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कोरिया: सादगी के साथ निकाली गई भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

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Published : Jun 24, 2020, 11:04 AM IST

Updated : Jun 24, 2020, 12:59 PM IST

कोरिया के चिरमिरी में मंगलवार को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली गई. कोरोना काल की वजह से इस बार की रथ यात्रा में सादगी देखने को मिली है. इस यात्रा में ज्यादा लोगों को भी शामिल नहीं किया गया है.

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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

कोरिया: चिरीमिरी के भगवान जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली गई. भव्य रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियों को बिठाकर नगर में भ्रमण कराया गया. रथ यात्रा में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ सैकड़ों श्रद्धालु भी शामिल हुए. कोरोना संक्रमण के कारण इस साल रथयात्रा में लोग मास्क पहनकर शामिल हुए थे. इस साल रथ यात्रा में ज्यादा लोगों को शामिल भी नहीं किया गया था.

सादगी के साथ निकाली गई भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा कार्यक्रम के अध्यक्ष शशिकांत सवाई ने बताया कि विश्रामपुर में पिछले 4 साल से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जा रही है, लेकिन इस बार कोरोना संकट की वजह से यात्रा में ज्यादा लोगों को शामिल नहीं किया गया.

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पुरी के मंदिर की तरह किया गया निर्माण

चिरमिरी के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण ओडिशा के पुरी के मंदिर की तरह किया गया है. चिरमिरी में जब से भगवान जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण हुआ है, तब से यहां रथ यात्रा निकाली जा रही है. रथ यात्रा के दौरान भक्तों ने भगवान जगन्नाथ की रथ की रस्सी खिंचकर पूरे मंदिर के प्रांगण में घूमाया. कोरोना के कारण रथ यात्रा को दौरान भक्तों की ज्यादा भीड़ मंदिर में नजर नहीं आई.

35 साल से निकाली जा रही है रथ यात्रा

भक्तों ने बताया कि चिरमिरी में पिछले 35 साल से रथ यात्रा निकाली जा रही है. ऐसी मान्यता है कि रथ यात्रा में शामिल होने और रथ को खिंचने से साभी मनोकामनां पूरी होती है. भक्त बताते हैं, रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ को मंदिर से निकालकर उनके मौसी के घर ले जाया जाता है.

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14 दिन तक भगवान जगन्नाथ का होता है उपचार

मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर परिसर में 108 घड़ों के सुगंधित जल से पवित्र स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ भक्तों के सामने हाथी के भेष में आते हैं, जिसके बाद उन्हें बुखार आ जाता है. बुखार के कारण भगवान को पूरे शरीर में दर्द होता है. इसके बाद भगवान को सीधे जगमोहन के एकांत कमरे ले जाया जाता है. यहां दैत सेवक उनकी सेवा करते हैं और 14 दिनों तक भगवान का गुप्त रूप से उपचार किया जाता है.

जड़ी-बूटियों से बनाया जाता है काढ़ा

ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर पुण्य स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ को आषाढ़ माह की अमावस्या पर अगले पखवाड़े के लिए एकांत में भेज दिया जाता है. इस अवधि के दौरान चतुर्दशी मूर्ति (यानी भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बालभद्र, बहन देवी सुभद्रा और श्री सुदर्शन) को देखने की मनाही होती है. भगवान के 14 दिन के उपचार के दौरान उनके लिए 10 जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाया जाता है और उन्हें चढ़ाया जाता है. इस दौरान भगवान को केवल फल, औषधीय जड़ी-बूटी और काढ़ा चढ़ाया जाता है और सभी अनुष्ठान गुप्त रूप से किए जाते हैं.

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उपचार पूरा होने तक चंदन की लकड़ी, चॉक, औषधी, माड़ी और कढ़ाई अस्तर से कई अनुष्ठान किए जाते हैं. पखवाड़े के 14वें दिन अमावस्या से एक दिन पहले भगवान अपने भक्तों के सामने प्रकट होने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिसे नेत्रोत्सव कहा जाता है.

Last Updated : Jun 24, 2020, 12:59 PM IST

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