कोरबा: समाज की रूढ़ीवादी सोच को ठेंगा दिखाकर सोनामती बिन्झवार ने अपने जीवन की ऐसी कहानी लिख दी जिसकी सराहना करते लोग थक नहीं रहे हैं. इस महिला दिवस पर हम आपको एक ग्रामीण महिला के संघर्ष की दास्तान से रूबरू करा रहे हैं, जिनका संघर्ष इस देश की रूढ़िवादी सोच और कुरीतियों पर भारी पड़ रहा है.
ये कहानी कोरबा जिले की पुरैना गांव की रहने वाली सोनामती बिन्झवार की है, जिसके जीवन में कुष्ठ रोग अभिशाप बनकर आया. सोनामती 2001 में गर्भवती हुई. इस दौरान उसे कुष्ठ रोग होने का पता चला. गर्भावस्था में इस बीमारी ने सोनामती को तोड़कर रख दिया. बीमार अवस्था में ही सोनामती ने बच्ची को जन्म दिया. बच्ची के जन्म से सोनामति की गोद तो भर गई, लेकिन जिंदगी सुनसान कोठरी की तरह एक बंद कमरे की मोहताज हो गई. पहले समाज ने सोनामती का बहिष्कार किया फिर ससुराल ने और अंत में पति ने भी सोनामती का साथ छोड़ दिया.
एनजीओ से जुड़ी सोनामती
चारों तरफ से बहिष्कार झेल सोनामती टूट चुकी थी लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और समाज से अपने और बच्चे के लिए लड़ पड़ी. सोनामती ने परिस्थितियों को ठीक करने की ठान ली और एक एनजीओ से जुड़ गई. 7 साल तक एनजीओ से जुड़ कर सोनामती ने नर्सिंग के साथ-साथ सिलाई का काम भी सीख लिया. सोनामती भले ही शिक्षित न हो लेकिन उसकी मेहनत और लगन ने उसे उस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया जिसकी उसने उम्मीद भी नहीं की थी.
दूसरी महिलाओं को भी ट्रेनिंग दी