कोरबा: एसईसीएल (SECL) की बड़ी-बड़ी कोयला खदानों के पास रहने वाले ग्रामीणों का जीवन परेशानियों से घिरा हुआ है. हालात ये हैं कि खदान में उत्खनन के लिए होने वाले ब्लास्टिंग से ग्रामीणों के मकान में दरारें पड़ गई है. देखने में तो यह दरारें ग्रामीणों के मकानों पर दिखती हैं, लेकिन वास्तव में यह दरार उनके जीवन में पड़ गई है. जिससे ग्रामीण बेहद परेशान हैं. ब्लास्टिंग की वजह से ग्रामीणों की रात की नींद भी उड़ गई है.
एसईसीएल (SECL) की कोयला खदानों के उत्खनन और उनके विस्तार के लिए ग्रामीणों की भूमि का अधिग्रहण तो किया जाता है, लेकिन ग्रामीणों से ली गई उनके जमीन के बदले में सरकार ने जो प्रबंध किए हैं, वो कभी भी धरातल पर नहीं उतर पाते. जमीन के बदले उचित मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास की लड़ाई जैसी चीजें अब भू-विस्थापितों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है. भू-विस्थापित संगठन के अध्यक्ष सपूरन कुलदीप कहते हैं कि जमीन के बदले उचित मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था नहीं हो पाती. हम लंबा संघर्ष करते आ रहे हैं, लेकिन समस्याओं का समाधान करने के प्रति अधिकारी कभी भी गंभीर नहीं दिखते. जिसके कारण ग्रामीणों को परेशानी झेलनी पड़ती है.
आधी जमीन का अधिग्रहण
कटघोरा विकासखंड के रलिया गांव के ग्रामीण हर रोज इन परेशानियों को झेल रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं कि एसईसीएल ने रलिया गांव की आधी जमीन का अधिग्रहण कर लिया है. लेकिन आधे गांव को छोड़ दिया है. अब ग्रामीण कहते हैं कि लेना है तो पूरे गांव की जमीन ले लो, आधे गांव की जमीन लेकर आधे गांव को क्यों मुसीबत में डाला जा रहा है.
SPECIAL: ऐसा क्या है कि इस जमीन पर पैर रखते ही उछलने लगते हैं लोग