महासमुंद: कोविड- 19 महामारी के संक्रमण के दौरान ही सरकार ने अनलॉक घोषित किया है, जिससे लोगों की जिंदगी पटरी पर लौटे. घर पर बैठे लोग अपना काम शुरू कर सकें, जिससे उनकी जिंदगी चल सके. लेकिन जितना आसान कह देना है, उतना हो जाना नहीं. यकीन नहीं होता तो इन चर्मकारों को देख लीजिए. हमारे पैरों में कंकड़-पत्थर न लगे जाएं इसके लिए वे जूता-चप्पल सिलने का काम करते हैं लेकिन अपनी जिंदगी में पैबंद लगाने के लिए परेशान हैं.
एक तो चर्मकारों की कमाई नहीं हो रही, उसपर आने वाले लोगों के लिए सैनिटाइजर का भी इंतजाम करने की मजबूरी है. सामान्य दिनों में ही इनका खर्च चलना मुश्किल होता था, कोरोना ने न सिर्फ जेब का बजट गड़बड़ा दिया बल्कि कमाई भी कम कर दी. चर्मकार कहते हैं कुछ दिनों में बरसात हो जाएगी तो काम और कम हो जाएगा.
जूते-चप्पल सिलवाने नहीं आ रहे लोग
सामान्य दिनों में सुबह से शाम तक 200 से 250 रुपए कमाने वाले पिछले 3 महीने से बिना कमाई के ही जी रहे थे. लॉकडाउन हटा तो फिर से उन्होंने अपने काम की शुरुआत कर दी, लेकिन अब के हालात पहले जैसे नहीं रहे. कोरोना महामारी के कारण अब शू मेकर का काम नहीं चल पा रहा है. क्योंकि पहले की तरह लोग बिना रोकटोक कहीं भी आना-जाना नहीं कर रहे हैं. जो लोग बाहर जा भी रहे हैं तो उनमें हर कोई जूता, चप्पल सिलवाने या पॉलिश करवाने नहीं आ रहा है क्योंकि स्थिति अब बदल गई है.
जूतों-चप्पलों से कोरोना का ज्यादा खतरा
जूतों, चप्पलों से भी कोरोना के फैलने के खतरे के कारण अब लोग बाहर जूता या चप्पल सिलवाने नहीं जा रहा है. सिर्फ बहुत जरूरतमंद ही इन जूता बनाने वालों के पास पहुंच रहे हैं. इस हाल में ये शू मेकर भी सुरक्षित नहीं है लेकिन घर चलाने के लिए फिर भी उसे रोड के किनारे धूप में बैठकर लोगों का इंतजार करना पड़ रहा है.