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कोरबा में इस मुद्दे को लेकर डीईओ-अपर कलेक्टर आए आमने-सामने

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Published : Jul 11, 2019, 12:09 AM IST

सरकारी स्कूल की परीक्षा में गलत प्रश्न पत्र छापने के मामले में जिला प्रशासन ने शिक्षा विभाग को ही कटघरे में खड़ा कर प्रिंटिंग प्रेस को क्लीन चिट देते हुए लाखों रुपए के भुगतान का आदेश दे दिया है.

आदेश की कॉपी

कोरबा: छत्तीसगढ़ में सरकार भले ही बदल गई हो, लेकिन अभी भी शासन-प्रशासन को ठेकेदार ही चला रहे हैं, जिले में ऐसा ही एक मामला सामने आया है. जी हां, सरकारी स्कूल की परीक्षा में गलत प्रश्न पत्र छापने के मामले में जिला प्रशासन ने शिक्षा विभाग को ही कटघरे में खड़ा कर प्रिंटिंग प्रेस को क्लीन चिट देते हुए लाखों रुपए के भुगतान का आदेश दे दिया है.

कोरबा में इस मुद्दे को लेकर डीईओ-अपर कलेक्टर आए आमने-सामने

दरअसल, मार्च में कक्षा 1 से 8वीं तक के घरेलू परीक्षा आयोजित की गई थी. परीक्षा के लिए राज्य स्तर से प्रश्न पत्रों की सीडी हर जिले को आवंटित की गई, लेकिन कोरबा जिले के प्रश्न पत्रों को छापने वाले बिलासपुर के दो प्रिंटिंग प्रेस ने पर्चा छापने में न केवल गंभीर लापरवाही की बल्कि एसएलए से मिले प्रश्न पत्रों को ही बदलकर मिलाजुला प्रश्न पत्र कोरबा जिले को आवंटित कर दिया.

प्रश्न पत्रों की छपाई में हुए गंभीर लापरवाही का खुलासा होने के बाद जहां स्कूलों में परीक्षाएं प्रभावित हुई. वहीं जिला शिक्षा अधिकारी ने प्रिंटिंग प्रेस को 8 अप्रैल को निविदा नियमों की उल्लंघन का नोटिस जारी कर फिर से राज्य की सीडी से पर्चा प्रिंट कराकर परीक्षा करवाया. मामले में प्रिंटिंग प्रेस की बड़ी लापरवाही सामने आने के बाद भी जिला प्रशासन ने अपनी जांच में शिक्षा विभाग को ही कटघरे में खड़ा कर दिया.

19 जून को जांच रिपोर्ट जारी करते हुए राज्य स्तर से जारी प्रश्न पत्रों की सीडी को त्रुटिपूर्ण बताते हुए प्रिंटर को न केवल क्लीन चिट दे दिया गया, बल्कि 10 दिनों के भीतर प्रिंटर को लाखों रुपए का भुगतान करने का भी फरमान जारी कर दिया गया.

ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि आखिर जिला प्रशासन किसके दबाव में आकर इस तरह के निर्णय ले रहा है. परीक्षा जैसे संवेदनशील कार्यों में लापरवाही बरतने वाले प्रिंटिंग प्रेस को ब्लैक लिस्टेड करने के बजाए, क्यों उसे संरक्षण दिया जा रहा है.

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