कोरबा:देश में एक बार फिर कोयले की कमी की चर्चा जोरों पर है. कोयला खदानों में मजदूरों की संख्या आधी हो गई (Half of workers in coal mines of Korba )है, जबकि कोयला उत्पादन का टारगेट साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में ईटीवी भारत ने कोल इंडिया लिमिटेड के वेज बोर्ड जेबीसीसीआई के सदस्य मजदूर नेता नाथूलाल पांडे से खास बातचीत की. नाथूलाल पांडे ट्रेड यूनियन एचएमएस के संस्थापक हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से कोयला से जुड़े मुद्दों, मजदूरों के वेज रीविजन और कोरबा जिले में हो रही कोयला चोरी जैसे मामलों में बेबाकी से अपनी बात रखी.
नाथूलाल पांडे से खास बातचीत सवाल: राष्ट्रीय स्तर पर आप मजदूरों के नेता हैं, वर्तमान में मजदूरों की क्या स्थिति है? खासतौर पर प्रदेश की ऊर्जाधानी कोरबा में मजदूर किस हालात में हैं?
जवाब:एक जमाना हुआ करता था जब कोल इंडिया में मजदूरों की संख्या साढ़े 7 लाख थी. यह वर्तमान में घटकर 2 लाख 59 हजार रह गई है. यह भी माना जा रहा है कि 2025 आते-आते नियमित मजदूरों की संख्या महज एक लाख ही रह जाएगी. मशीनीकरण पर जोर है. यह एक तरह से ठीक भी है. उसे रोका नहीं जा सकता. अगर इसे रोका गया तो देश में कोयले की कमी हो जाएगी. प्रतिपूर्ति मुश्किल हो जाएगी. लेकिन इसी अनुपात में जो मजदूर रिटायर हो रहे हैं, उनके स्थान पर नए मजदूरों की भर्ती भी की जानी चाहिए.
सवाल: एक तरफ मजदूरों की संख्या कम हो रही है, लेकिन दूसरी तरफ कोयला उत्पादन बढ़ाने का दबाव है. देश में कोयले की कमी की भी बात हो रही है, क्या कहेंगे?
जवाब: देश में कोयला की कमी होने का मुख्य कारण है सप्लाई और डिमांड. कोयले की जितनी डिमांड है, हम उस अनुपात में उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं. पहले भी नहीं कर पाते थे, लेकिन पहले इसकी पूर्ति इंपोर्टेड कोयले से होती थी. विदेशों से कोयला मंगाया जाता था. अब यह नहीं हो रहा है. इंपोर्टेड कोयला काफी महंगा हो गया है. इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. देश के खजाने पर पड़ेगा. देश के संसाधन को बचाने के लिए उद्योगों को कोयला देने के लिए जरूरत है कि कोयले का उत्पादन बढ़ाया जाए.
सवाल: आप जेबीसीसीआई के भी सदस्य हैं. इन परिस्थितियों में धरातल पर मजदूरों की स्थिति में कोई बदलाव आया है क्या?
जवाब:देखिये पिछली मीटिंग में भी मैंने इस बात को उठाया था. लगातार मैं कहते आ रहा हूं कि खदानों में जो मजदूर हैं, जो टेक्नीशियन, ओवरमैन, सुपरवाइजर हैं. वह जब रिटायर हो जाएं तो उनकी जगह नया मजदूर आता है. प्रशिक्षित मजदूर घट रहे हैं. जानकार अधिकारी भी रिटायर हो रहे हैं. हमने मांग की है कि मजदूरों की रिटायरिंग उम्र बढ़ाकर 62 वर्ष किया जाए. तेलंगाना राज्य में एक खदान में यह लागू भी किया गया है.
सवाल: आप उम्र बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. यहां कोरबा जिले में सुराकछार कोयला खदान में चोरी रोकने में नाकाम प्रबंधन इस खदान को बंद करने की बात कर रहा है, क्या कहेंगे?
