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SPECIAL:कोरोना से मिट्टी परीक्षण पर ग्रहण, किसानों को पता नहीं कितने उपजाऊ हैं उनके खेत

एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ में धान खरीदी में देरी के चलते किसान परेशान हैं. वहीं मिट्टी परीक्षण न होने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं. कोरोना के चलते मिट्टी परीक्षण का काम नहीं हो पा रहा है.

Soil test will not run due to corona in Korba district
कोरोना ने लगाया मिट्टी परीक्षण पर ग्रहण

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Published : Nov 6, 2020, 2:18 PM IST

Updated : Nov 6, 2020, 3:21 PM IST

कोरबा:कोरोना ने किसानों को हर तरीके से परेशान कर रखा है. इस बार जिले के किसान खेतों में मिट्टी का परीक्षण नहीं करा सकेंगे. इस वजह से वे ये नहीं जान पाएंगे कि उनके खेत की मिट्टी कितनी उपजाऊ है. पहले ही धान खरीदी में देरी से मुश्किल में पड़े अन्नदाताओं की चिंता मिट्टी परीक्षण न होने से बढ़ गई है.

कोरोना ने लगाया मिट्टी परीक्षण पर ग्रहण

हर साल किसानों को उनके खेतों की मिट्टी का परीक्षण कर यह बताया जाता है कि उनके खेत कितने उपजाऊ हैं. अगर उपजाऊ नहीं है तो कितनी मात्रा में कौन सी खाद का उपयोग कर वह अपने खेतों को उपजाऊ बनाकर ज्यादा से ज्यादा फसल लेकर मुनाफा कमा सकते हैं. लेकिन कोरोना वायरस मिट्टी परीक्षण पर पूरी तरह से ग्रहण लगा दिया है. जिससे किसान दोहरी मार झेल रहे हैं.

कोरोना ने लगाया मिट्टी परीक्षण पर ग्रहण
मिट्टी उर्वरक क्षमता से तय होती है खाद की मात्राकिसी भी क्षेत्र के खेतों के प्रकार अलग-अलग होते हैं. इन खेतों में पाई जाने वाली मिट्टी की उर्वरक क्षमता के अनुसार ही कितनी मात्रा में खाद का उपयोग किया जाना है, इसका निर्धारण किया जाता है. मिट्टी परीक्षण नहीं होने से किसानों को उनके खेतों की जल धारण क्षमता का पता नहीं चल पाता. जिसके कारण वह जरूरत से ज्यादा मात्रा में खाद का उपयोग करते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. कई बार फसलों को नुकसान भी पहुंचा सकता है. हालांकि जब मिट्टी परीक्षण की प्रक्रिया चल रही होती है, तब भी जागरूकता के अभाव में बेहद सीमित किसान ही इसका लाभ लेते हैं. जबकि ज्यादातर किसान अपने खेतों की मिट्टी की जांच के बिना ही फसलें उगाते हैं.
कोरोना ने लगाया मिट्टी परीक्षण पर ग्रहण
काली मिट्टी का ज्यादा होता है रकबाकोरबा जिले में ज्यादातर क्षेत्रों में काली मिट्टी के खेत पाए जाते हैं. इसके अलावा मटासी, कन्हार, डोरसा और भाटा किस्म की मिट्टी भी खेतों में पाई जाती है. आमतौर पर काली मिट्टी को ही सबसे ज्यादा उपजाऊ माना जाता है. जहां कम से कम खाद के प्रयोग करके किसान अधिक से अधिक मुनाफा अर्जित करते हैं, लेकिन ऐसे खेत जिनकी जल धारण क्षमता कम है और वह ज्यादा उपजाऊ नहीं है, वहां कई तरह के उपाय करने होते हैं. अलग-अलग तरह के केमिकल और खाद के उपयोग की जानकारी कृषि विभाग किसानों को देता है. इस वर्ष यह पूरी प्रक्रिया पूरी तरह से ठप है. हर साल 40 हजार से ज्यादा मिट्टी का परीक्षणऔसतन जिले में हर वर्ष 40 हजार से ज्यादा मिट्टी के नमूने अलग-अलग क्षेत्रों से मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में आते हैं. कुछ किसान ऐसे भी हैं जो कि स्वतंत्र रूप से अपने खेतों की मिट्टी लेकर प्रयोगशाला पहुंचते हैं. जिनके नमूनों की जांच कर कृषि विभाग उन्हें मार्गदर्शन देता है और बताता है कि उन्हें कितनी मात्रा में और कौन सी खाद का उपयोग करना चाहिए. फसल के प्रकार के अनुसार मिलता है सॉइल हेल्थ कार्डजिले में किसान रबी और खरीफ दोनों ही फसलों को उगाते हैं. किसानों की ओर से उगाई जाने वाली तिलहन और दलहन की फसलों के अनुसार ही उनकी मिट्टी की उर्वरक क्षमता के बारे में जानकारी उन्हें विभाग से मिलती है. नमूने की जांच के बाद किसान को उनके खेत की मिट्टी के उर्वरक क्षमता के अनुसार सॉइल हेल्थ कार्ड भी जारी किया जाता है.
कोरोना ने लगाया मिट्टी परीक्षण पर ग्रहण
हर वर्ष लक्ष्य से ज्यादा नमूनों की होती है जांच राज्य शासन से जिले को सीमित नमूनों के जांच का लक्ष्य दिया जाता है, लेकिन हर वर्ष कृषि विभाग राज्य शासन से प्राप्त लक्ष्य की तुलना में कहीं ज्यादा नमूनों की जांच की जाती है और ज्यादा से ज्यादा किसानों को इसका लाभ दिया जाता है. कई बार किसान स्वतंत्र तौर पर अपने नमूने लेकर आते हैं. उन्हें भी कृषि विभाग जांच कर हेल्थ कार्ड जारी करता है, लेकिन इस वर्ष केवल गौठानो से आए 56 नमूनों की जांच की गई है. जोकि लक्ष्य में शामिल नहीं थे. इस वर्ष राज्य शासन से कृषि विभाग को मिट्टी परीक्षण के लिए किसी तरह का आदेश नहीं दिया है. फैक्ट फाइल- बीते वर्षों में इतने नमूने और परीक्षण
वर्ष सैम्पल का लक्ष्य जांच
2017-18 10390 47293
2018-19 8220 38303
2019-20 1378 1978
2020-21 56- 56 ----
Last Updated : Nov 6, 2020, 3:21 PM IST

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