कोरबा:छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से कोरबा जिले के पाली तानाखार इकलौती ऐसी सीट रही, जहां से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलेश्वर मरकाम ने जीत हासिल की. बाकी 89 सीटों पर या तो भाजपा के प्रत्याशी विजयी हुए या कांग्रेस के प्रत्याशी जीते. 2018 के चुनाव में बसपा और जनता कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. लेकिन इस चुनाव में क्षेत्रीयता के आधार पर बनी पार्टियों को कोई सीट नहीं मिली है. आम आदमी पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी जैसे दलों को भी जनता ने सिरे से खारिज कर दिया है.
वोट की कीमत जनता जानती है: क्षेत्रीय दलों के हाशिये पर जाने के सवाल पर हर किसी की अपनी राय है.
"छत्तीसगढ़ में शुरू से ही दो दलीय व्यवस्था ही रही है. लोग भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय पार्टियों के उम्मीदवारों को ही अपने प्रतिनिधि के तौर पर देखना चाहते हैं. जाति समीकरणों के कारण जांजगीर वाले बेल्ट में बहुजन समाजवादी पार्टी का कुछ जनाधार जरूर रहा है. लेकिन इस चुनाव में भी उनके विधायकों की संख्या शून्य हो गई." मनोज शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
जब विद्याचरण शुक्ल चुनाव लड़े थे, तब एक दौर एनसीपी का भी आया. लेकिन उनकी स्वीकार्यता भी नहीं रही. जनता के मन में यह बात भी रहती है कि हम जिसे भी वोट दें, वह सत्ता में जाए. लोग जिसे वोट देते हैं. उसे जीतते हुए देखना चाहते हैं. इसलिए लोग अपना वोट जाया नहीं करना चाहते. यही कारण है कि क्षेत्रीय दलों को कामयाबी नहीं मिल पाती. इस चुनाव में यह और भी स्पष्ट हो गया कि छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के लिए फिलहाल कोई स्थान नहीं है. आम आदमी पार्टी के बड़ी चर्चा थी. उनके कैंडिडेट की चर्चा हुई, लेकिन अभी आम आदमी पार्टी को भी छत्तीसगढ़ में आने वाले कुछ सालों के लिए इंतजार करना होगा. उनके लिए कोई जगह यहां नहीं है.