कोरबा: कोरोना वायरस से पैदा हुई महामारी के बीच आपदा को कुछ निजी अस्पताल अवसर के रूप में देख रहे हैं. हालात ये हैं कि जिन सुविधाओं के लिए सरकार ने दरें निर्धारित कर दी हैं, उनके एवज में भी जरूरतमंद मरीजों से ज्यादा राशि की वसूली हो रही है. हाल ही में स्वास्थ्य विभाग ने जिले के निजी कोविड हॉस्पिटल को निर्धारित शुल्क से अधिक राशि की वसूली करने के लिए एक नोटिस जारी किया था. जिससे कुछ कसावट जरूर आई है, लेकिन अब भी कई मामलों में दाम बढ़े हुए हैं. जिन्हें नियंत्रित किए जाने की सख्त जरूरत है.
कोरबा में आपदा को अवसर बना रहे निजी अस्पताल पहला केस
यह मामला जिले के जीवन आशा अस्पताल जमनीपाली का है. जहां एक मरीज से 8 दिन के इलाज के एवज में 2 लाख 13 हजार 196 रुपए की वसूली की गई थी. स्वास्थ्य विभाग को इसकी शिकायत मिली और CMHO कोरबा ने अस्पताल प्रबंधन को नोटिस जारी किया. जारी नोटिस में पूछा गया कि निर्धारित शर्तों का पालन नहीं किए जाने की दशा में क्यों ना अस्पताल को कोविड 19 संक्रमितों के इलाज के लिए दी गई अनुमति निरस्त कर दी जाए.
8 दिनों का 2 लाख से ज्यादा बिल
CMHO ने अस्पताल को जारी किया है. नोटिस में साफ तौर पर CMHO ने उल्लेख किया है कि दिलीप कुमार श्रीवास जो 12 अप्रैल से 8 दिनों तक अस्पताल में भर्ती थे, उनसे 2 लाख से भी ज्यादा की राशि का भुगतान लिया गया है. जबकि शासन से जारी आदेश के अनुसार बिना वेंटिलेटर वाले ICU में भर्ती मरीज के लिए 10,000 और वेंटिलेटर के लिए 14000 रुपये प्रतिदिन का निर्धारित शुल्क लिया जा सकता है. जिनमें विभिन्न तरह की सुविधाएं शामिल है. लेकिन जीवन आशा अस्पताल की ओर से पैकेज में शामिल सुविधाओं के लिए अलग से अतिरिक्त राशि ली गई है.
ओपीडी का बिल साढ़े 4 हजार रुपये दूसरा केस
यह मामला जिले के निजी मेडिकल कॉलेज, रिस्दी का है. जहां निजी तौर पर कोविड हॉस्पिटल के संचालन की अनुमति दी गई है. हालांकि यहां राशि कुछ कम ली गई है, लेकिन जो राशि ली गई है वह संदेह के दायरे में जरुर है.
4 दिन में वसूले 40 हजार रुपए
निजी मेडिकल कॉलेज में उत्तम कुमार डिक्सेना संक्रमित होने के बाद बीते 18 अप्रैल को भर्ती किए गए थे. 22 अप्रैल को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया था. इस दौरान महज 4 दिन के इलाज के लिए डिक्सेना से 40 हजार रुपये लिए गए हैं. जबकि इन 4 दिनों में उन्हें ना तो ऑक्सीजन बेड की आवश्यकता पड़ी, ना ही उन्हें ICU या वेंटिलेटर पर जाना पड़ा. बावजूद इसके सिर्फ 4 दिनों में उनसे 40 हजार रुपये वसूल लिए गए. इसका बिल ETV भारत के पास मौजूद है. हालांकि डिक्सेना ने इसकी शिकायत नहीं की है, लेकिन उनका कहना है कि सिर्फ 4 दिन के हिसाब से यह राशि बेहद ज्यादा है. लेकिन इलाज कराना जरूरी था और ऐसे नाजुक समय में उन्होंने अस्पताल प्रबंधन से उलझना उचित नहीं समझा.
शासन ने फिक्स की हैं दरें जो कि अन्य राज्यों से काफी महंगी
शासन ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए निजी अस्पतालों को मरीजों द्वारा दिए जाने वाले शुल्क की दरों को फिक्स किया है. जो देश के अन्य राज्यों से काफी ज्यादा हैं.सरकार ने मान्यता प्राप्त अस्पतालों के लिए ऐसे मरीज जिन्हें हल्के लक्षण, आइसोलेशन बेड, सपोर्टिंग केयर, ऑक्सीजन और PPE किट की आवश्यकता होगी. उनके लिए 6200 रुपये प्रतिदिन का शुल्क निर्धारित किया है. इसके अलावा बिना वेंटिलेटर वाले ICU के लिए 12000 तो वेंटिलेटर के साथ ICU की जरूरत पड़ने पर 14 हजार रुपये हर दिन का शुल्क निर्धारित किया है. यह शुल्क उनके लिए है जिनके पास NABH (National accreditation board of hospitals) की मान्यता नहीं है. कोरबा जिले में यही शुल्क लागू होगी. जबकि NABH से मान्यता प्राप्त अस्पतालों में 10000 वाली सुविधा के लिए 12000 तो 14000 वाली सुविधा के लिए 17000 रुपये देने पड़ रहे हैं. इन दरों के कारण कोरोना के इलाज के लिए निजी अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीज औसतन 2 लाख रुपये तक का शुल्क अस्पतालों को दे रहे हैं.
सीटी स्कैन के लिए भी ज्यादा वसूली
जिले में सीटी स्कैन की सुविधा केवल एक ही जगह पर है. जिले में सरकार मरीजों को सीटी स्कैन की सुविधा नहीं दे पा रही है. केवल एक निजी अस्पताल NKH में कोरोना संक्रमितों का सीटी स्कैन किया जा रहा है. शासन ने इसके लिए भी दर निर्धारित की है. सामान्य तरह के सीटी स्कैन के लिए 1870 रुपये का शुल्क निर्धारित किया गया है. लेकिन 25 अप्रैल तक भी इसके लिए मरीजों से 4500 रुपये तक की मोटी फीस वसूली गई है. इसके बिल भी ETV भारत के पास मौजूद हैं.
कुछ युवा सोशल मीडिया पर चला रहे अभियान
निजी अस्पतालों द्वारा निर्धारित राशि से ज्यादा वसूली और मनमानी के विरोध में जिले के कुछ युवा सोशल मीडिया पर अभियान चला रहे हैं. वह लोगों से लगातार अपील कर रहे हैं कि यदि उनसे निर्धारित शुल्क से ज्यादा वसूली की गई है तो वह उनसे संपर्क करें. उनका पैसा वापस दिलवाया जाएगा. युवाओं के कुछ प्रयासों से निजी अस्पतालों ने लोगों के पैसे भी वापस किए हैं. अस्पताल व प्रशासन पर भी कुछ दबाव बना है.