन्होंने बताया कि घर में अकेले कमाने वाले हैं और सब खाने वाले. ऐसे में ये अपने घर कैसे बैठते. इनमें एक ऐसा भी है जो मूक बधिर है लेकिन इसके बाद भी वह रोड किनारे जूते-चप्पल सिलकर अपना पेट पालने की कोशिश में जुट गया है. साथ ही कोरोना महामारी से खुद को और अपने ग्राहकों को बचाने शासन के आदेश का पालन करते हुए सैनिटाइजर रखकर काम कर रहा है. कोई भी ग्राहक के आने से पहले उसे सैनिटाइज करता है और फिर चार पैसे कमाने की कोशिश करता है.

सरकार से मदद की आस

बड़े और मध्यम वर्गीय व्यापारी सरकार के गाइडलाइन के अनुसार अपनी दुकान के बाहर सैनिटाइजर मशीन लगाए हुए हैं, लेकिन रोड किनारे बैठकर जूते-चप्पल सिलने वाला गरीब भी अपनी छोटी सी बिना छत की दुकान में हर आने वाले ग्राहकों को सैनिटाइजर देकर पहले हाथ साफ करवा रहा है. लेकिन इन्हें सरकार से भी मदद की उम्मीद है.

Last Updated : Jun 16, 2020, 9:42 AM IST

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