जवाब: यह बात मेरे संज्ञान में भी आई है. यह बहुत अच्छा हुआ कि मैं कोरबा आ गया. बेहद गंभीरता से यहां के लोगों ने मुझे यह बात बताई है. यह मुझे पता तो था कि चोरी हो रही है. लेकिन इतनी बड़ी तादाद में चोरी हो रही है, यह नहीं पता था. पहले मुझे कुसमुंडा खदान में डीजल चोरी के आतंक के विषय में जानकारी थी कि वहां धमकाकर डीजल चोरी की जाती है. अब सुराकछार में भी खतरनाक ढंग से चोरी हो रही है. इसकी मुझे जानकारी मिली है. मैं इस बात को बेहद गंभीरता से ले रहा हूं. प्रबंधन से भी इस विषय में बात करेंगे. इस मुद्दे को एक जनआंदोलन बनाना होगा. इस मुद्दे पर अब जनता को भी मुखर होकर सामने आना होगा. लोग कहेंगे कि जनता इस मुद्दे से क्यों जुड़े? जनता भी सीधे तौर पर इस मुद्दे से जुड़ी हुई है. एक रोजगार से 18 लोगों को रोजगार मिलता है. अगर माइंस बंद हुई तो लोगों के रोजगार पर असर पड़ेगा. आप देख लीजिए कि कोयला चोरी करके भी कितने लोगों का रोजगार चल रहा है. हालांकि यह गलत बात है. कोयला चोरी रोकनी चाहिए. अगर खदान बंद हुई तो सबसे पहले कोयला चोर बेरोजगार हो जाएंगे. मैनेजमेंट के पास सुरक्षा के इंतजाम हैं. वह भी पर्याप्त नहीं हैं. जो अपराधी किस्म के लोग हैं, वह तरह-तरह के घातक हथियार लेकर आते हैं. मैनेजमेंट के सुरक्षाकर्मी एक डंडा लिए सुरक्षा में तैनात रहते हैं. कई बार तो गोलियां चल जाती है. सुरक्षा व्यवस्था को और भी सुदृढ़ किए जाने की जरूरत है.
यह भी पढ़ें:कोरबा के कोयला यार्ड में कार्रवाई , 110 टन कोयला सहित जेसीबी वाहन जब्त
सवाल: एक और गंभीर विषय है. शायद आपके संज्ञान में होगा. हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा कोल ब्लॉक को अनुमति दे दी गई है. क्या कोयले के लिए जंगल को काटा जाना उचित है. आप किस तरह से देखते हैं?
जवाब:पर्यावरण का मानव समाज के लिए सुरक्षित रहना बेहद जरूरी है. यह जीवन का आधार है. पर्यावरण का अगर विनाश हुआ, ऑक्सीजन की कमी हुई तो उसका भयंकर असर समाज पर पड़ेगा. इस बात पर सरकार को और भी गंभीरता से विचार करना चाहिए. जब ऐसे प्रोजेक्ट की अनुमति देते हैं तो कह दिया जाता है कि काटे गए पेड़ों के बदले इतने पेड़ लगाएंगे. यह भी देखें कि कितने जीवित पेड़ बचे हैं. वास्तविकता क्या है? यह सभी को मालूम है. ऊपर से नीचे तक पूरी व्यवस्था चली आ रही है. पूरी दाल ही काली है. परसा कोल ब्लॉक के विषय में और भी विचार किया जाना चाहिए था. जंगल, आदिवासियों का जीवन होता है. जंगल से ही उनका निर्वहन होता है.
सवाल: राज्य सरकार ने अभी एक और आदेश जारी किया है, जिसमें आंदोलन, धरना-प्रदर्शनों पर कड़ी पाबंदियां लगाई गई है?
जवाब:मैं अन्य आंदोलनों की तो बात नहीं करूंगा, लेकिन कोल उद्योग में होने वाले आंदोलनों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा. वर्तमान पाबंदियों से भी ज्यादा पाबंदियां पहले लगाई गई थी. कई तरह से हमें डराने-धमकाने का प्रयास किया गया, लेकिन मजदूरों की आवाज नहीं दबी. आने वाले समय में भी हम सबको एकजुट करेंगे और मजदूर हित में आंदोलन जरूर खड़ा करेंगे. पिछली बार जब हड़ताल हुई थी तो कुछ मजदूर संगठनों ने इससे दूरी बना ली थी. वर्तमान में जेबीसीसीआई के सामने वेज रिवीजन का जो प्रस्ताव आया है, उसमें मजदूरों की वेतन बढ़ोतरी का 3 फीसदी का प्रस्ताव प्रबंधन ने दिया है. यह एक मजाक है. अगर यह लागू हुआ तो वर्तमान में जो सैलरी मिल रही है, उसमें भी कटौती हो जाएगी. हम इसके खिलाफ भी मजदूर यूनियन को एकत्रित कर रहे हैं. ट्रेड यूनियन आपस में मतभेद भूलकर एकजुट होकर लड़ाई लड़ेंगे.