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SPECIAL: चीन को टक्कर देगा कोरबा का रेशम, वेट रीलिंग यूनिट की शुरूआत - कोरबा का कोसाबाड़ी

कोरबा के कोसाबाड़ी में वेट रीलिंग इकाई की शुरुआत की गई है. इस इकाई से हर साल 3 हजार किलोग्राम रेशम के धागे का उत्पादन होगा. कपड़े बुनने के लिए बुनकरों को एक खास किस्म के धागों की जरूरत होती है. जो पहले चीन से आयात किए जाते थे. लेकिन अब चीन पर निर्भरता लगभग खत्म हो चुकी है.

silk of Korba will compete China
कोरबा में वेट रीलिंग यूनिट की शुरूआत

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Published : Nov 9, 2020, 8:46 PM IST

कोरबा: कपड़े बुनने के लिए बुनकरों को एक खास किस्म के धागों की जरूरत होती है. जिसके लिए भारत चीन पर निर्भर रहता था, लेकिन जब से भारत और चीन के बीच हालात बिगड़े तभी से इन धागों का आयात चीन ने रोक दिया. परिणाम यह हुआ कि रेशम विभाग ने कोरबा में कोसाबाड़ी स्थित कार्यालय के पास ही खुद ऐसे धागों को तैयार करना शुरू कर दिया है. चीन पर निर्भरता अब लगभग खत्म हो चुकी है.

कोरबा में वेट रीलिंग यूनिट की शुरूआत

कोरबा जिले में स्थापित वेट रीलिंग इकाई कोसाबाड़ी में शुरू की गई है. इस इकाई से हर साल 3 हजार किलोग्राम रेशम के धागे का उत्पादन होगा. मांग के अनुरूप बाद में इसकी क्षमता बढ़ाई भी जा सकती है. जिले में प्रतिवर्ष 2 करोड़ 50 लाख नग कोसा का उत्पादन होता है. जोकि छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक है.

वेट रीलिंग यूनिट

केंद्रीय रेशम बोर्ड की निगरानी में कार्य

वेट रेलिंग इकाई के स्थापना के बाद कोरबा छत्तीसगढ़ का पहला जिला बन गया है, जहां ताना का धागा उत्पादित होगा. इसके पहले भारत चीन पर पूरी तरह से इस तरह के धागों के लिए आश्रित रहता था. भारत में ताना के धागे का उत्पादन नहीं हो पाता था. पहले ड्राइविंग होती थी लेकिन नई तकनीक के बाद अब ड्रिलिंग तकनीक से धागों को कोसा से निकाला जा रहा है. जो कि ताना के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा. इस तरह की यूनिट देश में भी सिर्फ एक-दो स्थानों पर ही लगी है. कोरबा कोसा के लिहाज से बेहद अग्रणी जिला है. कोसा और रेशम के धागों के उत्पादन के मामले में कोरबा प्रदेश में अव्वल है ही और यहां के लोकल मार्केट में बिकने वाले कोसा की साड़ी विदेशों तक निर्यात की जाती है.

कोरबा का रेशम

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आत्मनिर्भर भारत का उदाहरण

पीएम मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' नारे का सकारात्मक प्रभाव देखना है तो आप छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले का उदाहरण दे सकते हैं. कोरबा में केंद्रीय रेशम बोर्ड के सहयोग से प्रदेश की पहली वेट रीलिंग यूनिट की स्थापना की गई है. यहां ठीक उसी तरह के धागों को तैयार किया जा रहा है. जिसके लिए भारत पहले पूरी तरह से चीन और कोरिया जैसे देशों पर निर्भर रहना था.

'ताना' के धागे आते थे चीन से, 'बाना' स्वदेशी

कपड़े बुनने का काम हथकरघा के माध्यम से बुनकरों द्वारा किया जाता है. इसके लिए दो तरह के धागों का उपयोग होता है. पहला ताना(warp), जो लंबाई(vertical) की दिशा में लगता है. जबकि बाना(weft or fiilling) वह धागा है, जो चौड़ाई(horizontal) की दिशा में लगता है. जिसे कपड़ा बुनाई में फीलिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जिसकी क्वॉलिटी यदि बेहतर नहीं है तब भी काम चल जाता है. आमतौर पर बाना के तौर पर प्रयुक्त होने वाला धागा स्वदेशी धागा होता है. लेकिन ताना के लिए प्रयोग किए जाने वाले धागे का मजबूत होना बेहद जरूरी है.

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बुनाई का केंद्र बिंदु 'ताना'

ताना कपड़ों की बुनाई का केंद्र बिंदु है. ताना के लिए प्रयुक्त होने वाला यही धागा दशकों से चीन और कोरिया जैसे देशों से आयात किया जाता था. इसका आयात जैसे ही बंद हुआ, बुनकरों के सामने समस्या खड़ी हो गई थी. लेकिन इस समस्या से निजात दिलाने के लिए विभाग ने अब स्वदेशी तकनीक पर आधारित वैट रीलिंग यूनिट स्थापित कर लिया है.

युवाओं को मिलेगा रोजगार

रेशम विभाग द्वारा जिलों के बेरोजगार युवक-युवतियों को भी रोजगार उपलब्ध कराएगा. इस इकाई से 60 युवक-युवतियों को जिले के अंदर ही रोजगार मिलेगा. युवाओं को 1 महीने का प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं. जो जल्द ही स्वरोजगार से जुड़ जाएंगे. वर्तमान में महिलाएं रीलिंग यूनिट से धागे का उत्पादन कर रही हैं.

एक आंकड़ों के अनुसार-

  • कोरबा में स्थापित वेट रीलिंग यूनिट से 3 किलोग्राम रेशम का उत्पादन होगा
  • जिले में प्रतिवर्ष 2 करोड़ 50 लाख नग कोसा का उत्पादन
  • कोरबा जिले के 1248 हेक्टेयर वन क्षेत्र में ली जाती है कोसा की फसल
  • जिले में 50 कोसा केंद्र और 28 संग्राहक परिवार जो कोसा के उत्पादन में लगे
  • कोरबा में लगाई गई वैट रीलिंग यूनिट की लागत 13 लाख 39 हजार
  • जिसमें 20 रीलिंग मशीन, 12 बुनियादी और 10 स्पिनिंग मशीन शामिल

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