कोरबा: हाल ही में आई फिल्म शेरनी (FILM SHERNI) की बहुत तारीफ हो रही है. बॉलीवुड एक्ट्रेस विद्या बालन ने इस फिल्म में DFO (District forest officer) का किरदार निभाया है. ऐसी अफसर जो अपने काम के लिए बहुत डेडीकेटेड है. फिल्म के साथ ही एक नई बहस बिछड़ गई कि क्या महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ? छत्तीसगढ़ वन विभाग में महिलाएं बड़ी जिम्मेदारी संभाल रही हैं. कोरबा वन मंडल में पदस्थ डीएफओ प्रियंका पांडे भी उन्हीं में से एक हैं. इस रियल लाइफ शेरनी ने ETV भारत से खास बातचीत की और अपने तमाम अनुभव शेयर किए .
रीयल लाइफ SHERNI प्रियंका पांडेय सवाल- विद्या बालन की फिल्म 'शेरनी' वास्तविकता के कितने करीब है ? जवाब-हमने शेरनी देखी है, काफी बढ़िया तरह से शूट किया गया है. यह फिल्म वास्तविकता के काफी करीब है. कई बातें जो फिल्म में बताई गई हैं, वह वन अधिकारियों के जीवन से प्रेरित हैं. उन्हें इसका नियमित तौर पर सामना करना पड़ता है.
सवाल- जैसा कि फिल्म में दिखाया गया, एक महिला होने के नाते क्या सच में आप पर भी उतना ही फैमिली प्रेशर होता है?
जवाब- देखिए फैमिली प्रेशर तो होता है. मैं बार-बार यही बात कहना चाहूंगी कि जितना फैमिली प्रेशर महिलाओं पर होता है, उतना ही पुरुषों पर भी होता है. कम-ज्यादा वाली बात नहीं होती. हो सकता है दुनिया की नजर में महिलाएं, पुरुषों की तुलना में कमजोर हों. लेकिन जब आप प्रशासन में आ जाते हैं, तब आप सभी चीजें समानांतर तौर पर देखते हैं. बल्कि महिलाएं बेहतर प्रशासक होती हैं. मानसिक तौर पर वह ज्यादा मजबूत होती हैं. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि महिलाएं प्रेशर कम झेल पाती हैं. वह पुरुषों की तुलना में कहीं भी कमजोर नहीं हैं.
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सवाल- क्या आपके विभाग में कार्यरत सभी महिला कर्मचारियों की सोच आप ही की तरह है? महिलाओं को अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उन्हें कैसे मैनेज करती हैं?
जवाब- महिला कर्मचारियों की संख्या थोड़ी कम है. छत्तीसगढ़ में हम लगभग 11-12 आईएफएस अधिकारी हैं. सभी बेहतरीन काम कर रहे हैं. कई तो पुरुषों की तुलना में ज्यादा बेहतर ढंग से काम कर रही हैं. ऑफिस हो या फिर फील्ड, महिलाएं डट कर अपने कर्तव्य को पूरा कर रही हैं. शारीरिक चुनौती की बात करें तो सिर्फ महिलाएं ही क्यों, कई बार तो पुरुष कर्मचारी भी हमारे पास आते हैं और कहते हैं कि हमें हाल ही में हार्ट अटैक आया था तो हमें आसान जगह पर पोस्टिंग दे दीजिए. यदि कोई शारीरिक तौर पर सक्षम नहीं है तो दोनों ही पर काम का बोझ समान रूप से लागू होता है. पिछले वर्ष एक महिला आईएफएस सतोविशा समाजदार को बेस्ट आईएफएस का अवार्ड मिला है. महिलाएं लगातार खुद को साबित कर रही हैं. वह पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर वन सेवा की नौकरी कर रही हैं. वह कहीं भी पुरुषों से कम नहीं है.
सवाल- जंगल में शिकारी भी होते हैं, जब उनसे सामना हो जाए तो आप कैसे हैंडल करती हैं?
जवाब- जब कोई वन अधिनियम का उल्लंघन करता है, नियमों के विपरीत जाता है तो उनसे हम नियमों के तहत ही निपटते हैं. यह पूरा माइंड गेम है. नियमों से आप किसी शिकारी को कितना डरा सकते हैं और आपका एटीट्यूड क्या है ? यह मायने रखता है. यहां पर जेंडर काम नहीं आता. यहां जेंडर बेस्ड भेदभाव नहीं हो सकता. पूरी तरह से माइंड गेम है. जिसमें आपको जीत हासिल करनी होती है.
सवाल- कैरियर के दौरान क्या आपने भी किसी खतरनाक जानवर को ट्रेंक्यूलाइज किया है?
जवाब-जी हां, हमारी सेवा के दौरान दो बार ऐसा हुआ जब हमने आदमखोर भालू को काबू में किया था. भालू आदमखोर हो गए थे. जिन्हें बड़ी मुश्किल से ट्रेंक्यूलाइज कर बेहोश किया गया. हालांकि तब वाइल्डलाइफ की एक्सपर्ट टीम रहती है. उनके साथ समन्वय करना होता है. लोकेशन भेजनी होती है. कई तरह के काम होते हैं, जिसे हमें पूरा करना होता है. काफी दबाव भी झेलना पड़ता है. सरगुजा में पोस्टिंग के दौरान हमने एक हाथी को भी ट्रेंक्यूलाइज किया था. काफी मशक्कत के बाद हमने उसे कॉलर आईडी लगाया और फिर सफलतापूर्वक जंगल में आजाद कर दिया था.
