कोरिया:कोरोना वायरस (corona virus)के चलते लॉकडाउन (lockdown) की मार मिट्टी के मटके (घड़ा) बनाने वाले कुम्हारों (Potters) पर पड़ रही है. इन परिवारों ने सालभर की पूंजी लगाकर और कर्ज लेकर इस उम्मीद में मटके बनाए थे कि गर्मी के सीजन में मटकों की मांग बढने पर मुनाफा होगा, लेकिन इनकी आस टूटती जा रही है. लॉकडाउन के चलते कुम्हार न ही ये मटके दूसरे शहरों में भेज पा रहे हैं और न ही गांवों और कस्बों में इन्हें बेच पा रहे हैं.
आज भी फ्रिज से ज्यादा मटके के पानी का महत्व
गर्मी के दिनों में मटके की मिट्टी की सौंधी खुशबू वाला पानी लोगों के लिए अमृत के समान होता है. वैसे आज के दौर में लोग फ्रिज का पानी ज्यादा पीते हैं, लेकिन अब भी काफी लोग मटके का पानी-पीना ठीक समझते हैं. खासकर कोरोना संक्रमण के दौरान लोग फ्रिज के पानी को पीने से परहेज कर रहे हैं. फ्रिज के पानी के मुकाबले मटके के पानी की तासीर ज्यादा ठंडी होती है.
कुम्हारों पर लॉकडाउन की मार
गर्मी का मौसम शुरू होते ही देसी फ्रिज यानी मटकों की खरीददारी शुरू हो जाती है. इससे कुम्हारों और इसे बेचने वालों के परिवार का गुजर-बसर होता है, लेकिन इस बार गर्मी आने के बावजूद सुराही और मटके बनाने वाले कुम्हार और विक्रेता परेशान हैं. लॉकडाउन के कारण कुम्हारों की मेहनत पर पानी फिरने लगा है. पिछले साल की तरह एक बार फिर कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते लॉकडाउन लगाया गया है. लॉकडाउन से जहां हर वर्ग प्रभावित हो रहा है. वहीं इसकी मार कुम्हारों पर भी पड़ी है.
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लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार
साल भर से मटके की बिक्री का इंतजार कर रहे कुम्हारों के धंधे पर कोरोना महामारी (कोविड -19) का ग्रहण ही लग गया है. मटका बनाने वाले कुम्हारों के अनुसार मिट्टी के बर्तन तैयार हैं. कुम्हारों का कहना है कि लॉकडाउन के चलते बिक्री नहीं हो पा रही है. यदि हालात ऐसे ही रहे तो उन्हें दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल हो जाएगा. गर्मी को देखते हुए कुम्हार कई महीने पहले से ही मिट्टी के मटके, सुराही, तवा आदि बनाने का काम करते हैं. ताकी गर्मी के सीजन में इसकी बिक्री की जा सके. लेकिन कोरोना महामारी से बचाव के लिए जारी लॉकडाउन के चलते बिक्री न के बराबर हो रही है.