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SPECIAL: विश्व शरणार्थी दिवस, कोरबा में आज भी बांग्लादेशी रिफ्यूजीज़ को है स्थायी पुनर्वास का इंतजार

आज विश्व शरणार्थी दिवस है. बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को कोरबा पहुंचे करीब 5 दशक बीतने वाले हैं, लेकिन आज भी इनकी परिस्थितियां बिल्कुल नहीं बदली हैं.

world refugee day
विश्व शरणार्थी दिवस

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Published : Jun 20, 2020, 11:48 AM IST

Updated : Jun 20, 2020, 12:14 PM IST

कोरबा:बांग्लादेशी शरणार्थियों को जिले में बसे करीब 50 साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन आज भी इन्हें स्थायी पुनर्वास का इंतजार है. 1982 में करीब 40 बांग्लादेशी परिवारों को रायपुर के माना कैंप से कोरबा में बसाया गया. इसके साथ ही इनके लिए कई घोषणाएं भी की गईं, लेकिन वे आज तक पूरी नहीं हुईं.

पॉवर हब में शरणार्थियों का दर्द

बीते 4 दशकों में कोरबा पॉवर हब बन गया है, लेकिन बांग्लादेश से कोरबा आए शरणार्थियों का जीवन अभी भी वहीं रुका हुआ है. ना इन्हें स्थायी पुनर्वास मिल पाया और ना ही दुकान के लिए जमीन. आज विश्व शरणार्थी दिवस है. इस अवसर पर हम आपको 40 ऐसे बांग्लादेशी परिवारों से मिला रहे हैं, जो पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश है, वहां से विस्थापित होकर पहले रायपुर आए और उसके बाद कोरबा पहुंचे.

स्थायी पुनर्वास के इंतजार में बांग्लादेशी शरणार्थी

प्रदेश के अलग-अलग जिलों में बसाए गए बांग्लादेशी शरणार्थी

तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 1958 में दंडकारण्य परियोजना शुरू की थी. इसके तहत पूर्वी पाकिस्तान यानि बांग्लादेश से भारत आए असंख्य बंगाली शरणार्थियों को विभाजन के बाद ओडिशा, मध्यप्रदेश और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में बसाया गया था. वर्तमान छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़ और कोरबा जिले में अलग-अलग स्थानों पर ऐसे शरणार्थी निवासरत हैं. पूर्वी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार और युद्ध के बाद उपजी विपरीत परिस्थितियों और दंगों से त्रस्त होकर शरणार्थी भारत के साथ ही रहना चाहते थे. इंदिरा गांधी ने तब इनकी पीड़ा समझी और इन्हें भारत में शरण दी, तब से लेकर अब तक अन्य स्थानों की तुलना में कोरबा में रहने वाले शरणार्थियों के जीवन स्तर में कोई खास बदलाव नहीं आया है.

10 बाई 15 के कमरे में सिमटी जिंदगी

सारे शरणार्थी अब भी उसी घर में निवास करते हैं, जहां वह 1980 के दशक में निवासरत थे. शरणार्थियों की मानें तो उन्हें उनकी जमीन का मालिकाना हक भी नहीं मिला है. 40 परिवारों को 1982 में कोरबा शहर के बीचोंबीच स्थित टीपी नगर में जगह मिली, हालांकि तब टीपी नगर उतना विकसित नहीं था जितना कि अब है. टीपी नगर 1982 के कोरबा के लिहाज से आउटर क्षेत्र हुआ करता था, लेकिन आज टीपी नगर शहर के हृदय स्थल में बसा हुआ है. जहां नया बस स्टैंड भी विकसित हो गया है. वर्तमान में शरणार्थी जहां निवासरत हैं, वो शहर के सबसे रिहायशी और पॉश इलाके के पास है, लेकिन इनके जीवन स्तर और जीविकोपार्जन पर इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है. इनका जीवन आज भी उसी 10 बाई 15 के कमरे में बीत रहा है.