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सवाल- जब कोई जानवर खतरनाक हो जाए तब जन भावना होती है कि उसे मार दिया जाए, लेकिन वन विभाग और आप जैसे अफसर उसे बचाना चाहते हैं. वन्यजीवों की रक्षा करना चाहते हैं. ऐसे में सामंजस्य कैसे बिठाते हैं?
जवाब- जाहिर तौर पर इस तरह की परिस्थितियों से सामना होता है. जब हमारी पोस्टिंग धरमजयगढ़ में थी तब एक हाथी था गणेश, शायद आपको याद होगा. वो बेहद रौद्र रूप अपनाए हुए था. हालांकि हम उसे कॉलर आईडी की परिधि में लाने में नाकाम हुए थे, यह दुर्भाग्य रहा. लेकिन उसके साथ रहते हुए हमने कई चीजें सीखी. जैसे हाथियों को कैसे काबू में किया जाए ? इनके साथ कैसे डील करना है ? गणेश में अन्य हाथियों की तुलना में अलग था. वह बेहद इंटेलीजेंट हाथी था. हम जैसे-जैसे उसे ट्रैक करते, वह भी उसी तेजी के साथ अपनी लोकेशन बदल लेता था. गणेश लगभग हर दिन कोई न कोई जनहानि कर रहा था. हमारे पहुंचने के बाद हमने परिस्थितियों में कुछ बदलाव लाया. गांव के सोलर फेंसिंग की. दिन-रात गणेश की मॉनिटरिंग की और कई तरह के प्रयास किए.जिससे कि गणेश को काफी हद तक शांत रखा जा सके. कई प्रयासों में हम सफल भी हुए थे, हालांकि बाद में करंट लगकर गणेश की डेथ हो गई थी जन भावनाएं थी कि उसे मारा जाए, लेकिन हमारा पूरा प्रयास था कि गणेश को किसी न किसी तरह से बचाया जाए और हमने काफी कोशिश भी की थी.
'कई बार फील्ड पर जब वन्यजीव कोई जनहानि करते हैं और हम मुआवजा लेकर उनके घर जाते हैं. तब लोगों का रिएक्शन विपरीत होता है. वह रिएक्ट करते हैं और कहते हैं यदि आपके परिवार का कोई सदस्य मर जाता और आप को मुआवजा मिलना होता, तब क्या होता? कई तरह की बातों का सामना करना पड़ता है. उन्हें समझाना होता है. वन्य जीव के हमले के बाद लोगों की भावनाओं को भी समझना होता है. छत्तीसगढ़ में हाथियों की बहुलता है. हमारा पिछले 6-7 साल का अनुभव है कि हाथी से निपटने की सबसे अच्छी और आसान थ्योरी है कि हाथियों से दूर रहा जाए. क्योंकि यदि आप हाथियों को छेड़ेंगे तो वह पलट के बदला जरूर लेते हैं. उन्हें आक्रमक ना होने दिया जाए. उन्हें शांतिप्रिय जीवन पसंद है. हमारा दायित्व है कि हम उनके लिए सकारात्मक माहौल बनाएं'.
सवाल- आधुनिकता के इस युग में विकास के लिए पेड़ों को काटा जा रहा है. कोयले, हीरे की खदानों के नाम पर जंगल बर्बाद हो रहे हैं. इस दौरान सामंजस्य कैसे बिठाते हैं?
जवाब-निश्चित तौर पर जब विकास के कोई काम आते हैं. तो हमें उसका साथ देना ही होता है. जो भी नियम है, उनमें कार्य करना होता है. जब भी कोई खदान का प्रस्ताव आता है.उसके लिए मुआवजा प्रकरण तैयार करना जैसे और कई तरह के काम होते हैं. जिसे हमें पूरा करना पड़ता है. कोशिश यही रहती है कि उससे वन संपदा को जितना नुकसान हुआ हो. उसकी भरपाई कर ली जाए. उतनी ही संख्या में पेड़ लगाए जाते हैं. कैंपा मद से फंड आते हैं. हम प्रयास करते हैं कि जो भी बर्बादी वन संपदा की हो रही है, उसे हर हाल में उसी अनुपात में पेड़ लगाकर भरपाई की जाए.
ऐसे काम करना चाहती हूं, जिनसे मेरे विश्वासों का विस्तार हो : विद्या बालन
सवाल- वन सेवा में आने वाली महिलाओं के लिए आप क्या कहना चाहेंगी?
जवाब- वन सेवा में महिलाओं को जरूर आना चाहिए. आप आइए आपका स्वागत है. यह जरूर है कि यहां के चैलेंज अलग होते हैं. कई तरह की चुनौतियां होती हैं. यह पूरी तरह से आपके एटीट्यूड पर निर्भर करता है कि नई चीजों को समझने में आप कितनी दक्ष हैं. यह जरूर कहूंगी की यह बहुत खूबसूरत जॉब है. चुनौतियों का सामना करने महिलाओं को आगे आना चाहिए. छत्तीसगढ़ में वन सेवा में पदस्थ आईएफएस महिलाओं की संख्या केवल 5% है. महिला अधिकारियों की संख्या 11-12 है. जबकि पुरुष लगभग ढाई सौ की तादात में हैं. एक ग्रुप जरूर बन जाता है. पुरुषों का अपना ग्रुप है. महिलाओं का अपना ग्रुप है. हम बराबर पुरुषों को टक्कर दे रहे हैं. किसी मामले में हम पीछे नहीं हैं.