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टीचर्स डे स्पेशल : ऑनलाइन शिक्षा हुई फेल तो शुरू किया मोहल्ला क्लास, शिक्षादूत को नमन

वनांचल में ऑनलाइन शिक्षा कारगर नहीं रही. बिजली नहीं होने से लॉउडस्पीकर से पढ़ाई का आइडिया भी काम नहीं आया. लिहाज़ा शिक्षकों ने अपनी मेहनत से मोहल्ला क्लास की नींव रखी. कोरोना संकट की घड़ी में वनांचल में बच्चों की पढ़ाई के लिए शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है. लेकिन वे इन शिक्षकों का जज्बा ही है कि वे खुद भी बच्चों के भविष्य को लेकर गंभीर हैं. शिक्षक दिवस पर हम आपकों 2 महिला शिक्षकों से मिलाएंगे.

मोहल्ला क्लास
मोहल्ला क्लास

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Published : Sep 4, 2020, 8:01 PM IST

Updated : Sep 7, 2020, 11:34 AM IST

कोरबा : वैश्विक महामारी ने पढ़ाई के पूरे पैटर्न को बदल दिया है. महामारी में यह भी डर है कि शैक्षणिक गतिविधियों के लिहाज से मौजूदा सत्र शून्य ना हो जाए, पढ़ाई से कटने का सबसे ज्यादा डर प्राथमिक स्तर के उन छात्रों के लिए है, जिनके पूर्वज सदियों से बीहड़ वनांचलों में रहते आए हैं. इनके लिए सरकार भी चिंतित हैं, ऑनलाइन शिक्षा देने की योजना पर काम शुरू हुआ, लेकिन जहां बात करने तक के लिए मोबाइल फोन का नेटवर्क काम नहीं करता, वहां ऑनलाइन शिक्षा कैसे दी जाए. इन तमाम समस्यों के बीच कोरबा से लगभग 35 से 40 किलोमीटर दूर बीहड़ वनांचल के 2 गांव गहानियां और खेतारपारा में पहली से पांचवी तक के बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है. यहां कुल बच्चों की संख्या 19 है, जिन्हें मोहल्ला क्लास के जरिए शिक्षित किया जा रहा है.

टीचर्स डे स्पेशल

दरअसल, कोरोना संकट के बीच स्कूल भवन के उपयोग पर पाबंदी है. सरकार ने निर्देश जारी किए हैं कि ऑनलाइन माध्यम से बच्चों को शिक्षित किया जाए. लेकिन ग्रामीण अंचलों में नेटवर्क की कमी के कारण ये योजना दम तोड़ने लगी है. इसपर राज्य सरकार ने लाउडस्पीकर के जरिए बच्चों को शिक्षित करने की पहल की. लेकिन लाउडस्पीकर चलाने के लिए भी बिजली नहीं है. इन सब कोशिशों से हारकर शिक्षिकाओं ने मोहल्ला क्लास शुरू किया. शुरुआत में बच्चों का रुझान थोड़ा कम जरूर था, लेकिन अब बच्चे भी इसे पसंद कर रहे हैं.

गहानियां और खेतारपारा के बच्चे

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मोहल्ला क्लास के प्रति बच्चे भी खुश

शिक्षिकाओं का कहना है कि मोहल्ला क्लास के प्रति बच्चों का रुझान अच्छा है. अच्छी बात यह है कि पहली कक्षा में एडमिशन लेने वाले बच्चे भी बेहतरीन हैंड राइटिंग में लिख रहे हैं, यहां के मोहल्ला क्लास में जो बच्चे भाग लेते हैं वह शहरी परिवेश से नहीं आते. इन्हें मजे के लिए मोबाइल, लैपटॉप या वीडियो गेम और खाने के लिए चॉकलेट नहीं मिलते. वनों और प्रकृति से इनकी दोस्ती है, ऐसे में इन्हें शिक्षा से जोड़े रखना किसी चुनौती से कम नहीं है. समस्या यह भी है कि ऐसे बच्चों की नींव यदि कमजोर हो तो फिर यह पूरी तरह से शिक्षा से कट जाते हैं.

गहानियां और खेतारपारा के बच्चे

गांव में युवा शिक्षा सारथी नियुक्त

महिला टीचर का यह भी कहना है कि आदिवासियों के पिछड़ने का एक बड़ा कारण यह भी है कि इनकी साक्षरता दर बेहद कम है. बीहड़ों में बसने वाले आदिवासी समय से काफी पीछे चल रहे हैं. ऐसे में वनांचल क्षेत्र में बसने वाले आदिवासी बच्चों की शुरुआती शिक्षा बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है. जमीनी स्तर पर कुछ शिक्षक बेहतर काम कर रहे हैं. शिक्षकों ने गांव में कुछ युवा शिक्षा सारथी को नियुक्त किया है, जिससे कि बच्चों की पढ़ाई में कुछ मदद मिल सके. गहानियां और खेतारपारा दोनों ही गांव के प्राथमिक शाला के शिक्षिकाओं ने गांव के पढ़े-लिखे युवाओं को शिक्षा सारथी बनाया है, जोकि निशुल्क सेवाएं दे रहे हैं, जिससे कि मोहल्ला क्लास का संचालन हो सके.

गहानियां और खेतारपारा के बच्चे

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आदिवासी अंचल में शिक्षा स्तर

  • रायपुर से 200 किमी दूर स्थित है गांव
  • आदिवासियों की संख्या 50 फ़ीसदी से ज्यादा
  • कुल एरिया 7 लाख 14 हजार 544 हेक्टेयर
  • 2 लाख 83 हजार 497 हेक्टेयर वनों से घिरा हुआ
  • कुल जनसंख्या की 51.67 फ़ीसदी लोग आदिवासी
  • पहाड़ी कोरवा, गोंड राजगोंड, कंवर, भैना, बिंझवार, धनुहार निवासरत
  • कुछ विशेष पिछड़ी जनजाति भी शामिल
  • जिले का साक्षरता दर 72.40 प्रतिशत
    गहानियां और खेतारपारा के बच्चे


    रास्ते में पुल पुलिया नहीं
    शिक्षिकाओं की पीड़ा यह भी है कि रास्ता ठीक नहीं है. बरसात के मौसम में पुल किसी काम का नहीं रहता है. भारी बारिश के बीच बच्चों को भी शिक्षित करने में समस्या का सामना करना पड़ता है. सांप, बिच्छू का डर हमेशा बना रहता है. शिक्षिकाओं ने अपने खर्चे पर बच्चों को मास्क, जूते और सैनिटाइजर उपलब्ध कराए हैं. शिक्षक अपने दम पर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं और बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं.
Last Updated : Sep 7, 2020, 11:34 AM IST

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