स्थायी पुनर्वास के इंतजार में बांग्लादेशी शरणार्थी

घोषणाएं आज तक नहीं हुईं पूरी

शरणार्थी कहते हैं कि हमें यहां बसाते वक्त जो घोषणाएं की गई थीं, उसके अनुसार हमें पुनर्वास आज तक नहीं मिला है. कुछ लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में बसाया गया जो आज किसान हैं और अच्छी कमाई करते हैं. उन्होंने कहा कि हमने व्यवसाय चुना था, लेकिन हमें आज तक दुकान आवंटित नहीं की गई है. पान ठेले वाली एक गुमटी दी गई थी, लेकिन उसे रखने के लिए जमीन मिलने का इंतजार है. शरणार्थियों ने बताया कि तब 5000 रुपए देने की घोषणा हुई थी, उसमें से भी उन्हें सिर्फ 3 हजार की राशि मिली. ऐसी कई घोषणाएं थीं, जो अब तक अधूरी हैं. शरणार्थियों का कहना है कि इतने सालों में उन्होंने कई नेताओं के चक्कर काटे, कई अफसरों को आवेदन दिया, लेकिन इसका कोई भी सकारात्मक परिणाम नहीं निकला.

सरकारी योजनाओं का भी नहीं मिल रहा लाभ

इन्हीं में से एक युवक गौरव नंदी ने कहा कि उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है कि उन सबको बांग्लादेश से लाकर यहां बसाया गया था, जो कि पहले पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था. इतने सालों से हम पट्टे की मांग कर रहे हैं. पिछले निकाय चुनाव में पार्षद ने वादा किया था कि हमें पट्टा दिया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आसपास के क्षेत्र में पट्टा वितरण हो रहा है. पीएम आवास के तहत मकान बनाए जा रहे हैं, लेकिन हम इस योजना से वंचित हैं. गौरव नंदी ने कहा कि उमका जो कैंप है, यहां के शौचालय भी जाम हैं, बरसात के मौसम में वहां शौच करने तक नहीं जा सकते.

स्थायी पुनर्वास के इंतजार में बांग्लादेशी शरणार्थी

कोरबा जिले से जयसिंह अग्रवाल छत्तीसगढ़ शासन में राजस्व एवं पुनर्वास मंत्री हैं, लेकिन अब भी बांग्लादेशी शरणार्थियों को वह मुकाम नहीं मिल सका, जिसकी घोषणाएं हुई थीं. इस मामले में ETV भारत ने राजस्व मंत्री से संपर्क करने का प्रयास भी किया, लेकिन वह आउट ऑफ स्टेशन हैं.

'हर व्यक्ति का योगदान मायने रखता है'

आज विश्व शरणार्थी दिवस है. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग के अनुसार हर मिनट 20 लोग अपना सबकुछ छोड़कर पलायन को मजबूर हो जाते हैं. विश्व शरणार्थी दिवस का उद्देश्य विश्व का ध्यान शरणार्थियों की दुर्दशा की तरफ केंद्रित करना है. यूएनएचसीआर की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2,00,000 शरणार्थी हैं. इस वर्ष विश्व शरणार्थी दिवस की थीम है-'हर व्यक्ति का योगदान मायने रखता है'.

स्थायी पुनर्वास के इंतजार में बांग्लादेशी शरणार्थी

20 जून को हर साल मनाया जाता है विश्व शरणार्थी दिवस

20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य दुनियाभर में शरणार्थियों की दुर्दशा के लिए दीर्घकालीन समाधान की दिशा में काम करना है. विश्व शरणार्थी दिवस शरणार्थियों के अधिकारों, जरूरतों और उम्मीदों पर प्रकाश डालता है. यह राजनीतिक मदद और संसाधनों को जुटाने में मदद करता है, ताकि शरणार्थी न केवल जीवित रह सकें, बल्कि उनका सर्वांगीण विकास हो सके.

हर एक दिन शरणार्थियों के जीवन की रक्षा और उसके स्तर को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है. विश्व शरणार्थी दिवस जैसे अंतर्राष्ट्रीय दिवस शरणार्थियों की दुर्दशा पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं. इस दिन ऐसे कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जो शरणार्थियों की मदद करने के अवसर प्रदान करते हैं.

Last Updated : Jun 20, 2020, 12:14 PM IST

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