कोरबा: कपड़े बुनने के लिए बुनकरों को एक खास किस्म के धागों की जरूरत होती है. जिसके लिए भारत चीन पर निर्भर रहता था, लेकिन जब से भारत और चीन के बीच हालात बिगड़े तभी से इन धागों का आयात चीन ने रोक दिया. परिणाम यह हुआ कि रेशम विभाग ने कोरबा में कोसाबाड़ी स्थित कार्यालय के पास ही खुद ऐसे धागों को तैयार करना शुरू कर दिया है. चीन पर निर्भरता अब लगभग खत्म हो चुकी है.
कोरबा जिले में स्थापित वेट रीलिंग इकाई कोसाबाड़ी में शुरू की गई है. इस इकाई से हर साल 3 हजार किलोग्राम रेशम के धागे का उत्पादन होगा. मांग के अनुरूप बाद में इसकी क्षमता बढ़ाई भी जा सकती है. जिले में प्रतिवर्ष 2 करोड़ 50 लाख नग कोसा का उत्पादन होता है. जोकि छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक है.
केंद्रीय रेशम बोर्ड की निगरानी में कार्य
वेट रेलिंग इकाई के स्थापना के बाद कोरबा छत्तीसगढ़ का पहला जिला बन गया है, जहां ताना का धागा उत्पादित होगा. इसके पहले भारत चीन पर पूरी तरह से इस तरह के धागों के लिए आश्रित रहता था. भारत में ताना के धागे का उत्पादन नहीं हो पाता था. पहले ड्राइविंग होती थी लेकिन नई तकनीक के बाद अब ड्रिलिंग तकनीक से धागों को कोसा से निकाला जा रहा है. जो कि ताना के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा. इस तरह की यूनिट देश में भी सिर्फ एक-दो स्थानों पर ही लगी है. कोरबा कोसा के लिहाज से बेहद अग्रणी जिला है. कोसा और रेशम के धागों के उत्पादन के मामले में कोरबा प्रदेश में अव्वल है ही और यहां के लोकल मार्केट में बिकने वाले कोसा की साड़ी विदेशों तक निर्यात की जाती है.
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आत्मनिर्भर भारत का उदाहरण
पीएम मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' नारे का सकारात्मक प्रभाव देखना है तो आप छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले का उदाहरण दे सकते हैं. कोरबा में केंद्रीय रेशम बोर्ड के सहयोग से प्रदेश की पहली वेट रीलिंग यूनिट की स्थापना की गई है. यहां ठीक उसी तरह के धागों को तैयार किया जा रहा है. जिसके लिए भारत पहले पूरी तरह से चीन और कोरिया जैसे देशों पर निर्भर रहना था.