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कोरिया: इस गांव में होली के बाद होती है मुर्गों और केकड़ों की दौड़

कोरिया के बैरागी गांव में होली के दो दिन बाद होने वाले एक विशेष आयोजन में केकड़ा दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. वहीं खुले में जंगली मुर्गा, गिलहरी को पकड़ने के लिए दौड़ भी होती है.

Competition takes place after Holi in koriya
होली के बाद होती है प्रतियोगिता

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Published : Mar 12, 2020, 11:36 PM IST

कोरिया: होली पर जहां शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग अपने मनोरंजन और उत्साह के लिए कई प्रकार के आयोजन आयोजित करते हैं, जिनमें भारी भरकम राशि खर्च होती है. वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अंचलों में आज भी ऐसी परंपराएं हैं, जिनके, जरिए ग्रामीण अपना मनोरंजन करते हैं. कोरिया जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर मौजूद बैरागी गांव की पहचान होली के दो दिन बाद होने वाले एक विशेष आयोजन को लेकर है और इस पर पूरे प्रदेश में नजर बनी हुई है. यह अनूठी प्रतियोगिता न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि पूरे देश में जानी जाती है.

होली के बाद होती है प्रतियोगिता

ऐसी प्रतियोगिता है, जिसमें पानी के अंदर जहां केकड़ा दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. वहीं खुले में जंगली मुर्गा, गिलहरी को पकड़ने के लिए दौड़ होती है, जिसे देखने के लिए आसपास के कई गांवों के लोग काफी संख्या में एकत्रित होते हैं. प्रतियोगिता में दर्शकों के लिए न तो कोई राशि होती है और न ही किसी प्रकार का सहयोग.

होली के बाद होती है प्रतियोगिता

बीते कई दशकों चलने वाली इस अनूठी प्रतियोगिता को देखने के लिए लोगों के उत्साह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, होली के बाद इस प्रतियोगिता की तैयारी में पूरे गांव के लोग दो समूहों में बंटकर जंगल और नदी की ओर चल देते हैं.

सभी वर्ग के लोग खेल में होते हैं शामिल

इनमें से एक समूह पुरूषों का होता है जिसमें, बच्चें भी शामिल होते हैं. वहीं दूसरे समूह में महिलाएं और युवतियां शामिल होती हैं. पुरूष जंगल में जाकर जंगली मुर्गा, गिलहरी ढूढ़ते हैं और महिलाएं नदियों में जाकर केकड़ा और मछली पकड़ती हैं और फिर दूसरे दिन मुकाबले की तैयारी शुरू होती है.

टब में केकाड़ा, मछली

ऐसी हैं इस खेल की मान्यताएं

प्रतियोगिता की शुरूआत में ग्रामीण तयशुदा जगह पर एक बड़ा घेरा बनाते हैं. इस घेरे में गांव के पुरूष और खिलाड़ी महिलाएं शामिल होती हैं. सीटी बजने के साथ ही गांव के पुरूष वर्ग के लोग हाथ में पकड़कर रखे मुर्गा और गिलहरी को एक साथ छोड़ते हैं. इन्हें पकड़ने के लिए महिलाओं का समूह इनके पीछे जंगल की ओर भागता है. इस खेल के पीछे मान्यता है कि अगर महिलाएं पुरूषों ने छोड़े गए मुर्गे और गिलहरी को पकड़ लेती हैं, तो गांव में साल भर अकाल नहीं पड़ेगा. वहीं अगर महिलाएं मुर्गे और गिलहरी को पकड़ने में सफल नहीं हुई तो उन्हें अर्थदंड भी भरना पड़ता है. जिससे मिलने वाले राशि का सामूहिक भोज में उपयोग किया जाता है.

पुरुष पड़कते है मछली और केकड़ा

महिलाओं के बाद पुरूषों और बच्चों के लिए प्रतियोगिता शुरू होती है. जिसमें गांव के लोगों पॉलीथीन लगाकर एक छोटा तालाब बनाया जाता है. इसमें गांव की महिलाएं जो नदियों से मछली और केकड़ा पकड़कर लाती हैं, जिसे छोड़ा जाता है. इस प्रतियोगिता में निर्णायक सीटी बजाने के साथ ही पुरूषों को इस तालाब से मछलिया और केकड़ा पकड़ना होता है. जो पुरूष सबसे अधिक केकड़ा और मछली पकड़ता है उसे विजय घोषित किया जाता है, इसी कड़ी में ग्रामीणों के बीच रोमांचकारी केकड़ा को पकड़ने की प्रतियोगिता का आयोजित की जाती है.

खेल प्रतियोगी

गांव में होता है उत्साहपूर्ण वातावरण

इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले समस्त खिलाड़ियों और ग्रामीणों के लिए बैरागी गांव के लोगों रात में सामूहिक भोज का आयोजन किया गया. इसमें सभी तबके के लोग उत्साहपूर्ण वातावरण में शामिल हुए. इस परंपरा को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि बीते कई दशकों से गांव में यह अनूठी प्रतियोगिता आयोजित होती है. इसमें उनका एक रुपए भी खर्च नहीं होता है.

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